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वेदुत्पत्ति ऋषि की दृष्टि में -1

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|| वेदोत्पत्ती,ऋषि की दृष्टि में ||पार्ट 1
यह अपने आप में एक बहुत बड़ा विषय है, विशेष कर मेरे सामने कारन जब मैं दुनिया वालों से कहता हूँ कोई भी मजहबी पुस्तक ईश्वरीय नही है, तो लोग मुझसे यही सवाल करते हैं फिर वेद ही ईश्वरीय ज्ञान किस प्रकार है ? यद्यपि मैं बोहुत बार लिखा भी, और विडिओ भी बनाकर डाला है | फिर भी थोड़ी सी जानकारी मैं ऋषिवर देव दयानंद की विचारों को आप लोगों तक पहुँचने का प्रयास कर रहा हूँ |
ऋषि दयानंद जी ने यजुर्वेद के =आ० 31 के मन्त्र न० 7 का प्रमाण दिया है जो निम्न है |
तस्माद्यज्ञात्ससर्वहुत ऋचः समानी जज्ञिरे | छ्न्दासी जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तास्माद ज़ायत ||
सत् जिसका कभी नाश नहीं होता,चित् जो सदा ज्ञानस्वरुप है, जिसको अज्ञान का लेश भी कभी नही होता,आनन्द जो सदा सुखः स्वरुप्, और सब को सुखः देने वाला है, इत्यादि लक्षणो से युक्त पुरुष जो सब् जगह मे परिपूर्ण हो रहा है, जो सब मनुष्यों का उपासना के योग्य इष्टदेव और सब सामर्थ से युक्त है,उसी परब्रह्म से {ऋचः}ऋग्वेद {यजु:}यजुर्वेद {समानी}सामवेद और {छन्दासी } इस शब्द से अथर्व भी यह चारों वेद उत्पन्न हुए हैं | इसी लिए सब मानुषों को उचित है की वेदोंका ग्रहण करें और वेदोक्त रीती से ही चलें |
“जज्ञिरे” और “अजायत” इन दोनों कृयाओं के अधिक होने से वेद अनेक विद्याओं से युक्त है ऐसा जाना जाता है | वैसे ही “तस्मात्” इन दोनों पदों के अधिक होने से यह निश्चय जानना चाहिए की ईश्वर से ही वेद उत्पन्न हुए हैं किसी मनुष्य से नहीं | वेदों में सब मन्त्र गायत्रया दी छंदों से युक्त ही है | फिर छन्दासी इस पद के कहने से चौथा जो अथार्वेद है,उसकी उत्पत्ति का प्रकाश होता है | शतपथ आदि ब्राह्मण और वेदमंत्रों के प्रमाणों से यह सिद्ध होता है की यज्ञ शब्द से विष्णु का और विष्णु शब्द से सर्वव्यापक जो परमेश्वर है उसी का ग्रहण होता है, क्यों की सब जगत की उत्पत्ति करनी परमेश्वर में ही घटती है,अन्यत्र नहीं |
जो सर्व शक्तिमान परमेश्वर है उसी से {ऋच:}ऋग्वेद {यजु:}यजुर्वेद सामानी सामवेद {अंगिरस:} अथर्वेद, यह चारों उत्पन्न हुए | इसी प्रकार रूपकालंकार से वेदों की उत्पत्ति का प्रकाश ईश्वर करता है की अथर्वेद मेरे मुख है के समतुल्य और सामवेद लोमों के समान यजुर्वेद हृदय के समान और ऋग्वेद प्राण के समान है |{ब्रूहि कतम:स्विदेव स:} कि चारों वेद जिससे उत्पन्न हुए हैं सो कौनसा देव है, उसको तुम मुझ से कहो ? इस प्रश्न का यह उत्तर है कि = जो सब जगत का धारणकर्ता परमेश्वर है उसका नाम स्कम्भ है, उसी को तुम वेदों का कर्ता जानों और यह भी जानों कि उसको छोड़ कर मनुष्यों को दूसरा किसी को भी इष्ट देव नहीं है और ना किसी और को इष्ट देव मन्ना चाहिए | और ना उसे छोड़ कर कोई और इष्ट देव हो सकता है | ऐसा कौन अभागा मनुष्य होगा जो वेदों के कर्ता सर्वशक्ति मान परमेश्वर को छोड़ दुसरे को ईश्वरमान कर उसकी उपासना करें |
नोट :- यहाँ ऋषि ने वेदका प्रमाण दे कर बताया परमेश्वर के गुणों को कि | उसमें गुण है दया करना, सुख को देना,प्राणी मात्र का कल्याण करना आदि | उसे विष्णु भी कहा गया सब जगह विचरण करने वाला आदि |
अल्लाह में यह गुण नहीं है, अल्लाह अगर जीवों पर दया करते तो कुर्वानी का आदेश कैसे देते ? यहाँ तक कि कुर्वानी देने वाला जानवर कैसा हो वह भी अल्लाह ने बताया है सूरा =मायदा में = जिस पशु को जबह उसके सिंघ टूटे ना हो कान कटे ना हों दूम कटा ना हो टांग टूटे ना हो आदि यह अल्लाह का ही हुक्म है फिर अल्लाह की दया कहाँ और किस पर ?
इस प्रकार ईश्वरीय ग्रन्थ और मानव कृत ग्रंथों में अंतर है अब तक मैं आने प्रमाण दे चूका हूँ लेखनी के माध्यम से और विडिओ के माध्यम से भो आप लोग भली प्रकार उसे सुनें समझें और सत्य को ग्रहण कर मानवता का परिचय दें, अथवा मानव लह्लाने का हकदार बने | इन मजहबी दुकानदारों से छुटकारा पायें धन्यवाद के साथ =महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता = दिल्ली 3=12=17

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