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मानों आर्यों का ही मेला था

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मानो आर्यों का ही मेला था |
आर्य जगत के भामाशाह् कहेजाने वाले स्वनाम धन्य श्रीठाकुर विक्रम सिंह जीअपने जन्मस्थली खेडी राजपूताना= जिला मुज़फ़्फ़र् नगर उ०प्र० मे तीन दिवसीयआर्य सम्मेलनअपने ग्राम केआर्य समाज का वार्षिक उत्सव बडे ही धूम धाम से मनाया |
 
माननीय श्रीठाकुर साह्ब के परिचित कई राजनेता गनो का भी आगमन हुवा था, आर्य विद्वानो की बडी उपस्थिति रही | हज़ारो नर नारियो ने वैदिक विचार सुनने के लिये तीनो समय अपनी हाजरी बनाये रखे थे |
 
सूबह 8 से 11 बजे तक यज्ञ जो मेरे ही ब्रह्मत्व में संपन्न होता रहा | यज्ञ के बाद भजन व् प्रवचन को लोग बड़े ध्यान से सुनते थे | फिर 2 बजे से 5 बजे तक भजन प्रवचन में बड़ी तायदाद में लोग बैठे रहते थे | फिर रात्रि 8 बजे से 11 बजे तक आसपास के गावों से लोग बड़ी तायदाद में उपस्थित होते थे |
 
माननीय ठाकुर साहब सब अतिथियों का भरपुर सेवा करते रहे भोजन जलपान से ले कर विद्वानों के आदर सत्कार में किसी प्रकार की कोई कमी नही रखी |
परमात्मा ने जितना धन उन्हें दिया उससे हज़ार गुना ह्रदय भी दिया | धनवान अनेक मिलेंगे पर दिल इतना बड़ा मिलना मुश्किल है | परमात्मा ने इन्हें दोनों चीज दी है | मैं परमात्मा से ठाकुर साहब की, दीर्घायु की कामना करता हूँ और उनकी यह उदारता वे कुशल व्यवहार से आर्य जन लाभाम्न्वित होते रहें इसी कामना के साथ महेंद्रपाल आर्य = वैदिक प्रवक्ता= 10/ 10/ 16=

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