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भाइयों शैनावाज़ हुसैन कुरान पर चर्चा से किस लिए भागा ?

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भाइयों शैनावाज हुसैन इस लिए कुरान पर बात करने से भागा |

सुने और पढ़ें कुरानी गप्पे को |

यह आयात है सूरा 3 अलइमरान का 169,170,171,172,173,174,175 क्या है | अर्थ :-जो लोग अल्लाह के राह में शहीद हो गये उनको हरगिज मुर्दा ना समझ, बल्कि जिन्दा हैं अपने रब के पास रोजियाँ दिए जाते हैं | अल्लाह ताला ने अपना फज़ल जो उन्हें दे रखा हैं उससे बहुत खुश हैं खुशियाँ मना रहे हैं और उन लोगों की जो अबतक उनसे नहीं मिले उनके पीछे हैं यूँ के ना उनपर कोई खौफ है और ना वह गमगीन {उदास} होंगे |

जो खुश वक्त है अल्लाह की नेयमत और फज़ल से और उससे भी के अल्लाहताला ईमानवालों के अजर {पुरष्कार} बर्बाद नहीं करते| जिन लोगों ने अल्लाह और अल्लाह के रसूल के हुक्म को कुबूल किया उसके बाद के उनहें पूरा जखम लग चुके थे– इन में से जिन्हों ने नेकी की और परहेजगारी बरती उनके लिए बड़ा भारी अजर {बख्शीश} है |

वह लोग के जब इनसे लोगों ने कहा के काफिरों ने तुम्हारे मुकाबला पर लश्कर जमा कर लिए हैं तुम उनसे खौफ खाव तो इसबात ने उन्हें ईमान में और बढ़ादिया और कहने लगे हमें अल्लाह काफी है और वह बहुत अच्छा कारशाज़ है | नतीजा यह हुवा की अल्लाह की नेयमत व फज़ल के साथ ये लौटे- उन्हें कोई बुराई ना पहुंची, उन्हों ने अल्लाह की रजामंदी की पैरवी की, अल्लाह बहुत बड़ा फ़ज़ल वाला है | यह खबर देने वाला सिर्फ शैतान ही है जो अपने दोस्तों को डराता है, तुम उन काफिरों से न डरो और मेरे खौफ रखो अगर तुम ईमानदार हो |

यह प्रमाण है इबने कसीर पेज 589 इस आयात का सन्दर्भ बताया गया है | शहादत का फ़ज़ीलत क्या है ? इस आयात में बताया गया है, अल्लाह ताला फरमाता है, के शहीद फी सबीलिल्लाह {अल्लाह का रास्ता } दुनिया में मार डाले जाते हैं लेकिन आखिरत में उनकी रूहें जिन्दा रहती है, और रोजियाँ पाती हैं – इस आयात का शानेनुजूल {आयात उतरने का कारण}

यह है के हुजुर ने चालीस या सत्तर सहाबियीं को बैरमायुना {एक जगह के गुफा का नाम है } की तरफ भेजा था, यह जमायत {दल} गुफा तक पहुंची जो इस कुएँ के ऊपर थीं तो उन्होंने वहां पड़ाव किया {ठहरा} और आपस में कहने लगे कौन है जो अपनी जान को खतरे में डाल कर अल्लाह के रसूल का कलमा इन तक पहुंचाए –

एक सहाबी इसके लिए तैयार हुए और उन लोगों के घरों के पास आकर आवाज लगाया ऐ बैरमायुना वालो सुनों मैं अल्लाह के रसूल का कासिद हूँ मेरी गवाही है के मयबुद सिर्फ अल्लाहताला ही है और मुहम्मद उनके बन्दे और उनके रसूल हैं | यह सुनते ही एक काफ़िर अपना तीर संभाले हुए अपने घर से बाहर निकला, और इस तरह तीर लगाया की उसके पसली के इस पार से उस पार हो गया |

उस सहाबी की जुबान से यह आवाज निकली > फुजतु वराब्बिल क्यबाते क्यबा < की रब की कसम मैं अपनी मुराद को पहुंच गया | अब कुफ्फार निशाना टटोलते हुए उस गार {गुफा} के पास पहुंचे और यामिर बिन तुफैल जो जवान का सरदार था, और उन सब मुसलमानों को कत्ल कर दिया | हजरत अनिस फरमाते हैं उनके बारे में कुरान उतरा ही हमारे जानिब से हमारी कौम को यह खबर पहुँचा दो के हम अपने रबसे मिले वह हमसे राज़ी हो गये | हम इन आयात को बराबर पढ़ते रहे, फिर एक मुद्दत के बाद यह मनसुख हो कर उठाली गई और आयात > वलातह्साबनना < यह आयात उतरी {मुहम्मद बिन,जरीर }

सहीह मुसलिम शरीफ में है हजरत मसरुक फरमाते हैं हमने हजरत अब्दुल्ला से इस आयात का मतलब पूछा, तो हजरत अब्दुल्लाह ने बताया की हमने हुजुर से इस आयात का मतलब पूछा था, तो हुजुर ने फ़रमाया इनकी रूहें सब्ज रंग की परिंदे के काबिल हैं | इन शहिदों के लिए सारी जन्नतें हैं वह जहाँ चाहे चरें और कंदीलों में आराम करें | इनकी तरफ इनके रबने एक मर्तवा नजर की और दरयाफ्त फ़रमाया {पूछा} कुछ चाहिए ? कह्नेलगे ऐ अल्लाह और क्या मांगे सारी जन्नत में से जहाँ कहीं से खाएं पीयें इख़्तियार हैं फिर क्या तलब करें ?

अल्लाह ताला ने इनसे फिर यही पूछा, तीसरी मर्तवा फिर यही सवाल किया, जब उन्होंने देखा के बगैर कुछ मांगे चारा ही नहीं, तो कहने लगे ऐ रब हम चाहते हैं की तू हमारी रूहों को जिस्मों की तरफ लौटा दे, फिर हम दुनिया में जा कर तेरी राह में जिहाद करें, और मर जाएँ | अब मालूम हो गया की उन्हें और किसी भी चीज की हाजत नहीं तो इनसे पूछना छोड़ दिया, के क्या चाहते हैं ? = महेन्द्रपाल आर्य =23 /8 /20 =

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