Your cart
Smart Watch Series 5
Running Sneakers, Collection
Wireless Bluetooth Headset
वेदोत्पत्ति विषय ऋषि के दृष्टि में का पार्ट 4 |
Mahender Pal Arya
वेदोत्पत्ति विषय ऋषि के दृष्टि में, पार्ट = 4
मैंने आप लोगों को इससे पहले 3 लेख दे चूका हूँ इसी विषय पर आज यह चौथा लेख प्रस्तुत है आप लोगों की सेवा में, ऋषिवर देव दयानंद जी ने इस वेद विषय को प्रश्न व उत्तर लिख कर कितना सुन्दर समाधान दिया है, कि आसानी से बात सब की समझ में आजाय |
यहाँ ऋषि लिख रहे हैं= वेदोत्पादन ईश्वरस्य किं प्रोयोजनमस्तीत्यत्र वक्तव्यम् ?
प्रश्न =वेदों के उत्पन्न करने में ईश्वर को क्या प्रयोजन था ?
उत्तर = मैं तुमसे पूछता हूँ कि वेदों के उत्पन्न नहीं करने में उसको क्या प्रयोजन था ? जो तुम यह कहो कि इसका उत्तर हम नहीं जानते तो ठीक है,क्यों की वेद तो ईश्वर की नित्य विद्या है,उसकी उत्पत्ति या उनुत्पत्ति हो ही नही सकती | परन्तु हम जीवों के लिए ईश्वर ने जो वेदों का प्रकाश किया है सो उसकी हम पर परमकृपा है | जो वेदोत्पत्ति का प्रयोजंन है सो आप लोग सुनें | प्रो० ईश्वर में अनन्त विद्या है वा नहीं ? उत्तर = है |
प्र० = उसकी विद्या किस प्रयोजन के लिए है ? उ० अपने ही लिए, जिससे सब पदार्थों का रचना और जानना होता है | प्र० =तो अच्छा मैं आप से पूछता हूँ कि ईश्वर परोपकार को करता है वा नहीं ? उ० ईश्वर परोपकारी है इससे क्या आया ? इससे यह बात आती है कि विद्या जो है सो स्वार्थ और परार्थ के लिए है, क्योंकि विद्या का यही गुण है, कि स्वार्थ और परार्थ दोनों को सिद्ध करना |
जो परमेश्वर अपनी विद्या का हम लोगों के लिए उपदेश न करे तो विद्या से जो परोपकार करना गुण है सो उसका नही रहे | इससे परमेश्वर ने अपनी वेद्विया का हम लोगों के उपदेश करके सफलता सिद्ध करी है, क्योंकि परमेश्वर हम लोगों के माता पिता के समान है| हम सब लोग जो उसकी प्रजा हैं इनप्रजा पर वह नित्य कृपा दृष्टि रखता है | जैसे अपने संतानों के उपर पिता और माता सदैव करुणा को धारण करते हैं, कि सब प्रकार से हमारेपुत्र सुख पावें, वैसे ही ईश्वर भी सब मनुष्यादि सृष्टि पर कृपादृष्टि सदैव रखता है, इसेसे ही वेदों का उपदेश हम लोगों के लिये किया है | जो परमेश्वर अपनी वेद विद्या का उपदेश मनुष्यों के लिए न करता तो धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की सिद्धि किसी को यथावत प्राप्त न होती, उसके बिना परम आनन्द भी किसी को नहीं होता | जैसे परमकृपालु ईश्वर ने प्रजा के सुख के लिए कन्द, मूल फल, और घांस आदि छोटे छोटे भी पदार्थ रचे हैं सो ही ईश्वर सब सुखों के प्रकाश करने वाली, सब सत्य विद्याओं से युक्त वेद विद्या का उपदेश भी प्रजा के सुख के लिए क्यों न करता ? क्योंकि जितने ब्रह्माण्ड में उत्तम पदार्थ हैं उनकी प्राप्ति से जितना सुख होता है सो सुख विद्या प्राप्ति से होने वाले सुख से हज़ारवें अंश के भी समतुल्य नही हो सकता | ऐसा सर्वोत्तम विद्या पदार्थ जो वेद है उसका उपदेश परमेश्वर क्यों ना करता ? इसे निश्चय करके यह जानना की वेद ईश्वर के ही बनाये हैं |
नोट :- कितना सुंदर समाधान ऋषि के हैं, एक एक शब्द विचारणीय है, किसी भी मजहबी पुस्तक में यह समाधान ईश्वरीय ज्ञान होने का मिलना संभव नही | जैसा यहाँ परमात्मा को माता पिता, कहा गया पालन करने से वह पिता, माया ममोत्व के लिए माता है | यही तो दुनिया में है, माता का लालन, पिता का पालन, गुरु का ताडन |
पिता होने से हमें हर वक्त बुराई से रोकने के लिए भय, लज्जा, शंका, उत्पन्न करा देता है, यही सारा गुण सिर्फ परमात्मा में ही है अन्यों में नही | इस्लाम का मानना है अल्लाह किसी का बाप नही और न अल्लाह का कोई बेटा | अल्लाह का कोई बाप नहीं और न वह किसी का बेटा | ईसाइयों ने माना है ईश्वर का एक ही मात्र पुत्र है हज़रत ईसा मसीह |
इस प्रकार वेद में और मजहबी पुस्तकों में यही भेद है वेद में मानव मात्र के लिए उपदेश है मजहबी पुस्तकों में किसी वर्ग के लिए जाती विशेष के लिए, सम्प्रोदाय के लिए उपदेश है | हम मानव होने के कारण हमें अपनी अकलमंदी का परिचय देते हुए सत्य और असत्य का निर्णय लेना पड़ेगा सही क्या है गलत क्या है इसे जानना ही पड़ेगा, तर्क के कसौटी पर परख करनी होगी | परमात्मा हम लोगों को शक्ति दें सत्य असत्य का निर्णय लेने में हम समर्थ रख सकें, और सत्य का धारण तथा असत्य का वर्जन करने में भी हम समर्थ रखने वाले बनें, यह जो धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की बातें है यह मजहबी किताब कुरान में नही है | महेंद्रपालआर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =7 =2 =17 =