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मानव कहलाने वालों की गलतियाँ

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|| मानव कहलाने वाले कि गलतियाँ ||
सृष्टि कर्ता ने अपनी सृजन में अनेक प्राणियों को रखा है, जिसमें मानव भी एक प्राणी है और, जो सभी प्राणियों में उत्कृष्ट है, उत्कृष्ट इस लिए है की वह अपनीअक्ल से उसी सृजन करने वाले को जान सके, यह सौभाग्य सिर्फ और सिर्फ मानव कहलाने वाले को ही प्राप्त है, अन्य किसी और को नहीं |
इतना सब कुछ होने पर भी मानव उसी दुनिया बनाने वाले को नही जान पाया यह दुर्भाग्य पूर्ण बात है | जो मानव के लिया प्रथम कर्त्तव्य है, वे दुनिया के बनाने वाले कौन है उसे जाने |
 
किन्तु हम मानव कहला कर भी जो दायित्व हमारा था जिस कारण हम मानव कहला रहे हैं, उसे ही छोड़ दियाअथवा उस से अलग हो गये | बात तो बड़ी पुराणी है, यह शेर का बोलने वाला और लिखने वाला कौन है मैं नही जानता, पर मानव कहलाने वाले को किस प्रकार दिक भ्रमित किया है देखें |
आज मैं रेडिओ में सुबह 7-30 पर समाचार प्रभात सुन रहा था, प्रियंका और रवि के साथ | जिसमें एक शेर प्रियंका ने कही, खुदही को कर बुलन्द इतना हर तकदीर से आगे की खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रिज़ा क्या है ?
 
यह शब्द ही अपने आप में गलत है, और यह इस्लामिक मान्यता है इस शेर का लिखने वाला कोई मुस्लमान ही होगा | कितना गलत है देखें, खुदा और बंदा दोनो एक समान है कया ? बन्दा साकार है, और खुदा निराकार है, तो खुदा बन्दे से कैसे पुछ सकते है भला ?
 
कोई किसी से पुछने बोले बतलाये तो उसका साकार होना शरीर धारी होना निशचित है यह वाक्य ही गलत है | मत मजहब वालों को पता ही नहीं परमात्मा कौन है ? उसे जानने का भी प्रयास नही किया और ना जानना चाहते हैं | फालतू फण्ड में मनमानी जो जिसे चाहां उसी को परमात्मा मान लिया और उसी की पूजा करने लगे |
 
यह मत समझना की सिर्फ इस्लाम वाले ही इस मान्यता को रखते हैं, हिन्दू तो उससे भी एक कदम और आगे है | हिन्दुओं की मान्यता है जाके रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखे तैसी |
जरा विचार करें की प्रभु अगर किसी की भावना से अपनी मूरत बदल दे तो वह प्रभु कैसे हो सकते हैं ? पहली बात तो यह होगी की उसकी मूरत ही नही है प्रभु निराकार है उसे साकार मानना ही उसके साथ विश्वास घात है |
 
परमात्मा जब अनादी है और उसका साकार होना कैसे संभव होगा उस निराकार को साकार बनाया किसने ? कारण साकार कोई तभी हो सकता है जब उसे कोई शकल सूरत दे | इस का मतलब यह हुवा जब परमात्मा ही पहले भी था अब भी है और आगे भी रहेगा |
वेद में यही उपदेश है सूर्य चंद्रमा सौ धाता यथा पूर्वमा कल्पयात | तो उससे पहले कोई नहीं था तो उसे साकार किसने बनाया ? यह बात अपने आप में ही मुर्खता पूर्ण है इस लिए परमात्मा को जानना ही मानव का काम है उसे बिना जाने मानना संभव कैसे हो सकता है |
 
एक बात और भी है अगर इस्लाम वालों का कहना है की खुदा बन्दे से पूछे तेरी रज़ा क्या है यानि तेरी इच्छा क्या है ? यह बात अपने आप में एक मजाक हो जायगा, कारण मानव को परमात्मा चाहिए अथवा परमात्मा को मानव ? मानव अगर परमात्मा को याद करता है वह तो मानव की डयूटी है, फ़र्ज़ है कर्तव्य है | नहीं करेगा तो दोषी होगा करेगा तो उसे फल मिलेगा, किन्तु परमात्मा को मानव से पूछने की डयूटी है क्या ?
अगर खुदा बन्दे से पूछे तो कुरानी खुदा तो साकार है, मुजस्सिम है, निराकार नहीं, कुरान में ही इसका प्रमाण भरा पड़ा है | एक दो नहीं आने जगह है अल्लाह साकार है शारीर धारी है, सातवाँ आसमान में सिंहासन पर बैठता है | आठ फ़रिश्ते उन्हें पकड़कर नीचे उतरेंगे आदि |
 
किन्तु वेद में परमात्मा निराकार है साकार होने का कोई सवाल ही नही, इस लिए हिन्दू कहलाने वालों को वेद के नजदीक आना चाहिए जो ऋषियों ने भी कहा है |
 
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =१ / जून /17

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