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मानव समाज को तबाह किया है मत पंथ विचारधारा ने |

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|| मानव समाज को तबाह किया है मतपंथ विचारधारा ने ||

यह सिद्ध बात है की 5000 वर्षों से पूर्व एक सत्य सनातन वैदिक धर्म को छोड़कर धरती पर दूसरा कोई मत या पन्थ नही था, क्योंकि वेदोक्त सब बातें विद्या व ज्ञान से परिपूर्ण है |

मतपंथों में विद्या विरुद्ध, सृष्टि नियम विरुद्ध, मानवता विरुद्ध यह जितनी भी बातें है जो अन्धविश्वास पर टिकी होने के कारण वह सब के सब वेद विरुद्ध है | वेद विरुद्ध आचरण होने  से अन्धविश्वास, स्वार्थ और धर्म से अलग होने पर अथवा वेद को छोड़ने पर वैदिक ज्ञान को  तिलांजलि देने से महाभारत का युद्ध हुआ |

इनके विचार अविद्या और अंधकार मय होने पर बुद्धि भ्रमक हो गई, और जिसके मन में जैसा आया वो वैसा करने लगे | इस अविद्या के कारण कोई-कोई अपने मतपंथ को जन्म दिया, इन सब मतों में वेद विरुद्ध होने से पुराणी, बौधिष्ठ, जैनी, इसाई और इस्लाम का जन्म हुआ |

इनसब मतों की भूल है व क्रम से एक के पीछे दूसरा तीसरा और चौथा चल पड़े, जबकि इन चारों की शाखा हजारों से कम नही,जो एक दुसरे से मेल नहीं खाता और आपस में ही विवाद देखने को मिलता है |

इन सब मतवादियों को इनके चेलों और अन्य सबको परस्पर सत्य असत्य के विचार करने में अधिक परिश्रम न हों, इसलिए इन सबने अपना अलग-अलग ग्रन्थ बना लिया |

इन ग्रंथों में सत्य का खंडन और असत्य का मंडन लिखा है,मानव कहलाने वालों को इन ग्रंथों के बारे में ग्रंथों में दिए गये विचार मानवता के पक्ष में है अथवा अपना मत चलाने के लिए मानवता विरुद्ध बातें इसमें लिखी गई आज इसको समझने का प्रयोजन है |

यह प्रत्येक मानव कहलाने वाले को उचित है, की इन मतपंथों के ग्रन्थ को अवश्य ही पढ़कर देखना चाहिए, इसलिए मै मानव कहलाने वालों के सामने इसे लिखना उचित समझा,इससे पहले मानव समाज की रक्षा करना या राष्ट्र की रक्षा करना संभव नही होगा |

प्रत्येक मानव कहलाने वालों को चाहिए पक्षपात को छोड़कर सत्य-असत्य का निर्णय लेते हुए, जो सत्य हो उसका ग्रहण और जो असत्य हो उसका परित्याग करने पर ही हम मानव कहला सकते है |

हम मानव कहलाने वालों के लिए मत पन्थों के ग्रंथों को पढ़कर जो, जो, बातें सत्य हो उन्हें स्वीकार करना और जो-जो असत्य हो उसका परित्याग करना ही मानवता है, सब मानव मात्र के लिए यह परम कर्तव्य भी है | अगर हम मानवता की रक्षा चाहते है तो हमारा और आपका यह केवल दायित्व नही अपितु परम कर्तव्य बनता है, मनुष्य होने के कारण सत्य- असत्य का निर्णय करने के लिए बिना कोई वाद-विवाद और विरोध के यह कार्य होना चाहिए, न की विवाद के लिए मात्र सत्य-असत्य के निर्णय के लिए हो |

कारण इसी मत मतान्तर के विवाद से अनेक अनिष्ट हुआ है मानव समाज का, इसलिए हम मानव कहलाने वालों को चाहिए सभी मत- पन्थों के मानने वालों को वेद विरुद्ध आचरण से छुड़ा कर वैदिक विचारधारा से अवगत कराएँ |

बिना विरोध और बैर भाव के मानव समाज से वैमनसता समाप्त करने के लिए एक ही रास्ता है सामने बैठकर ही सत्य व असत्य को जाने जिससे की मानव समाज का ही नही अपितु राष्ट्र का भला हो सके |

हमारी मानसिकता राष्ट्र विरोधी न होकर राष्ट्र भक्ति से मानव मात्र का भला हम कर सके | सभी मत और पंथ के मानने वालों से मेरी प्रार्थना है सत्य-असत्य के निर्णय के लिए हमें साथ बैठकर इसपर विचार विमर्श करना चाहिए | जिससे की मानव समाज से हिंसा, द्वेष और एक दुसरे के विरोधी न बनकर मानव समाज के उत्थान के लिए हम सबको सामने बैठ कर जो सत्य हो उसे मान लेना चाहिए |

इसी से मानव समाज का उत्थान होना संभव होगा, यह आह्वान सभी मत पंथ और मजहब वालों से महेंद्र पाल आर्य की है, आयें हम सामने बैठकर सत्य-असत्य को जानने वाले बनें हम मानव कहलाने वाले बने |

धन्यवाद के साथ,

महेंद्र पाल आर्य,  11/8/20

 

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