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विधाता ने हमें क्या बनाया, मानव ईसाई या मुस्लमान ?

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विधाता ने हमें क्या बनाया, मानव या ईसाई, मुस्लमान ?

मानव एक सामाजिक प्राणी है, जनमानस ही मानवसमाज है, जिसे किसी भी अपना पराया का ध्यान रख कर चलना पड़ता है | लोकाचार ही मानव जीवन का लक्ष्य है, समाज में दो  प्रकार के लोग होते हैं अच्छे और बुरे | यह मानव कहलाने वाले के व्यव्हार से पता लगता है उसके कर्मों से ही व अपनी पहचान बनाता है | अच्छे और बुरेकी पहचान उसे अपने आप को ही बनाना पड़ता है | किसीने ठीक ही कहा,अमलसे बनती है जिन्दगी जन्नत भी और जहन्नुम भी | देखें कुरान सूरा मायदा =आयत 40 को =अल्लाह जिसे चाहे सजा दे ना दे | पूरी कुरान में 35 जगह कहा एक प्रमाण दिया हूँ |

أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ وَيَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [٥:٤٠]

ऐ शख्स क्या तू नहीं जानता कि सारे आसमान व ज़मीन (ग़रज़ दुनिया जहान) में ख़ास ख़ुदा की हुकूमत है जिसे चाहे अज़ाब करे और जिसे चाहे माफ़ कर दे और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है

 

किन्तु कुरानी अल्लाह तो जिसे चाहेगा उसे ही भेज देंगे अब यह बात अपने आप ही कट गई कि मानव अगर अपने कर्मों के अनुसार जन्नत और जहन्नुम को पाते है फिर अल्लाह का यह कहना जिसे चाहे उसे भेजे की अहमियत क्या रह गयी, अल्लाह का यह कहना की जिसे चाहे उसे जन्नत भेजे यह बात अपने आप में खोखली हो गयी |

अब प्रश्न है अगर अल्लाह जिसे चाहे उसे भेज दे तो यह अल्लाह पर ही निर्भर है किसको भेजना किसको नहीं भेजना, अब जन्नत में जाने के लिए करना क्या होगा ? तो पता चला अल्लाह को खुश करना होगा, अगर वो किसी पर खुश हो गया तो उसकी जन्नत पक्की | अब अल्लाह को खुश करने के लिए क्या चाहिए तो अल्लाह ने फ़रमाया इस्लाम स्वीकार करना होगा दूसरा कोई रास्ता नहीं है मेरा, अगर जन्नत जाना चाहते हो तो एक मात्र रास्ता है इस्लाम स्वीकार करना |

وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ [٣:٨٥]

और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आख़िरत में सख्त घाटे में रहेगा |

अल्लाह ने इमरान आयत 85 में कहा इस्लाम छोड़ दूसरा कोई दीन स्वीकार नहीं |

 

इसाई भी यही कहते है मानव अगर कोई अपना कल्याण चाहता है, पापों से मुक्ति पाना चाहता है, स्वर्ग जाना चाहता है तो एक मात्र रास्ता है इसाई बन जाना | इससे यह बात बिलकुल स्पष्ट हो गयी की जन्म से मानव कोई न इसाई है न कोई मुसलमान | पर यह कोन हैं धरती पर जो ओरोँ को इसाई और मुसलमान बना रहे है ? पता चला मानव ही एक दुसरे को इसाई और मुसलमान बना रहे है | अब सवाल खड़ा हो गया जब मानव धरती पर आया तो वो क्या था ?  जबकि इसाई और मुसलमान तो इसी दुनिया में आकर बना अथवा बनाया गया किन्तु जब वो धरती पर आया तो क्या बन कर आया, या तो दुनिया बनाने वाले ने उसे क्या बना कर भेजा ?

इसका जवाब किसके पास है मुसलामानों के पास अथवा ईसाईयों के पास?आज दुनिया जानना चाहती है इसाई और मुसलामानों से कि आप लोग कुरान और बाइबिल का हवाला देकर ओरों को मुसलमान और इसाई बना रहें है तो उसी कुरान का अल्लाह और बाइबिल का god किसी को, ईसाई, और मुसलमान बना कर धरती पर क्यों नहीं भेजा ? फिर इन बाइबिल और कुरान का मानव मात्र के लिए ईश्वरीय उपदेश होना क्योंकर सिद्ध हो रहा है, यह मानव मात्र के उपदेश होने का क्या प्रमाण है ?

क्या अल्लाह तथा god ने यह ठेका सिर्फ इसाई और मुसलामानों को दिया है कि मेरे इन बनाये हुए मानवों को इसाई और मुसलमान बनाओ ? जो काम मुझ दुनिया बनाने वाले से नहीं हुआ वाही काम आप इसाई और मुसलामानों को ठेका दे रहा हूँ |

फिर बाइबिल और कुरान का ये उपदेश हो की जब तक पूरी दुनिया के लोग इसाई या मुसलमान न बने उन्हें मौत के घाट उतारो | जब तक नमाज़ रोज़ा ज़कात न दे उसका रास्ता रोको यह हुकुम कुरान में अल्लाह ने मुसलमानों को दिया, सवाल पैदा होता जब अल्लाह ने सृष्टि की रचना की जिस रचना में उसने मानव भी बनाया तो उन्हें जन्म से इसाई और मुसलमान क्यों नहीं बना कर भेजा ? फिर तो यह झगड़े का कोई सवाल ही नहीं रहता | आज मानव कहलाने वाले यह सवाल बाइबिल और कुरान के मानने वालों से जानना चाहता है की आखिर कुछ न कुछ जवाब देकर मानव कहलाने वालों का जिज्ञासा शांत करें |

महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता = 26 /6 /17 =

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