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मानव कहलाने वाले ही अकलमंद कहलाते है, या कोई और ?

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मानव कहलाने वाले अक्लमंद कहलाते हैं,या कोई और ?
सवाल उठता है की अक्लसे काम लेने वालों का ही नाम मानव है, फिर यह मानव अक्ल के विरुद्ध काम क्यों करते है ?
आज सुबह समाचार में सुना की पुणे में किसी आखाड़े के गणेशपंडाल में किसी मजदुर को होस्पिटल में भरती कराया गया | वह पंडाल के ऊपर लगे कलश को उतार रहा था गिर कर कमर में और कई जगह गंभीर चोट आईं चिकित्साधीन है मृत्यु से जूझ रहे हैं |
प्रश्न है जब गणेश को अपना रक्षक मानते हैं इसी भारत के गणेश के पुजारी, जब गणेश रक्षक हैं और ऐसे गणेश के पंडाल में कार्य रत मजदुर गिर कर मृत्यु से जूझे यह कौन सा स्वस्थ दिमाग वालों का मानना संभव और उचित है ?
गणेश जी औरों की रक्षा करें ना करें पर उन्ही के सेवा में जो लोग लगे हैं,अथवा लगे थे कमसे कम उन्ही की रक्षा करते | गणेश जी से इतना भी नहीं हो पाया और ना हो पाना संभव है | इसका मूल कारण है दुनिया वालों ने जिसे गणेश माना है वह असली गणेश ही नहीं है | गणेश का अर्थ होता है गणों के ईश, अर्थात जो सम्पूर्ण जगत का मालिक अथवा सभी चर अचर प्राणियों का पालने वाला जिसे गणेश कहते हैं | वह है परमात्मा,जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का मालिक है, जिनके अनेक नाम हैं उन अनेक नामों में गणपति और गणेश नाम भी है |
किन्तु दुनिया वालों ने असली गणेश कौन है इसे जानने के बजाय, गणेश उसे मान लिया जिसका शारीर तो है मानव का और मुंडी हाथी का | किसी मानव के शारीर में हाथी का मुंडी का होना क्यों और कैसा संभव है? इसे जानने का, प्रयास यह अक्ल रखने वालों ने नहीं किया, यह काम तो अक्लमन्द कहलाने वाले मानवों ने नहीं किया |
मानव उसीका नाम है, जो वस्तु जैसा है उसे ठीक ठीक वैसा ही जानना, मानना, कहना,या बतलाने वाले का ही नाम मानव है | विष को विष कहना ही मानवता है, विष को कोईअमृत कहें यह मानवता के विपरीत है | अब किसी के मानने से अथवा कहने से विष को अमृत में परिवर्तन होना सम्भव नहीं हो सकता | रेत को रेत कहना, मानना, जानना ही मानवता है,रेत को चीनी कहना पागल पण है | अगर कोई चाहे रेत को चीनी बनादेना यह भी सम्भव नहीं, कारण यह सृष्टि नियम विरुद्ध है प्रकृति नियम विरुद्ध है, और मानवता विरुद्ध भी है | मानवता विरुद्ध इस लिए है, की जो वस्तु जैसा है उसे ठीक वैसा कहना ही जो मानवता है
मानव भी हम तभी कहला सकते हैं जब हम रेत को चीनी ना कहें, विष को अमृत ना कहें, रस्सी को सांप ना कहें आदि आदि |
यह है मानवता की बातें और यह सारा काम अक्ल के आधार पर ही हम निर्णय लेते हैं, दुनिया में हम मानव कहलाने वाले प्रत्येक कार्य को दिमाग से करते करवाते हैं |
जैसा खाट में चार पाया लगते हैं ना तीन से खाट को रोका जा सकता है,और ना पांच लगाने की जरूरत, अगर कोई पाँच लगाये पाया, तो लोग उसे पागल कहेंगे मुर्ख कहेंगे और कहेंगे की तुम्हारे पास दिमाग नाम की कोई चीज ही नहीं है ? इसी प्रकार हर काम को जब कोई भी मानव कहलाने वाला करता है तो वह अक्ल से ही हर काम को करता है |
फिर यह कौनसी अकलमन्दी है की, किसी मानव के शारीर में हाथी का मुंडी लगा कर उसे देवता मानना अथवा अपना रक्षक मानना यह किस अक्लमंदी का परिचय दिया जा रहा है ? किसी का गले का उपर वाला भाग हाथी का है, तो वह खायेगा मुह से | और मुह है हाथी का तो खुराक भी हाथी का होना चाहिए, पर यह अक्ल्के दुश्मन उसे खिलाते हैं लड्डू | क्या हाथी का खुराक लड्डू है, या बढ़ का पत्ता, घांस आदि ?
आश्चर्य की बात यह भी है की लोग खिला उसे रहे हैं जिसमें खाने की ताकत ही नहीं है, जो खा सकते हैं उन्हें खिलाने तो तैयार नहीं | अग्नि में खाने की क्षमता है, और अग्नि को जो खिलाएंगे आप उसकी शक्ति हजारो गुणा बढ़ा कर आप को उसकी पौष्टिकता को वापस देगी, हम इसे जानना नहीं चाहते, करना नहीं चाहते |
इसी प्रकार मानव समाज के हर सम्प्रोदाय में अन्ध विश्वास और रूडी वादी विचार देखने को मिलता है | हिन्दू इसी मूर्ति पूजने के कारण इसलाम वालों ने इन्हें अन्धविश्वासी,और किन किन नामों से पुकारा | पिछले दिन इसी गणेश पूजा को लेकर डॉ0 जाकिर नाईक ने बड़ा विरोध में बोला था | जिसका जवाब सुदर्शन न्यूज़ चेनल में डॉ0 जाकिर नाईक का पर्दा फाश कार्यक्रम आया था जिसमें मेरी भी भागीदारी थी |
जब इसलाम वाले कहते हैं की मानव शारीर में हाथी का गला नहीं लग सकता, तो इस्लाम वालों ने घोड़े के गले में औरत का सिर और चार पंख कैसे लगाये ? हजरत मुहम्मद जब अल्लाह से मिलने सातवां आसमान पर जिस घोड़े में बैठ कर गये, जिसे बुर्राकुन्नाबी कहा जाता है उसकी शक्ल सूरत कैसे है ? मुह औरत का है, पंख लगे हैं धरती के किस घोड़े में पंख होते हैं ?अगर हिंदुयों का गणेश गलत है तो मुहम्मद को अल्लाह तक लेजाने वाला बुर्राक सही क्यों और कैसा हो सकता है ? वैदिक मान्यता है की यह दोनों ही झूठ है दोनों ही मानवता विरुद्ध है सृष्टि नियम विरुद्ध है, विज्ञानं विरुद्ध है | हम मानव तभी कहला सकते हैं जब अक्ल्के आधार पर काम करेंगे सृष्टि नियम के विरुद्ध कोई काम को स्वीकारना मानव का काम ही नहो है |
महेन्द्रपाल आर्य =4 /9 / 17 =

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