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मानवता विरुद्ध बात मानने का नाम ईमान है ||

Mahender Pal Arya
29 Sep 22
48
मानवता विरुद्ध बात मानने का नाम ईमान है ||
यह प्रमाण इबने कसीर पेज 573 पारा 11 सूरा 10 युनुस आयात 84,85,86,का सन्दर्भ =अल्लाह पर मुकम्मल भरोसा ईमान की रूह है –हजरत मूसाअलैहिस्सलाम अपनी कौम बनी इसराईल से फरमाते हैं के अगर तुम मोमिन मुसलमान हो तो अल्लाह पर भरोसा रखो –जो उसपर भरोसा करे वह उसे काफी है इबादत व तवाक्कल दोनों एक ही हम पल्ला चीज है – अल्लाह ने फरमाया > फयबुदु हु व तवाक्कलो अलैहे < उसी की इबादत करो और उसी पर भरोसा रखो –
एक और रवायत में है के अल्लाह अपने नबी से इरशाद फरमाता है के कह दे के इलाहे रहमान पर हम ईमान लाये और उसी की जात पाक पर हमने तवाक्कल भरोसा किया – फरमाता है के मशरिक व मगरिब= पूरब पश्चिम का रब जो इबादत के लायेक माबूद है जिसके सिवा उपसना के लायेक और कोई नहीं – तो उसी को अपना कारसाज और वकील बना ले –
तमाम ईमानदारों को जो पाचों नमाजों में तिलावत करने का हुक्म हुवा उसमें भी उनकी जुबानी इकरार कराया गया के हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से मदद तलब करते हैं – बनू ईसराईल ने अपने नबी का यह हुक्म सुनकर इतायत की और अरज किया के हमारा भरोसा अपने रब पर ही है – परवर दिगार तो हमें जालिमों के लिए फितना न बना के वह हम पर हावी हो जाएँ और यह समझने न लगे के अगर यह हक़ पर होते और हम बातिल पर होते तो हम उनपर ग़ालिब हावी कैसे रह सकते ? यह मतलब भी इस दुआ का बयांन किया गया है के अल्लाह हम पर उनके हाथों सजा निर्धारित न करना न अपने पास से हम पर कोई आजाब नाजिल फरमाना – कहीं लोग कहने लगें के अगर बनी ईसराईल हक़ पर होते तो हमारी सजायें क्यों भुगत ते – या अल्लाह के आजाब इनपर क्यों उतरते ? यह भी कहा गया है के यह हम पर ग़ालिब रहे तो ऐसा न हो के यह हमारे सच्चे निजात दे – हम तुझ पर ईमान लाये हैं और हमारा भरोसा सर तेरी जात पाक पर है |
नोट :- अल्लाह पर मुकम्मल भरोसा अर्थात पूरा बिश्वास अल्लाह पर करना ही ईमान है – जो बातें इस में समझने की है वह यह है की अल्लाह ने अपने बन्दों को पूरा बांध दिया है की इसपर अबिश्वास या संदेह करने वाले ईमानदार नहीं बन सकते | भले ही अल्लाह की ऐसी कोई बातें बिश्वास करने लायेक न भी हो, तो भी विश्वास करना ही पड़ेगा – किसी भी प्रकार संदेह किया अल्लाह की बातों पर तो उसे ईमान वाला नहीं कहा जायगा और ना माना जायगा उसे ईमानदार | अतः अल्लाह ने उसे ही बेईमान कहा है, सिर्फ कहा ही नहीं अपितु अल्लाह ने उसे कुरान में बताई गई जन्नत से भी वंचित किया है |
इसी बात पर हम मानव कहलाने वालों को चाहिए की सम्पूर्ण कुरान को भली प्रकार अवलोकन करना की कौन सी बात अल्लाह की इस कुरान में मानने लायेक है और कौनसी बात मानने लायेक नहीं है | जो बातें सृष्टि नियम विरुद्ध है उसे क्यों और कैसा मानना उचित या सम्भव होगा ?
जैसा किसी कुँवारी से सन्तान बनादेना, किसी नवजात शिशु से बोलवाना, कहीं मिटटी का परिंदा बनाकर उसे आकाश में उड़वाना, कहीं मुर्दों को जिन्दा करना, कहीं घरका छत तोड़कर आदमी को ऊपर आसमान में उठालेना, कहीं आसमान से दस्तरखान में खाना लगा कर भेजना, कहीं सौ साल में खाना का ख़राब न होना, चार परिंदों को टुकड़ा टुकड़ा कर एक साथ मिला देना और उसे बुलाने पर जिन्दा होकर अपने अपने शारीर को प्राप्त करना आदि |
इस प्रकार की जितनी भी बातें कुरान में है उसे सत्य किस लिए मानना पड़ेगा, क्या यह अक्लमंद कहलाने वाले मानवों के लिए सत्य मानना उचित है या अनुचित ? कुरान में अल्लाह ने बताया यही सत्य मानना ही ईमान कहलाता है कोई संदेह न करना जो मानवता विरुद्ध है उसे भी सत्य ही मानना यह है अल्लाह और अल्लाह की कुरान,और इसे सत्य माननेवाले मुसलमान |
यह है कुरान और यह है कुरानका अल्लाह और इसे मानने वाले ईमानदार जो न माने इसे वही बेईमान बेदीन काफ़िर अल्लाह का शत्रु | मानव कहलाने वालों इसे ध्यान से जाने समझें और सत्य असत्य का निर्णय लें | धन्यवाद =महेन्द्रपाल आर्य 29 /9 /22