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मानव कहला कर भी सत्य को धारण नहीं किया ||

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लोगों ने मानव कहला कर भी सत्य को नहीं माना = || सत्येन रक्ष्यते धर्म्मः- सत्य के द्वरा धर्मं की रक्षा होति है ||
अर्थात सत्य की सदा विजय होती है, यह ऋषि वाक्य है मुण्डक उपनिषद-३/१/६/ मे कहा है
स्त्येमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः || सत्य की सदा विजय होति है न कि झूठ की, क्योंकि विद्वानों का मार्ग सत्य से विस्तृत है | हमारे पूर्वज अपने से बड़े आयु वाले को आदरपात्र मानते हैं | किन्तु वह सत्यवादी न हो तो उनको वृद्ध ही नहीं मानते, जैसा महाभारत के उद्योग पर्व में बताया गया | न ते वृध्या ये न वदन्ति धर्म्मम् – अर्थात वह् वृद्ध ही नहीं जो धर्म को नहीं बोलते | सत्य शून्य धर्म धर्म ही नहीं है, जैसा कि =नासौ धर्मो यत्र न सत्यंअस्ति = वह धर्म ही नहीं है जिसमें सत्य नहीं है | यानि सत्य को जो पसन्द करेगा, वह कभी भी असत्य से दोस्ती नहीं करेंगे | और ना उनसे असत्य की दोस्ती हो सकती है | कारण सत्य ही एक ऐसी चीज है जो असत्य को या झूठ को मार देता है |
मेरा प्रचार कार्य सिर्फ और सिर्फ सत्य और असत्य को ले कर है, मैं प्रथम से सत्य क्या है कहाँ है किसके पास है ? आदि को लेकर आज सम्पूर्ण विश्वमें इसे उजागर करने में लगा हूँ और आप लोगों को अब तक यह भी दिखा चूका हूँ सत्य कहाँ है उसपर अमल कौन करता है और कौन नहीं ? फिर जिन्होंने सत्य को जाना तक नहीं उन्हें आज मानव समाज का अग्रणी माना,और समझा जा रहा है |
जो लोग सत्य से विमुख हैं अथवा सत्य को जानते ही नहीं, यहाँ तक की सत्य को सुनना भी नहीं चाहते है उनलोगों से मेरी तकरार या विरोध होता ही रहता है | इस कार्य में हिन्दू हो मुस्लमान या फिर ईसाई मुझे बहुत कुछ अनाप शनाप बोल देते हैं कहीं कोई गाली बकता है कहीं कोई जानसे मरने तक की धमकी देता है और कहीं कहीं मुझ पर हमला भी कर बैठते हैं | यह कायराना हरकतों को मैं इन 35 वर्षों से झेल रहा हूँ, किन्तु मैं सत्य को लिखना और बोलना बन्द नहीं किया और ना करूँगा सत्य ना कभी झुका है और ना कभी झुकेगा | सत्य कहने वाला ना कभी रुका है और ना कभी रुकेगा | सत्य कहने वाला न कभी थका है और ना कभी थकेगा |
कारण यह वाक्य ऋषि के हैं सत्य को बोलना और बुलवाना, असत्य को छोड़ना और छुडवाना ही मनुष्यपण का धर्म है | इसी पर अमल करने वाला ही मानव कहला ने का अधिकारी है, और जो सत्य को छोड़ दिया असत्य के पक्षधर बने उनकी गिनती मानवों में नहीं है |
अब तक मैंने आप लोगों को यही बताता आया हूँ की हमारे लोगों ने कहाँ कहाँ सत्य पर कुठाराघात किया है और समाज को दिशा निर्देश करने के बजाय समाज को रसातल में ले गये, मनुष्यपन धर्म का गला घोटा है | मेरे द्वारा इस सत्य को बताना प्रस्तुत करना मतान्ध लोगों को पसन्द नहीं आ रहा है, और ना हक़ ही मुझे कोई गाली दे रहा है तो कोई धमकी दे रहा है | मेरे लिखने का कहने का आशय को समझने का प्रयास किये बिना ही मुझे अपना विरोधी मान कर, जिसके मन में जो आरहा है बके जा रहे हैं |
किसी से मेरी व्यक्ति गत कोई दुश्मनी नहीं है और ना मैं किसी का शत्रु हूँ, पर यह तो ज़रूर हैं की मैं असत्य और अधर्म का विरोधी जरुर हूँ | मुझे असत्य किसी का भी हो, पसंद नहीं है भले ही लोग अपनी समाज में उन्हें कितना ही बड़ा विद्वान माना हो सन्त माना हो महा पुरुष माना हो सत्य के कसौटी पर अगर वह खरा नहीं उतरते तो मैं उन्हें कभी भी सहन नहीं कर सकता | अब चाहें वह कोई विद्वान हों सन्यासी या महात्मा, कोई रिफरमर हो या पथ प्रदर्षक |
अगर वह लोग गलती नहीं करते तो समाज की आज यह दशा नहीं होती, की जिन्हों ने सत्य को जाने बिना ही समाज का निर्देशक मान लिए गये | जिसका जीता जगता प्रमाण है निर्मल बाबा | आज जिन्हें लोग परमात्मा तक कहने को आतुर हैं,जिनके पास हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहे हैं | महात्मा का परिभाषा क्या है, ना निर्मल बाबा को पता हैं और ना तो भक्तों को,और दरबार खूब चलरही है उनकी | कोई बाबा से यह कहने को तैयार नहीं की आप इतने पहुंचे हुए फ़क़ीर हैं की आप के हाथ हिलाने से या आप के किसी पर हाथ फेरने से, कोई रोग से मुक्ति पा जाते हैं अथवा किसी का मुसीबत आप दूर कर देते हैं, तो आप किसी भी होस्पिटल में जा कर बैठिये जहाँ से लोग अपने रोग से मुक्त हो सकें |
कोई भक्त उन्हें यह कहने को तैयार नहीं और न वह मानव समाज का कल्याण चाहते है अगर वह मानव समाज का उत्थान चाहते तो वह भी अपनी दरबार दिल्ली के मेडिकल में ही लगाते | सत्य को जानना कौन चाहता है सत्य का उजागर करना तो और बात रही यहाँ तो सब असत्य के ही पक्षधर हैं | अब सच्ची बात कही जाये तो लोग गली देने लगते हैं क्या लिखा गया क्या बताना चाहता है लेखक किस लिए लिखागया उस पर चिंतन नहीं है किसी का तो किसी के विरोध करने पर सत्य का लिखना बोलना छोड़ देगा क्या ?
वाचा सत्यं हितं प्रियं स्वध्यायं चेती सेयं धर्माय | वाणी से सत्य हित,प्रिय तथा स्वाध्याय करता है, सो यह प्रवृत्ति धर्म का मूल है | अधार्मिक मनुष्यों को शान्ति कभी नहीं मिल सकती | अधर्माचरण कर के शान्ति की सुख की अभिलाषा करना ऐसा ही है जैसे धधकते हुए अग्नि कुण्ड में घुसकर शीतलता की कामना करना | अत: शान्ति की अभिलाषी को सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग ने में सदा उद्यत रहना चाहिए | यही है मानव धर्म तो आज से ही आप सभी यह प्रतिज्ञा करें की सत्य को धारण कर असत्य को त्यागते हुए हम अपना जीवन को मानव जीवन बनाने में सफलता प्राप्त करें | धन्यवाद = महेन्द्रपाल आर्य =9/7 /17 =

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