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बिसमिल्लाह शब्द पर दयानंद जी के मन्तव्य

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बिसमिल्लाह शब्द पर, दयानंद जी के मन्तव्य ||

सम्पूर्ण मानव समाज में,कुरान को कलामुल्लाह { अल्लाह की कही हुई वाणी } मानते हैं | अन्य ग्रंथो को भी ईश् वाणी माना जाता है, जैसा बाइबल आदि को भी ईश् ग्रन्थ के नाम से इसाई लोग जानते मानते और कहते है | कुछ और लोग हैं जो अन्य ग्रंथो को भी ईश् वाणी के रूप मै मानते हैं इस पर आर्यसमाज के संस्थापाक ऋषि दयानंद जी ने उन सभी ग्रंथो का अवलोकन करने के बाद अनेक युक्ति और प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुय अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश मैं प्रमाण दिया है की ईश् वाणी और मानव कृत वाणी मैं क्या भेद है ?

ईश् वाणी मानव मात्र के कल्याण के लिए होता है, अर्थात ईश् वाणी मैं पक्षपात तथा किसी के साथ भेद भाव और वैमंस्यता उत्पन ना हो यही ईश् वाणी की खूबी  है | यह बातें मानव कृत ग्रंथो मै पाया जाना संभव नहीं | जिसका मूल कारण है मानव कृत ग्रन्थ किसी सम्प्रदाय से संपर्क रखता है किन्तु ईश् वाणी किसी भी  सम्प्रदाय से कोई लगाव या सम्पर्क नहीं रखता कारण ईशपर  पक्षपात का दोष लगेगा |

ध्यान रहे मानव कृत ग्रन्थ किसी भी सम्प्रदाय से संपर्क रखता है देखे, जैसा कुरान संपर्क रखता है इस्लाम नामी सम्प्रदाय से | बाइबल संपर्क रखता है ईसाई नामी सम्प्रदाय से ,गुरुग्रंथ सम्पर्क रखता है सिख सम्प्रदाय से | ठीक इसी प्रकार जिन्दावेस्ता संपर्क रखता है यहुदियो से, और त्रिपिटक सम्पर्क रखता हैं बौद्ध नामी  सम्प्रदाय से |

अर्थात जितनी भी पुस्तको की नाम लिखी गई ये सभी महजबी पुस्तक होने का प्रमाण मिला,सभी पुस्तकें किसी न किसी महजब से संपर्क रखता है | इससे ये सिद्ध हुआ की एक सम्प्रदाय दुसरे सम्प्रदाय को नहीं मानते और ना मानने को तैयार होते | इससे यह बात और स्पष्ट हो गया इन पुस्तकों मैं से एक भी ईश्वरीय ज्ञान का होना अथवा ईश वाणी का होना संभव नहीं | कारण उपर लिखा जा चूका है कि ईश वाणी किसी भी सम्प्रदाय से संपर्क नहीं रखता किन्तु मानवमात्र के कल्याण के लिये जो उपदेश हो उसे ही ईश वाणी कहा जाता है | जो इन सभी सम्प्रोदाय वादी पुस्तकों में यह बातें नही है |

ऋषि दयानंद जी ने इसका प्रमाण देते हुए सत्यार्थ प्रकाश के 14 समुल्लास के प्रथम में यह लिखा है | की कुरान का बिसमिल्ला ही गलत है, जहाँ यह शब्द लिखाहै | {बिसमिल्ला हिररहमा,निररहीम }

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ =شروع کرتا ہوں میں الله کے نام سے جو رحم کرنے والا مہربان ہے

अर्थ :- शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से जो रहम करने वाला महरबान है |यह अर्थ जो उर्दू में लिखा है मौलाना थानवी का,और भी कई आलिमों ने किया है, कुछ लोगों ने इस अर्थ को बदल डाला है | {अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है।} यह अर्थ किया है   कुरान के हिंदी अनुवादक मौलाना फारुख खान ने |

ऋषि दयानंद जी ने सवाल उठाया, जब यह कलामुल्लाह है,  क्या अल्लाह ने ये बात कही हो, फिर तो सवाल लाजिम है ? की एक अल्लाह ने दुसरे अल्लाह के नाम से शुरू किया ? तो अल्लाह किस लिये कहने जायेंगे की शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से |

अब इस्लाम जगत के आलिमों का मानना, है की अल्लाह ने कहा मेरे नाम से शुरू करो | अब मेरे नाम से शुरू करों और शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से दोनों में अंतर हो  गया |

तो सत्य क्या है अल्लाह ने यह बात कही है अथवा नही ? इसका प्रमाण हमें कुरान से ही लेना और खोजना पड़ेगा | पूरी कुरान में यही वाक्य बिसमिल्ला हिररहमा निररहीम 114 बार आया है | 113 सूरा के प्रथम में आया है | और एक सूरा= जिसे नमल के नाम से पुकारा, कहा, जाता है कुरान अनुसार जो सूरा न० 27 है इसके आयत न० 30 में कहा गया है | देखें किस प्रकार है |

إِنَّهُ مِن سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ [٢٧:٣٠]

सुलेमान की तरफ से है (ये उसका सरनामा) है बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम |

وہ سلیمانؑ کی جانب سے ہے اور اللہ رحمٰن و رحیم کے نام سے شروع کیا گیا ہے |

وہ سلیمان کی طرف سے ہے اور مضموں یہ ہےکہ شروع الله کا نام لیکر جو بڑا مہربان نہایت رحم والا ہے |

अब यहाँ तीनों आलिमों नें अलग अलग अर्थ किया है, पर यह बात स्पष्ट है की शुरू अल्लाह के नाम से यह स्वीकारा है | जब इस्लाम जगत के आलिमों ने स्वीकार किया की बिसमिल्लाह का अर्थ यही है शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से, तो दयानंद जी ने जो अर्थ उन्ही का लिखा है तो इसमें गलत क्या है जो दयानंद पर इस्लाम वाले दोष लगा रहे हैं ?

रही बात की, यह शब्द कलामुल्लाह है या नही, जब सूरा नमल के आयात 30 में यानि सूरा के बीच में कहा गया, फिर कलामुल्लाह न होने का प्रश्न ही समाप्त हो गया | जैसा हर सूरा के प्रथम है उसे अगर छोड़ कर पढ़ें, किन्तु सूरा नमल के बीच से हटाया जाना कैसे संभव होगा ? इससे बात बिलकुल स्पष्ट है की यह शब्द अल्लाह का होना संभव ही नहीं |

दूसरा प्रमाण मेरा यह भी है की कुरान के जो प्रथम सूरा मानते हैं इस्लाम जगत, जिसे फातिहा कहते है | जिसके आयत 7 है यह भी इसी बिसमिल्लाह को जोड़ने पर आयत 7 बनेगा | अगर यह आयात बिसमिल्लाह हिररहमानिर रहीम, को छोड़ दिया जाय तो सूरा फातिहा के कुल आयात 6 होंगे, जो यहाँ भी प्रमाण मिल रहा है की बिसमिल्ला कुरान का ही आयत है जो कलामुल्लाह है | और उसका अर्थ भी यही है, शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से जो रहम करने वाला महरबान है |

ऋषि दयानंद का कहना बिलकुल दुरुस्त है, और कुरान को देखते हुए ही है कुरान से बहार नही है | इस्लाम के मानने वाले लोग इसपर विचार करें और सत्यार्थ प्रकास को भली प्रकार पढ़ने का कष्ट करें सत्य को जानने के लिये धन्यवाद |

महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता =11 /10 /16 =

سورة فاتهاتون مكي أيتها ٧    =सूरा फातिहा =मक्का में उतरी =इसके 7 आयत हैं |

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