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भारतियों ने सत्य को कब स्वीकार ?

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भारतियों ने सत्य को कब स्वीकारा ???

मैंने अनेक बार लिखकरऔर VDO बनाकर जनता के बीच अपनी खोजपूर्ण सत्यता को पहुंचा चूका हूँ फिर भी आज कुछ मन कर रहा था अपने मित्र पंकज जी से बात करने पर |

हमारे लोग आलसी हैं प्रमादी हैं भाव में बहने वाले लोग हैं करना कुछ न पड़े और हम मालामाल हो जाएँ मुफ्त खोरी में विश्वास रखने वाले लोग हैं फ़ोकट बाजों वाली मानसिकता के लोग हैं की हमें मेंहनत करना ना पड़े और सब कुछ हमें ही मिले इस मानसिकता के लोग हैं | कुछ प्रमाण मैं दे रहा हूँ इस पर चिन्तन और विचार करें कहाँ तह सही है ?

इसी परम्परा को ले कर यह लोग ईश्वर पर भी हाथ साफ करना चाहा,जब की ईश्वर को जानने का भी प्रयास नहीं किया | यह समझने को तैयार नहीं,की जिस ईश्वर को हम पाना चाहते हैं उसे जानना चाहिए या नही यह होश भी नहीं है लोगों को, प्रमाण निर्मलबाबा है |

जहाँ लोग पैसा खर्च कर क्या खाए हरी चटनी,या लाल चटनी यह बाबा के सामने दुनिया को बताने जा रहे हैं | मकसद क्या है हमें बाबा के दरबार से सब कुछ मिलेगा, रोग से मुक्ति, ताप से मुक्ति, हर प्रकार के दुःख से छुटकारा निर्मल बाबा ही दिला देंगे | इसी का ही नाम है फ़ोकट बाजी, खुद को करना ना पड़े और सभी प्रकार की मुसीबत से छुटकारा पाजाना |

मैं पूछना चाहता हूँ,पढ़ीलिखी जनता से, मानव कहलाने वालों से की किसी के कहने पर किसी का भला हो सकता है ? निर्मल बाबा किस से कह कर आप को रोग से दवा के बिना मुक्ति दिला देंगे ? किसी डा0 से कहेंगे किसी वैद्य से कहंगे ? आप के शारीरिक स्वस्थता के लिए यह बाबा किस से कहलवायेंगे ? आप के अभाव दूर करने के लिए किसी लाला से सेठ साहूकारों से अभाव दूर करवाएंगे ? अथवा सभी प्रकार की मुसीबत से छुटकारा दिलाने केलिए इस दुनिया के मालिक सृजन करने वाले से कह कर आप को सभी प्रकार के मुसी बतों से निजात दिलवा देंगे ?

इस पर कोई पूछने को तैयार नहीं की निर्मल बाबा से दुनिया बनाने वाले से बाबा का क्या और कितना सम्पर्क है की बाबा उनसे कह कर हमारे दु:खों से मुक्ति दिलवा सकें ? क्या वह दुनिया बनाने वाला बाबा का कोई रिश्तेदार हैं ? की वह सिर्फ बाबा के ही बात सुनेंगे और दुनिया वालों की नहीं ? इसे लोग जानने की कोशिश नहीं की, और इसी अज्ञानता का फायदा उठाया है सभी बाबा महात्मा सन्त,फकीरों ने |

पिछले दिन देखा उन्नाव जिला में शोभन सरकार मन्दिर के महन्त ने ख्वाब देखा यहाँ धन गड़ा है | यह बात दिल्ली में मनमोहन और सोनिया सरकार मिलकर पहाड़ खुदवा दिया चुहिया भी नहीं निकाल पाए |

एक महेन्द्रपाल आर्य के सिवा यह बात किसीने नहीं जानना चाहा की इन महन्त ने जो ख्वाब देखा रात्रि को एकेले में उन्नाव जिला में | यह बात भारत सरकार तक कैसी पहुंची दिल्ली सरकार ने पूरा तन्त्र लगा दिया पहाड़ खोदने में और निकला कुछ भी नहीं |

इन्हें लोग महात्मा कहरहे है इनके दरबार में भीड़ लगाये बैठे हैं बाबा हमें कुछ दिला दें,अब यहाँ सत्य और असत्य को जानना कौन चाह रहा है ? हमारे भारत में ऐसे बाबाओं की भर मार हैं सब दरबार लगाये बैठे हैं | उन के यहाँ यही मुफ्त खोरों की भीड़ है, अब इन बाबाओं को सिर्फ चेलों से भी काम चलने वाला नहीं है उन्हें चेली चाहिए,वह किस लिए कोई जानना नहीं चाहता |

ठीक इसी प्रकार ब्रह्मकुमारी वालों ने भी जोड़ा है काम, इनके संस्थापक को प्रजापिता कहा जाता है | यह कहने को कोई तैयार ही नहीं की जब वह अपने माता पिता के घर जन्मलिया तो क्या वह अपने माँ बाप के भी पिता हैं ? यह संस्था लड़कियों द्वारा ही जाल बिछाकर लोगों के घर में घुस गये, पति पत्नी के रिश्ते को भाई बहन बता कर परिवार बर्बाद कराने में महिलाओं को भिड़ा रखा हैं | सर्वव्यापक परमात्मा को एक देशी बता कर वेद विरुद्ध बातोंको लोगों के दिल और दिमाग में भर रहे हैं |

कोई उनसे यह पूछने को तैयार नहीं की वेद में परमात्मा सर्वव्यापक बताया है ईशावास्यमिदम बताया, आप लोग उसी परमात्मा को एक देशी क्यों और कैसे बता रहे हो ?

यही सब अज्ञानता पर चलने वालों की भरमार है सत्य क्या है असत्य क्या है यह जानने की इच्छा लोगों में नहीं है और ना जानना चाहते हैं | इसी प्रकार महाभारत काल के बाद से या थोड़ा पहले से यह निरन्तर चलरहा है भारतवर्ष में, ऋषि दयानन्द यही कह रहे थे लोगों से सत्य को ग्रहण करो असत्य को त्याग दो तभी मानव कहला सकते हो |

आज NDTV में देखा और सुना वैदिक गुरुकुल कालवा के स्नातक को बोलते हुए नर से नारायण | कितनी बड़ी भूल है की जिस ऋषिदयानन्द ने विषपान कर भी बोला नर अलग है और नारायण अलग है, गलती से भी यह मत कहना या मानना की नर, नारायण है | नर का सत्ता अलग है, नारायण का सत्ता अलग है, और प्रकृति का सत्ता भी अलग है |       तीनों सत्ताएं अलग अलग है, किन्तु है समकालीन बराबर से है, आगे पीछे नहीं है और न छोटा बड़ा है | तीनों में भेद है नरायण ज्ञान में परिपूर्ण है, प्रकृति ज्ञान शून्य है, और नर में कुछ ज्ञान है और कुछ अज्ञानता है |

यही कारन है की नर उसी नारायण को जानना चाहता है ज्ञान के द्वारा नर में अज्ञानता है नारायण ज्ञान में पूर्ण है | इस लिए दोनों अलग है, नारायण सदा सर्वदा आनन्द में होता है नर आनन्द और निरानन्द दोनों में होता हैं | दुनिया सुनरही थी एक महिला ने दयानन्द और विवेकानन्द के लिए पूछी तो तपाक से गुरुकुल कालवा का सनातक ने उत्तर दिया नर से नारायण | सत्य को जानकर उसे असत्य में परिवर्तित करके दुनिया वालों को सुना रहे हैं सिर्फ अपनी दुकानदारी चलाने के लिए | यह सारा काम कर रहे हैं लोग सत्य को जान कर उसे छुपाया जा रहा है, तो सत्य को लोगों ने अपनाया कब ?

यही हाल कवीरदास की भी रही जो कल मैंने थोड़ा बताया था, सम्पूर्ण विश्व में मानव को सत्य बताने के बजाय असत्य को ही सत्य बता कर प्रचार किया जा रहा है |

जिन्दगी भर मैं प्रमाण दे सकता हूँ = महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =19 /6 /17

 

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