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मानव मात्र का लक्ष्य है ईश्वर सानिध्य ||

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|| मानव मात्र का लक्ष्य है ईश्वर सानिध्य ||
यह बड़ा लम्बा प्रकरण है | किन्तु सहज भाव से इसे जानने व समझने के लिए ऋषि पातंजलि कृत योग दर्शन ही एक मात्र इस विषय का सहायक है | भली प्रकार से जानने और समझने के लिए योग दर्शन को देखना जरूरी है |

मुख्य रूप से मेरा कहना यह है की मानव मात्र को ईश्वर प्राप्ति जरूरी है, पर सवाल यह है की ईश्वर को बिना जाने उसे प्राप्त कोई कैसे कर सकता है ?

इसिलिए ऋषि दयानन्द जी की मान्यता है की ईश्वर को पहले जानना पड़ेगा तभी उसे प्राप्त करने का तरीका क्या है उसे समझना होगा | अगर ईश्वर को हमने नहीं जाना तो उसे कैसे समझेंगे की यही ईश्वर है |

इसिलिए वेद का उपदेश है की ईश्वर अप्राप्त नहीं है लोग उसे जानते ही नहीं और अज्ञानी बनकर उसे तलाशने में समय गवाते हैं | अर्थात ईश्वर कोई ढूंड ने या खोजने की चीज नहीं है वह मात्र जानने का ही विषय है |

ईश्वर को पाने के लिए क्या किसी ऋषि को पाना अथवा किसी ऋषि को मानने की जरूरत है ? की ईश्वर को पाने के साथ साथ किसी ऋषि को भी पाना जरूरी है ? वेद में इस प्रकार का कोई भी आदेश नहीं है, की परमात्मा को पाने के लिए अथवा परमात्मा का अनुगत्व स्वीकार ने के लिए किसी ऋषि का अनुयाई बनना पड़ेगा ? यह सर्वथा वेद में निषेध है कोई बिचौलिया नहीं है मानव के और परमात्मा के बीच | मानव अपने प्रयास और साधना से प्राप्त कर सकता है, जान सकता है, एक मात्र रास्ता है जानने का ही |

लेकिन कुरान इस से सहमत नहीं कुरान कहता है अल्लाह को पाने के लिए रसूल का अनुगत्व स्वीकारना ही होगा, नहीं तो अल्लाह को कोई नहीं पा सकता इसका प्रमाण कुरान में अनेक है | पर में एक प्रमाण कुरान से दे रहा हूँ इसे आप दुनिया वाले भी देखें पढ़कर |
وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَاحْذَرُوا ۚ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ [٥:٩٢]
और ख़ुदा का हुक्म मानों और रसूल का हुक्म मानों और (नाफ़रमानी) से बचे रहो इस पर भी अगर तुमने (हुक्म ख़ुदा से) मुँह फेरा तो समझ रखो कि हमारे रसूल पर बस साफ़ साफ़ पैग़ाम पहुँचा देना फर्ज है | यह सूरा 5 =आयात 92

इसके अतिरिक्त और भी प्रमाण है कुरान में | अब दुनिया वाले सोचें की सत्य वेद है अथवा कुरान ? महेन्द्र पाल आर्य = 17 /6/ 19 =

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