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मुझपर दोष धरने वाले डॉ0असलम कासमी के विद्वता को देखें |

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मुझ पर दोष धरने वाले असलम कासमी के विद्त्वा को परखें||

उन्होंने मेरे लेखों का जवाब दिया है, मेरे जो सवाल है इस्लाम पर उसे उन्हों ने मात्र कुरान में मारो काटो की बातें जहाँ है सिर्फ उस की सफाई देने का प्रयास किया, वह भी बिना सिर पैर की बातों को सामने रखा जिसका जवाब मै पहले ही दे चूका हूँ |

जब कि मेरे सवाल नामा में उपर लिखा है की मै कौन बोल रहा हूँ यह न देखें मै क्या बोल रहा हूँ उस पर विचार करें | उन्जुर इला मा काला वला तनजुर इला मन कला | बात को परख,या पहचान ,कहने वाले को न देख | | أ نظر ألي ما قال ولا تنظر إلي من قال -بات کو پرکھ کہنے والے کو نہ دیکھ पर इन्हों ने मै कौन हूँ कहाँ का हूँ कहाँ पढ़ा हूँ ,पढ़ा या नहीं, पंडित किसलिए और कैसे हूँ अपनी किताब में यही सब चर्चा किया है | मेरे सवालों का जवाब देने की इल्म इनमे नहीं है | मै तो लिखा भी, ज़वाब देने के लिए इस्लाम जगत के पास वह कला नहीं कारण, इस्लाम ज़वाब देने का नाम नहीं है, सिर्फ मानने का ही नाम इस्लाम, मज़हब, दीन है | कारण जानकारी जितनी लेते जायेंगे इस्लाम का उतना ही पोल खुलता जायेगा | अब तक जो मै दर्शा चूका हूँ उतनेमे ही पाठक बृंद ज़रूर देख लिया होगा |

 

अब मै इनको ज़वाब देदूं ,मै महबूब अली था या नहीं इन्हें संदेह है ? जब की मै कोई हूँ कुछ भी हूँ मेरे सवालों का ज़वाब देने के लिए बैठे थे, अब ज़वाब देने की इल्म तो है नहीं, तो मुझे देखने लगे | कैसे अकल मंद लोग हैं देखें मुद्दे पर बात न कर, इधर उधर की बात किस प्रकार किया है देखें ?

 

यह जनाब लिखते हैं, की महेन्द्रपाल जी अगर बंगाली है तो हिंदी सही कैसे है? तो प्रमाण दिया की भारत के राष्ट्रपति बंगाली हैं वह हिंदी सही नहीं जानते,तो महेन्द्र पाल कैसे जानते हैं ? यानि यह बंगाल के नहीं हो सकते | सही पूछें तो मै आज भी हिंदी काम चलाऊ ही जानता हूँ | भाईयों यह अपने को phd कहते और लिखते हैं ,पर इनकी दिमागी विकास को देखें क्या लिखने बैठे थे और लिख क्या रहे ?

जब की इनके आदमी जो हापुड़ के अनवर अहमद हैं वह काफी दिनोसे जासूसी कर रहे हैं मै कौन हूँ कहाँ पढ़ा हूँ कहाँ इमामत की है आदि | बड़ौत तक इन्होंने पता किया की मै बरवाला में बड़ी मस्जिद का इमाम था या नहीं ? मेरी तो खुली किताब है मै किसलिए छुपाता भला, पर असलम कासमी ने लिखा की इस प्रकार कुछ गेर मुस्लिम, मुस्लिम नाम दे कर साजिश रचे हैं | तो असलम कासमी का मैं संदेह दूर करूँगा पहले, मेरी पुस्तक में साफ लिखा है मै कहाँ का हूँ, मैंने तायलीम हासिल कहाँ की, कहाँ मैंने इमामत की, और कहाँ रहता हूँ |

 

दूसरी बात तो यह है की यह किसलिए देख रहे,जो लिखा गया उसका जवाब तो यह नहीं है,क्या ज़वाब देनेकी इल्म है कासमी में या किसी और में यहाँ लिखा जा रहा है की अरबी की दूसरी जमात तक पढ़े, फिर लिखा कुछही दिन पढ़े होंगे, हो सकता है किसी मदरसे में रहे होंगे ?

मेरे भाई आप तो मेरे द्वारा लिखे गए सवालों का ज़वाब दे रहे थे फिर यह सब किसलिए देखने लगे? मै हिन्दी भाषी इलाके का हूँ या नहीं ? आपने जो पंडित होने का संदेह किया है ,वह इसलिए हुवा, की इल्म आपके पास नहीं है, अगर आलिम होते तो रुड़ी वाद से ऊपर उठते, अंध बिश्वास,और पाखंड से दूर होते,अन्ध बिश्वास और पाखंड क्या है मै पहले लिख चूका हूँ | देखें पंडित कोई जन्म से नहीं होता, और न ही पंडित कोई जाती है | जाती मानव मात्र का एकही जाती है, मानव जाती | समानःप्रस्वत्मिका स:जातिः| यानि प्रसव करने का तरीका जिनका एक है वह एकही जाती के हैं |

 

तो मनुष्य मात्र के एक ही जाती होते हैं, अपने गुण,कर्म स्वभाव,अनुसार वर्ण होता है | शास्त्र का कहना है जन्मना जायते शूद्रः,संस्कारात,दुय्ज उच्चते | यानि जन्म से हर कोई मानव शुद्र होता है, संस्कार से दुव्ज बनते हैं | यानि शुद्र का अर्थ है अंजान,कोरा जो कुछ नहीं जानता,जन्म से मनुष्य अनजान ही पैदा होता है उसे जानकारी कराई जाती है,उसे नैमित्तिक ज्ञान नही होता, सिर्फ साधारण ज्ञान होता है, उसे नैमित्तिक ज्ञान कराना पड़ता है |

यह इल्म इस्लाम के पास नहीं है और न जानता है इस्लाम. की नैमित्तिक ज्ञान किसको कहा जाता है | अब उसे ज्ञान के अनुसार, उसके विकास पर ध्यान दिया जायेगा की उसे पंडित बनाया जाता है, जिसमे गुण के ऊपर निर्भर होता है, जो वेद पढ़े, पढ़ाये, यज्ञ. करे,कराये,दानदे, और दान ले यह 6 गुण हैं पंडित के |

जन्म से कोई पंडित नहीं होता सब अपने कर्मों के अनुसार ही वर्ण चुना जाता है ? जो रक्षा करे वह क्षत्रीय,,जो ब्यापार करे वह वैश्य,जो सेवा करे वह शुद्र | इस्लाम इन ऊँची दर्शन को, कैसे समझ पाते भला ?

हमारे इतिहास में अनेक ऋषि,और ऋषिकाएं हुई है जो शुद्र कुल मे जन्म,लेकर अपने विद्या वह तप के वल पर ऋषि हुए है, पंडित कोई भी बन सकता है, जो योज्ञता का नाम है विद्वान को पंडित कहा जाता है | आप लोग अक्ल से खाली हो तो इन बातों को कैसे समझते भला ?

 

देखना जो आप जानते हैं ,कितनी अज्ञानता है देखें आप जानते है की पण्डित जन्मसे होता है किसी पण्डित का बेटा अपढ़ हो, और वह जूता सिलता हो,लोग उसे चमार कहेंगे,या पंडित ? यह इल्म आप को कहाँ से मिलती. आप जानते है. की समाज में पण्डित ही बड़ा है पूजनीय है | अगर यही बात होती, तो जो राम क्षत्रीय कुलमे पैदा हुए, और पण्डित उन्हें पूजरहे है या नहीं ? कृष्ण कौन सा कूल में जन्म लिया, उन्हें कौन पूजते हैं ? हमारे यहाँ पूजा कर्म की होती है, विद्वानों की पूजा होती है, स्वदेशे पूज्यते राजा.विद्वान सर्वत्रे पूज्यते, राजा अपने ही देश में पूजे जाते हैं. विद्वान की पूजा हर जगह होती है | पर आप क्या जानोगे की विद्वान कौन और कैसे होते हैं, या विद्वान कहते किसे हैं ?

 

कारण आप तो अपना अधिनायक,रास्ता देखानेवाला उन्हें मानते हैं. जो लिखने पढ़ने से कोई सम्पर्क, और सम्बन्ध, या ताल्लुक नहीं रखते थे | कुरान देखेंوَمِنْھُمْ اُمِّيُّوْنَ لَا يَعْلَمُوْنَ الْكِتٰبَ اِلَّآ اَمَانِىَّ وَاِنْ ھُمْ اِلَّا يَظُنُّوْنَ 78؀اور ان میں سے کچھ ایسے امی (اور ان پڑھ) ہیں جو کتاب کو

نہیں جانتے سوائے کچھ (بے بنیاد) امیدوں (اور آرزؤوں) کے، اور یہ لوگ محض ظن (و تخمین) پر چلے جا رہے ہیں،

अगर लोकाचार को देखेंगे,तो हम अपने शारीर से इसको देख और समझ भी सकते हैं, पर समझदारी अपने पास होनी चाहिए ना | वह समझदारी कही खरीदी नहीं जाती,वह तो आती हैं इल्म से और लोग इल्म को सीखते है,अपने इसी समझदारी को बढ़ाने के लिए, की हमें जाहिल न कहें. अनपढ़. न कहदें.यही सब कारण है विद्यालय तक जानेका |

पर करें तो क्या जो लोग यह समझते है. की भले ही विद्यालय में कुछभी पढ़े पर हम मानेगे अपनी बात जो इस किताब में हम पढ़ते हैं,इसके बाहर हम नहीं जाते | अब वह किताब अकल पर भले ही ताला डालने की बात करे, या कहे हम मानेगे उसी को | इसमें फिर पढ़ाने वाले की क्या गलती है. वह यही कहेंगे की मुर्ख कितनी बार समझाता हूँ, की यह बात दिमाग से कुबूल करने की नहीं है.किसलिए तू पढ़ा है इसके पीछे ?

निरुत्तर हो कर भी अकल में ताला डाल कर उसी बात को मानने लगजाते हैं | जो ज्ञान विरुद्ध, विज्ञानं विरुद्ध, सृष्टि नियम विरुद्ध, यहाँ तक के मानवता विरुद्ध बात को अपने जीवन में उतारते है | वह किस प्रकार. तो फिर देखें وَاِذْ فَرَقْنَا بِكُمُ الْبَحْرَ فَاَنْجَيْنٰكُمْ وَاَغْرَقْنَآ اٰلَ فِرْعَوْنَ وَاَنْتُمْ تَنْظُرْنَ 50؀ اور (وہ بھی یاد کرو کہ) جب ہم نے پھاڑا سمندر کو تمہارے لئے راستہ بنانے کو، اور (پھر اسی میں) غرق کر دیا ہم نے (فرعون کو اور) فرعون والوں کو، جب کہ تم لوگ خود (اپنی آنکھوں سے یہ سب کچھ دیکھ رہے تھے ف ٧

अब ध्यान से देखें अल्लाहने क्या कहा =और यह भी याद करो की जब हमने फाड़ा समुन्दर को तुम्हारे लिए रास्ता बनाने को और फिर उसी में,गर्क कर दिया हमने फिराऊन. को जब की तुम लोग खुद अपनी आँखों से यह सब कुछ देख रहे थे |

 

अब देखें समुन्दर को अल्लाह ने फाड़ा किसी के लिए रास्ता बनाया, समुन्दर को बाँध कर रास्ता तो बनाते सुना और देखा भी, होलैंड में यह अपनी आँखों से देखकर आया, पर यह कुरान का कौन सा बिज्ञान है की समुन्दर को फाड़ा.गया ? और वह भी किसलिए फिराऊनिओं, को हलाक [मारने] के लिए. डुबोने के लिए |

विचार करें की यह काम अगर अल्लाह का है तो डाकू, दश्यु. कातिल, हत्यारा दुनिया किसको कहेगी भला ? यह किस दिमाग से इसे तस्लीम किया जाये ? وَاِذِ اسْتَسْقٰى مُوْسٰى لِقَوْمِهٖ فَقُلْنَا اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْحَجَرَ ۭ فَانْفَجَرَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًا ۭ قَدْ عَلِمَ كُلُّ اَُاسٍ مَّشْرَبَھُمْ ۭ كُلُوْا وَاشْرَبُوْا مِنْ رِّزْقِ اللّٰهِ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ 60۝ اور (وہ بھی یاد کرنے کے لائق ہے کہ) جب موسیٰ نے اپنی قوم کیلئے (ہم سے) پانی کی درخواست کی، تو ہم نے ان سے کہا کہ مارو تم اپنی لاٹھی کو فلاں پتھر پر، پس (لاٹھی کا مارنا تھا کہ) اس سے پھٹ پڑے بارہ چشمے (اور بنی اسرائیل کے بارہ قبائل میں سے) ہر گروہ نے اچھی طرح (دیکھ اور) پہچان لیا اپنے گھاٹ کو، (اور ہم نے ان سے کہا کہ) کھاؤ پیو تم لوگ اللہ کے دئیے ہوئے میں سے، اور مت پھرو تم اس زمین میں فساد مچاتے

और वह भी याद करने के लायेक हैं.जब मूसा ने अपनी कौम के लिए हमसे पानी की दरख्वास्त की, तो हमने उनसे कहा के मारो तुम अपनी लाठी को फलाना पत्थर पर,पस लाठीका मारना था के उससे फूट पड़े बारा [12 ]चश्मे ,और बनी इस्राईल के बारा क़बाइल में से हर ग्रह ने अच्छी तरह देख और पहचान लिया अपने घाट को और हम ने उनसे कहा के खाव पियो तुमलोग अल्लाह के दिए हुए मेसे, और मत फिरो तुम इस जमींन में फ़साद मचाते |

अब पढ़े लिखे लोग ही बताएं की पत्थर से चश्मा [फौवारा ] फूट पड़ना या पानी निकलना इसमें कौन सी विज्ञानं की बात है ? और पढ़े लिखे लोग इसको किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं ? किन्तु मज़हब में इन्ही सब बातों का मानना ही है,यही तो अंतर है मज़हब में और धर्म में | तथा वर्तमान समय की भोगवादी [मादा परस्ती ]की लहर से बनी हुई लोगों की समझ है |

इसके अतिरिक्त मजहब अथवा मतमतानन्तर, धर्म से भिन्न होने के कारण. मानव आपस में रक्तपात करने कराने में न देर लगाते और न हीं संकोच करते | भारत में राजनैतिक से जुड़े लोग अनुचित हस्ताक्षेप कर भारत में धर्म के नाम पर अधर्म करने वाले. मतमतान्तरों के अविद्या जनक आचार व्यवहार तथा साम्प्रोदायिक बैर विरोध और आपस में झगड़े हैं, और यह राष्ट्रीय एकता में वाधक है | यह एक अकाट्य सत्य है की जिससे मत मतान्तरों के अनुयायी भी इसे इंकार नहीं कर सकते, अथवा अपने माथे से इस कलंक को नहीं मिटा सकते |

यह ज़वाब डॉ0 असलम कासमी रुड़की वाले को दिया, इन्हों ने मुझपर एक पुस्तिका निकली थी, जिसका ज़वाब मैंने भी किताब लिखकर दिया है | जिसका नाम है अक्ल्पर दखल न देने वाले धर्म और मजहब के भेद को क्या जानें ? महेन्द्रपाल आर्य = 28 /11 /20

 

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