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युसूफ का किस्सा आगे सुनिए, अल्लाह क्या फरमाते हैं ||

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युसूफ का किस्सा आगे सुनिए, अल्लाह क्या फरमाते हैं ||
सभी भाइयों ने मिलकर युसूफ को मारने का प्लान बना लिया, और कुएँ फेकना ही निर्धारित हुआ |
لَّقَدْ كَانَ فِي يُوسُفَ وَإِخْوَتِهِ آيَاتٌ لِّلسَّائِلِينَ [١٢:٧]
(ऐ रसूल) यूसुफ और उनके भाइयों के किस्से में पूछने वाले (यहूद) के लिए (तुम्हारी नुबूवत) की यक़ीनन बहुत सी निशानियाँ हैं | आयात 7 –
إِذْ قَالُوا لَيُوسُفُ وَأَخُوهُ أَحَبُّ إِلَىٰ أَبِينَا مِنَّا وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّ أَبَانَا لَفِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ [١٢:٨]
कि जब (यूसूफ के भाइयों ने) कहा कि बावजूद कि हमारी बड़ी जमाअत है फिर भी यूसुफ़ और उसका हकीक़ी भाई (इब्ने यामीन) हमारे वालिद के नज़दीक बहुत ज्यादा प्यारे हैं इसमें कुछ शक़ नहीं कि हमारे वालिद यक़ीनन सरीही ग़लती में पड़े हैं | 8
اقْتُلُوا يُوسُفَ أَوِ اطْرَحُوهُ أَرْضًا يَخْلُ لَكُمْ وَجْهُ أَبِيكُمْ وَتَكُونُوا مِن بَعْدِهِ قَوْمًا صَالِحِينَ [١٢:٩]
(ख़ैर तो अब मुनासिब ये है कि या तो) युसूफ को मार डालो या (कम से कम) उसको किसी जगह (चल कर) फेंक आओ तो अलबत्ता तुम्हारे वालिद की तवज्जो सिर्फ तुम्हारी तरफ हो जाएगा और उसके बाद तुम सबके सब (बाप की तवजज्जो से) भले आदमी हो जाओगें | आयात 9
قَالَ قَائِلٌ مِّنْهُمْ لَا تَقْتُلُوا يُوسُفَ وَأَلْقُوهُ فِي غَيَابَتِ الْجُبِّ يَلْتَقِطْهُ بَعْضُ السَّيَّارَةِ إِن كُنتُمْ فَاعِلِينَ [١٢:١٠] सब ने (याक़ूब से) कहा अब्बा जान आख़िर उसकी क्या वजह है कि आप यूसुफ के बारे में हमारा ऐतबार नहीं करते | आयात 10

यह प्रमाण इबने कसीर पेज 633 पारा 12 सूरा 12 युसूफ आयात 6,7,8, का सन्दर्भ = बशारत और नसीहत भी = हजरत याकूब अलैहिस्सलाम अपने लखते जिगर हजरत युसूफ अलैहिस्सलाम को उन्हें मिलने वाले मर्ताबों की खबर देते हैं के जिस तरह उसने खवाब में उसने तुम्हें यह फ़ज़ीलत दिखाई इसी तरह वह तुम्हें बुलंद मर्तवा नबूवत का भी आता फ़रमायेगा – और तुम्हें खवाब की ताबीर सिखा देगा – और तुम्हें अपने भर पुर नेयमत देगा – यानि नबूवत – जैसे के इससे पहले इब्राहीम खालिलुल्लाह को और हजरत इसहाक अलैहिस्सलाम को अता फरमा चूका है जो तुम्हारे दादा और पर दादा थे – अल्लाह ताला उससे खूब वाकिफ हैं – के नबूवत के लायेक कौन हैं ?

युसूफ अलैहिस्सलाम के खानदान का तयारुफ़ परिचय हजरत युसूफ और उनके भाइयों के वाकेयात इस काबिल हैं के उनका दरयाफ्त करने वाला उनसे भुत ही इबरत हासिल कर सके और नसीहतें ले सके – हजरत युसूफ के एक ही माँ से दुसरे भाई बुनियामिन थे – बाकि और भाई सब दुसरे माँ से थे – यह सब आपस में कहते हैं के वल्लाह अब्बा जान हम से ज्यादा उन दोनों को चाहते हैं – तयाज्जुब है के हमपर जो जमायत हैं उनको तरजीह देते हैं जो सिर्फ दो हैं – यकीनन यह तो वालिद साहब की सरिह गलती है – यह यद् रहे के हजरत युसूफ अलैहिस्सलाम के भाइयों की नबूवत पर दर असल कोई दलील नहीं – एयर इस आयत का तर्ज़े बयान तो इसके बिलकुल खिलाफ पर है – और लोगों का बयान है के इस वाकिया के बाद उन्हें नबूवत मिली लेकिन यह चीज भी मुहताज दलील है, और दलील में आयते कुरानी

कुलु अमन्ना = में से लफ्ज़ इसबात पेश करना भी इह्तेमाल से ज्यादा व्क्य्त नहीं रखता – इस लिए के बतून बनी इस्राईल को अस्बात कहा जाता है – जैसा के अरबी को कबायेल कहा जाता है और यजाम को शुयुब कहा जाता है – पस आयत में सिर्फ इतना ही है –के बनी इस्राईल के अस्बात पर व्ही इलाही नाजिल हुई उन्हें इसलिए अजमालन जिक्र किया गया है- के यह भुत थे लेकिन हर सब्त बर आदरान युसूफ में से एक की नसल थी – पस इसकी कोई दलील नहीं – के खास उन भाइयों को अल्लाह ताला ने खलयत नबुव्वत से नवाजा था या नहीं – वल्लाह आयलंम {अल्लाह जाने}

नोट :- लेखक ने क्या लिखा है देखें अपने लेखनी पर भी उन्हें भरोसा नहीं है, और लिख दिया अल्लाह जाने, यहाँ बात चल रही थी हजरत युसूफ की, अल्लाह ने जिन्हें पैगम्बर बनाकर भेजा उनके और एक भाई जो उनके सगे एक माँ से थे उनके लिए भी कहा जाता है की वह भी पैगम्बर थे – जिनका नाम बुनियामिन था, बाकि जो और दुसरे माँ से दस भाई थे उनमें से कोई नबी नहीं था | यहाँ हजरत याकूब युसूफ के पिता – और भाइयों से ज्यादा लगाव नहीं रखते थे, और इनयुसूफ से और उनके भाई बुनियामीन से नज्दिकी रखने के कारण – बाकि दस भाई थे वह परेशन थे बाप के इस व्यबहार से – के बाप सब से मोहब्बत नहीं रखते इन दोनों से ही मोहब्बत करते हैं, इस भावना ने भाई भाई में एक खाई बना दिया आपस में बहुत ज्यादा मन मुटाव रहने लगा | इसके आगे अल्लाह का क्या कहना है उसे देखें

यह प्रमाण इबने कसीर पेज 633,634, पारा 12,सूरा 12,युसूफ आयात 9,10 का सन्दर्भ =फिर आपस में कहते हैं एक करो न रहे बाँस और न बजे बाँसुरी युसूफ का पत्ताही काटो न यह हो न हमारी राह्का कांटा बने हम ही हम नज़र आयें और अब्बा की मोहब्बत सिर्फ हमारी ही साथ रहे – अब इसे बाप से हटा ने की दो सूरतें है या तो इसे मार ही डालो – या कहीं इसे दूर दराज जगह फेंक आओ – के एक की दुसरे को खबर न हो – और यह वारदात करके फिर नेक बन जाना तौबा करलेना अल्लाह माफ़ करने वाला है,

यह सुनकर एक ने मश्वरा दिया जो सबसे बड़ा था – और उसका नाम रुबिल था – कोई कहता है यहूद था कोई कहता है शमयूँन था –न उसने कहा भाई यह तो न इंनसाफी है – बेवजह बेकसूर दुश्मनी अदावत खून न हक़ गर्दन पर लेना तो ठीक नहीं यह भी कुछ अल्लाह की हिकमत थी रब को मंज़ूर ही न था उनमें युसूफ की कतल करने की हिम्मत ही न थी – मंज़ूर रब तो यह था के युसूफ को नबी बनाये बादशाह बनाये और उन्हें आजिजी के साथ उसी के सामने खड़ा करे –बस उनके दिल रूहेल के राय से नरम हो गये –और तय हुवा के इसे किसी गैर आबाद कुएँ की तह में फेंक दे –

कितादाह कहते हैं के यह बैतूल मुक़द्दस का कुँवा था –उन्हें यह ख्याल हुवा के मुमकिन है की मुसाफिर वहाँ से गुजरें और वह उसे अपने काफिले में ले जाएँ,फिर कहाँ यह और कहाँ हम ? जब गुड दे कर काम निकलता हो तो जहर क्यों दो ? बगैर कतल किये काम मकसद हासिल होता है तो क्यों हाथ खून से रंगों – इनके गुनाह का तसव्वुर करो यह रिश्ते दारी को तोड़ने बाप के नफ़रमानी करने झूठे पर जुल्म करने बे गुनाहों को नुक्सान पहुँचाने बड़े बूढ़े को सताने और हकदार का हक़ काटने हुरमत व फ़ज़ीलत का खिलाफ बुजुर्गी को टालने और अपने बाप को दुःख पहुँचाने और उसे उसकी कलेजे की ठंडक पहुँचाने और आँखों के सुख से हमेशा के लिए दूर करने और बूढ़े बाप अल्लाह के लाडले पैगम्बर को इस बुढ़ापे में नकाबिल बर्दाश्त सदमा पहुँचाने और उस बेसमझ बच्चे को अपने महरबान बाप की प्यार भरी निगाहों से हमेशा उझल करने के दर पे हैं –

अल्लाह के दो नबियों को दुःख देना चाहते हैं –महबूब व मुहब्बत में तिफिरका डालना चाहते हैं – सुख के दिनों को दु:ख में डालना चाहते हैं- फुल से नाजुख बेजुबान बच्चे को उसकी मुश्फिक बूढ़े बाप की नरम व गरम गोदी से अलग करते हैं – अल्लाह उन्हें बख्शे आह शैतान ने कैसी उलटी पढाई है और उन्हों ने भी अपनी बदीपर कमर बांधी है |

नोट :- मैंने पहले ही बताया था की अब अल्लाह क्या कहते हैं देखें –यहाँ कहा गया की सभी भाईयों ने मिलकर युसूफ को रास्ते से हटाने का तरीका निकलना चाहा जो बड़े वाले भाई थे उन्हों ने सब को सुझाव दिया की इसे ख़त्म मत करो किसी दूर दराज के कुएं में फेक दो – आते जाते राहगीर उसे उठा कर ले जायेंगे – फिर यह कहाँ और हम लोग कहाँ | इसमें लेखक ने दोष शैतान को दिया की शैतान ने कैसा बहका दिया युसूफ के भाइयों को | यह है इस्लामिक मान्यता काम खुद करे और दोष शैतान पर धरे | इन्सान का काम क्या है गलती और सही का निर्णय लेना – निर्णायक कौन है बुद्धि अब किसी की बुद्धि मारी गई हो वह उससे काम नहीं ले सकता कारण जिसे निर्णय करना है वही ख़राब हो गई और यहाँ शैतान को दोष दिया जा रहा है | किन शैतान ने उन लोगों को युसूफ को मरने के लिए बहका दिया यह है इस्लाम वालों की अक्लमंदी, इस्लाम की सोच, आर इन इस्लाम वालों का अल्लाह भी यही है जो इन्हीं बातोंपर मुहर लगा रहे हैं |

कल तक सूरा युसूफ की किस्से को आप लोगों ने आयात 6 तक देखा था आज उससे आगे आयात 10 तक बताया गया है | किस्सा कितना मनोरम है देखते जाएँ कुरान में अल्लाह ने क्या फरमाया है |
महेंद्र पाल आर्य =9 /6 /20

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