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मानव जीवन का श्रेष्ट कला है धर्म

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|| मानव जीवन का श्रेष्ट कला है धर्म ||

सृष्टि कर्ता ने धरती पर विचरण करने वाले जितने भी प्राणी हैं उन सब में मानव को एक विशेष मर्यादा दिया है, की वह मानव है और मानव वह इसलिए भी है की ज्ञान, विवेक, बुद्धि, गंभीरता नीर, अकल, इस प्रकार के जितने जो कुछ भी हैं वह अन्य किसी और प्राणी को विधाता ने नहीं दिया, सिर्फ और सिर्फ यह मानव को मिला है | मानव भी अपने किये कर्मों के अनुसार ही बना है, जन्म जन्मान्तरों के कर्मों के अनुसार ही मानव योनी को प्राप्त किया है |

इसी मानवता के आधार पर हम सबका नाम मानव पड़ा, अब सारे कर्तव्यों का दायित्व मानवों पर ही है अगर कोई उन कर्तव्यों को जानकर, समझकर पालन करता है तभी वह मानव कहला सकता है | अगर कोई उन कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो वह कदापि मानव कहलाने का अधिकारी नहीं बन सकता | शास्त्रों में यही बताया गया जो धर्म को छोड़ देता है वह पशु के समान है | अर्थात मानवों में और पशुओं में यही मात्र भेद है, अंतर है की हम धर्म पर आचरण करने के कारण हमारा नाम मानव है और पशुओं के लिए धर्म नहीं है इसी लिए उसका नाम पशु है |

इससे बात स्पष्ट हो गई की मानव मात्र के साथ जुड़ा है धर्म, जो मानवों को छोड़ अन्य किसी और प्राणी को यह सौभाग्य प्राप्त ही नहीं हुवा  जिसके लिए धर्म हो | धर्म एक है जो मानव मात्र के लिए है | और मत, पन्थ, सम्प्रदाय, अनेक हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा मत पन्थ का जन्म होता है | मत, पन्थ को धर्म नहीं कहा जाता और ना कहा जा सकता है, कारण मत पंथ बनते हैं व्यक्ति के द्वारा, और धर्म बनता है ईश्वर द्वारा | धर्म उसी के बनाये हुए हैं जो इस ब्रह्माण्ड का बनाने वाला है | यह आकाश, पाताल, धर्ती, सागर, सूरज, चाँद, सितारा, ग्रह, उपग्रह, रात, दिन जो कुछ भी है सब उसी के बनाये हुए हैं, और सब के लिए बनाया है | किसी जाति वर्ग सम्प्रदाय के लिए नहीं है और ना तो किसी मुल्क वालों के लिए हैं |

अगर यह सभी किसी व्यक्ति के बनाये होते तो मात्र वह अपने लोगों को देते दूसरों को नहीं देते, दूसरों के लिए नहीं होता | इससे इस बात का भी पता लगा की जब परमात्मा ने मानव को बनाया और मानव मात्र के लिए धर्म को बनाया, तो उस धर्म को मानव कहाँ से जान पाएंगे वही जानकारी जहाँ दी गयी उसी का नाम ज्ञान है, जिसे वेद कहा जाता है |

धरती पर जब मानव आया उसे धरती पर चलने के लिए ज्ञान चाहिए उसके बिना कर्म का करना संभव नहीं इसलिए विधाता ने मानव मात्र को जो ज्ञान दिया है उसे ही वेद के नाम से जाना जाता है | जो मानव बनने के साथ साथ परमात्मा ने आदेश और निषेद दोनों का उपदेश ऋषियों के माध्यम से मानव मात्र को दिया है |

यही कारण है मानव मात्र की भाषा संस्कृत में परमात्मा ने ज्ञान दिया, किसी मुल्क वालों की भाषा में ज्ञान देने पर परमात्मा पर पक्षपात का दोष लगता | यही कारण है की धरती पर मानव जन्म लेते जुबान खुलते ही स्वर निकलती है | और यह स्वर केवल संस्कृत में है अन्य किसी भी भाषा में स्वर नहीं है | यह अकाट्य प्रमाण है मानव मात्र को समझने के लिए | अगर कोई कहे हिब्रू भाषा में परमात्मा ने ज्ञान दिया, अथवा अरबी जुबान में अपना ज्ञान दिया | तो कभी भीं संभव नहीं, इस लिए नहीं की यह सभी भाषाएँ मात्र देश या मुल्क विशेष के लिए है | दूसरी बात है की धर्ती पर जन्म लेकर कोई भी बच्चा हिब्रू में अथवा अरबी में नहीं रोयेगा | धर्ती पर आने वाले सभी की आवाज एक ही होती है स्वर =अ–आ–इ–ई-उ–ऊ –ही निकलती है,दूसरी कोई और आवाज़ नहीं निकलती |

यह सभी प्रमाण मिलने के बाद भी कोई कहे, परमात्मा का दिया ज्ञान हिब्रू भाषा में है, या  फिर अरबी भाषा में है यह बात तर्क की कसौटी पर खरा उतरने वाली नहीं है | मानव उसी ज्ञान को अपनाते हुए अपना जीवन को बनाता है | सृष्टि का निर्माण मनुष्य के हाथ नहीं है, और न जन्म और मृत्यु मनुष्य के हाथ में है | इसका निर्माण एवं संचालन सृष्टि की उन अज्ञात शक्तियों द्वारा हो रहा है जिसे जानकर मनुष्य अपने जीवन की कार्य योजना बनाता है तथा उसी के अनुकूल चलकर मानव अपने जीवन को सुखी, संपन्न, समृद्ध, एवं विकासुन्मुख बनाता हुआ अपनी यात्रा तय करता है | सृष्टि का निर्माण एवं उसका संचालन विशिष्ट नियमों से हो रहा है, जिनको जानना आध्यात्म विज्ञान का विषय है तथा इन नियमों को जानकर उनके अनुसार चलने की विधि का नाम ही धर्म है | इसलिए धर्म मनुष्य मात्र के लिए एक ही है, इस यात्रा पथ पर सही ढंग से चलने के लिए एक मार्ग निर्देशक है जिसकी उपेक्षा करने से व्यक्ति तनाव ग्रस्त, अशांत एवं दुखी होता है, इससे व्यक्ति रोग ग्रस्त भी होता है |

धर्म केवल परलोक तथा मोक्ष का विज्ञान ही नही है बल्कि यह श्रेष्ठ जीवन का विज्ञान तथा श्रेष्ठ जीवन की कला भी है, इसके अभाव में श्रेष्ठ जीवन की कल्पना नही की जा.सकती | धर्म के बिना मनुष्य पशु जीवन से ऊपर उठ ही नही पाता, श्रेष्ठ जीवन न भोग से प्राप्त, होता है, न विलासिता से न त्याग से, न जन्म से प्राप्त होता है न मृत्यु से, न शिक्षा से प्राप्त होता है न धन से, न गृहस्थ से प्राप्त होता है न सन्यास से, न कर्म से प्राप्त होता है न अधर्म से | जीवन की श्रेष्ठता धर्म के बिना नही आ सकती | यह एक ऐसा पथ है जो व्यक्ति का सही मार्गदर्शन कर उसे उन्नति के शिखर पर पंहुचाता है, धर्म मनुष्य को ऐसे स्थान पर पंहुचा देता है जहाँ मनुष्य इस जीवन को श्रेष्ठता से जीता हुआ सभी प्रकार के दुखों से मुक्त होकर परमान्नंद को प्राप्त करता है | उस परमानन्द को प्राप्ति की चर्चा जहाँ की गई है उसी का नाम वेद है | जीवन का सबसे सुखद पहलु धर्म ही है जिसपर आचरण करने का नाम मनुष्य है और जिसे त्याग देने का नाम ही पशु है, यह कर्मकांड से ही प्राप्त होता है अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह,से प्राप्त होता है | शौच {पवित्रता } स्वाध्याय, तप, संतोष, ईश्वरप्रणिधान से प्राप्त होता है | यही  जीवन जीने का एक ढंग है जिससे मनुष्य उस सृष्टि के रचनाकार से अपने को जोड़ सकता है अथवा उसका सानिध्य प्राप्त कर सकता है, यह सारा उपदेश ऋषि और मुनियों ने अपने जीवन में अमल करते हुए मानव मात्र को दिया है बिना भेद भाव के |

मानव मात्र का दायित्व है उसी परमात्मा के दिए ज्ञान वेद को जानें उसपर अमल करते हुए अपना जीवन को सफल बनायें, और सृष्टि कर्ता का सानिध्य को प्राप्त करने योग्य बनाये तभी हम मानव कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं | धन्यवाद महेन्द्रपाल आर्य-25/6/18

 

 

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