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यह भाई भतीजा व परिवारवाद ही राष्ट्र का घातक है |

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यह भाई भतीजा और परिवार वाद समाप्त होना चाहिए ||
भारत से यह भाई भतीजा व परिवारवाद की राजनीती खत्म नही हो सकती कोई कानून बनना उचित नहीं की एक परिवार से 20 लोगों का नेता मंत्री बनना स्माप्त हो।
 
क्या हम भारत वासियों ने कभी इन बातों पर विचार किया है, की इससे समाज का कितना बड़ा नुकसान हो रहा है ? एक परिवार ही सम्पूर्ण विधानसभा में छाए हुए हैं मानो विधानसभा की कुर्सी उन परिवार वालों के लिये कम पड़ रही हो ?
इसी परिवारवाद से समाज का कितना बड़ा नुकसान हो रहा है यह किसी के भी दिमाग में नही आ रही है यह बातें | इसे नेहरु परिवार से ही शुरू किया गया हमारे देश में अगर यह बात न होती तो आज भारत में उन्हें प्रधानमन्त्री पद का प्रत्याशी बनाने का प्रयास नही कर पाते लोग, की जिन्हें सम्पूर्ण भारत वर्ष कितना बड़ा है उसी का ही ज्ञान नही है |
भारत के प्रधान मन्त्री देखना चाहते हैं कांग्रेसी उन्हें, की जिसे भारतीय इतिहास का ही ज्ञान नही है | इस देश का असली नाम क्या है उसका भी ज्ञान नही जिन्हें उसी को इस देश का प्रधान मन्त्री बनाने का ख्वाब देख रहे हैं | वह दिन मुझे याद जब राष्ट्रपति अबुलकलाम साहब ने सुनाया था सोनिया के लिये,की मेडम जो इस देश के मूल निवासी नही है, वह इस देश का प्रधान मन्त्री नही बन सकता |
 
कांग्रेसी जन इसे यह कह कर प्रचार करते रहे की सोनिया गाँधी ने प्रधान मन्त्री पद को ठुकरा दिया | यह कितना बढ़ा झूठ है, सोनिया ने देखी, भले ही मैं इस देश का मूल नही हूँ पर राहुल तो इस देश का मूल है उसे आगे करो यह हुवा इस देश में परिवारवाद का नतीजा | की जो भले ही राजनीती नही जाने राजनीती करना नही आये उसे प्रधानमन्त्री बनाने की परिपाटी ही कितनी गलत है की देश को रशातल में ले जाने साजिश है |
जरा विचार करें की जब हम किसी भी नौकरी करने के लिये किसी भी कार्यलय में जाते है तो हमें दरखास्त देनी पड़ती है उसमें हमारी सारी योग्यता यानि हमारी पढ़ाई हमारा अभिज्ञता उसमें सभी जान करी देने होती है,और यह सरकारी नियम भी है | अब जिस विभाग में हम नौकरी के लिये गये वहां हमारी जानकारी की परीक्षा ली जाती है | उस परिक्षा में पास करने के बाद ही हमारी बहाली होती है अगर उसमें हम उतीर्ण नही हो पाए तो वहां हमें नौकरी नही मिलती |
 
इसी बात को राजनीती में लागु नही करना चाहिए क्या ? हमारी योग्यता है अथवा नही मन्त्री बनने का, उसे देखा जाना चाहिए अथवा नही ? यह सूझ बुझ हमारी भारत की राजनीती में कहाँ है ? यहाँ तो मन्त्री उन्हें बनाया जाता है जो अपना नाम भी लिखना नही जानता | हमारी भारतीय राजनीती में उन्ही को प्रान्त का मुख्य मन्त्री बना दिया जाता है | पति थे, तो पति ने पत्नी को बनादिया, भले ही जिन्हें सचिवालय और शौचालय का ज्ञान ही न हो |
 
यह भारतीय राजनीती है अगर परिवारवाद की बातें न होती तो राहुल जैसे, अरविन्द केजरीवाल जैसे अ परिपक्य लोग कोई प्रधान मन्त्री का ख्वाब नही देखते या प्रान्त के मुख्यमंत्री नही बन सकते |
हमरे भारतीय राजनीती में जिन्हें लोग समाजवादी पार्टी बताते हैं वहां एक परिवार से ही 13 लोग लगभग, कोई लोकसभा,और कोई विधान सभा में बैठे हैं | अब भारत के लोग यह सोचें की हमारा धन एक परिवार में कितना जा रहा है ?
 
फिर आप गरीबी दूर करने की बात कर रहे हैं, अरे एक ही परिवार में धनों का भरमार किया जा रहा है, मानो प्रान्त की आमदनी सारे उसी परिवार के लिये हो रही है | यह कौनसा न्याय है मानव समाज के लिये, क्या इसे समाज वाद कहा जा सकता है अथवा भारत में इसी का नाम समाजवाद है ?
 
बिहार में भी लालूप्रसाद ने अपने बेटे को मन्त्री बनाया जिसे शपत पत्र पढना ही नही आया दोबार प्रयास करना पड़ा राज्यपाल को | तो यह क्या है राजनीती देश हित में कहाँ है यह तो मात्र अपने परिवार हित ही हो रहा है | भारत सरकार को इसपर गंभीरता से सोचना चाहिए और एक स्वस्थ विचार धारा के अन्तर्गत कानून बनाना चाहिए जिससे कोई किसी पर ऊँगली ना उठा सके कहीं किसी के साथ पक्षपात न हो | सब को समान अधिकार मिले, सब को समान न्याय मिले | किसी को भी यह न लगे की सारा धन एक ही परिवार के लिये लग रहा है ? कोई यह न कह सके की सरकार ने कैसा अनपढ़ जाहिल को मन्त्री बना दिया ?
 
प्रमाण के तौर पर जिस समाज के, संचालन कर्ता, या जिस समाज के अधिनायक ही लिखना पढ़ना नही जानता और पढ़े लिखे लोगों के रहने पर भी किसी अपढ़ को जब समाज का अगवाह बनायेंगे तो उस समाज की वही दशा होगी जो आज सम्पूर्ण विश्व में यत्र तर्त्र, देखा जा रहा है | यही कारण बना मानव समाज को सुचारू रूपसे गति देने के लिये हमेशा पढ़े लिखे लोगों की ज़रूरत होती है | किसी अनपढ़ से समाज का उत्थान नही हो सकता है, पतन भले ही हो जाय |
 
मेरी बातों को गंभीरता से हर राजनेताओं को, हर कानूनविदों को और समाज में जिन्हें विद्वान कहे जाते हैं उन सभी लोगों को इस पर विचार करना चाहिए | और सत्य का धारण और असत्य का परित्याग कर ही समाज का भला कर सकते हैं | कारण यहाँ बात समाज की होगी परिवार की नही तभी जनमानस का कल्याण होना संभव है भारत का उत्थान उसी में है | धन्यवाद के साथ >
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता= दिल्ली =11/11/16=

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