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वेदोत्पत्ति विषय ऋषि के दृष्टिमें पार्ट 3

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|| वेदोत्पत्ति ऋषि के दृष्टि में पार्ट 3 ||
मैंने इस वेदोत्पत्ति को ऋषि के दृष्टि में किस प्रकार है, दो लेखों को दे चूका हूँ आज यह पार्ट तीन आप लोगों के सामने प्रस्तुत है | मैंने इस के साथ मज़हबी पुस्तकों की मान्यता को भी आप लोगों को साथ साथ देखता आया हूँ जिस से की आसानी से लोगों की समझ में आ जाय और सही क्या है गलत क्या है लोग अपने आप ही निर्णय ले सकें |
स्वामी जी से किसी ने प्रशन किया जगत के रचने में तो इश्वर के बिना किसी जिव का सामर्थ्य नही है, परन्तु जैसे व्याकरण आदि शास्र रचना में मनुश्य्पों का सामर्थ्य होता है वैसे ही वेदों के रचने में भी जिव का सामर्थ्य हो सकता है ?
उत्तर – स्वामी जी ने एक शब्द में ही नही कहा | विस्तार से फिर समझा रहे है किन्तु जब ईश्वर ने प्रथम वेद रचे है, उनको पढने के पश्चात् ग्रन्थ रचने का सामर्थ्य किसी मनुष्य को हो सकता है | उसके पढने और ज्ञान के बिना कोई भी मनुष्य विद्वान नही हो सकता | जैसे इस समय किसी शास्त्र को पढके, किसी का उपदेश सुनके और मनुष्यों के परस्पर व्यवहारों को देख के ही मनुष्यों को ज्ञान होता है, अन्यथा कभी नही होता | जैसे किसी मनुष्य के बालक को जन्म से एकांत में रखके उसको अन्न और जल युक्ति से देवें, उसके साथ भाषण आदि व्यव्हार लेश मात्र भी कोई मनुष्य न करे, की जब तक उसका मरण न हो तब तक उसको इसी प्रकार से रखें, तो मनुष्यपने का भी ज्ञान नही हो सकता, तथा जैसे बड़े वन में मनुष्य को बिना उपदेश के यथार्थ ज्ञान नही होता, किन्तु पशुओ की तरह उनकी प्रवृत्ति देखने में आती है, वैसे ही वेदों के उपदेश के बिना भी सब मनुष्यों की प्रबृत्ति हो जाती है, फिर ग्रन्थ रचने के सामर्थ को तो क्या कहनी है ? इससे वेदों को ईश्वर के रचित मानने से ही कल्याण है अन्यथा नही |
प्रश्न :- ईश्वर ने मनुष्यों को स्वाभाविक ज्ञान दिया है सो सब ग्रंथों से उत्तम है, क्यों की उसके बिना वेदों के शब्द अर्थ और सम्बन्ध का ज्ञान नही हो सकता |और जब उस ज्ञान का क्रम से वृद्धि होगी,तब मनुष्य लोग विद्या पुस्तकों को भी रच लेंगे, पुनः वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से क्यों माननी है ?
उत्तर :- जो प्रथम दृष्टान्त बालक का एकांत में रखने का और दूसरा वनबासियों का भी कहा था,क्या उनको स्वाभाविक ज्ञान ईश्वर ने नही दिया है ? वे स्वाभाविक ज्ञान से विद्वान क्यों नही होते ? इस से यह बात निश्चित है कि ईश्वर का किया उपदेश जोम वेद है, उसके बिना किसी मनुष्यों को यथार्थ ज्ञान नही हो सकता |जैसे हम लोग वेदों को पढ़ें, विद्वानों शिक्षा और उनके किये ग्रंथों को पढ़ेंबिना पंडित नही होते, वैसे ही सृष्टि के आदि में भी परमात्मा जो वेदों का उपदेश नही करता तो आजपर्यंत किसी मनुष्य को धर्मादी पदार्थों की यथार्थ विद्या नही होती | इससे क्या जाना जाता है की विद्वानों की शिक्षा और वेद पढ़ें बिना केवल स्वाभाविक ज्ञान से किसी मनुष्य का निर्वाह नही हो सकता | जैसे हमलोग अन्य विद्वानों से वेदादि शास्त्रों के अनेक प्रकार के विज्ञान को ग्रहण करके ही पीछे ग्रंथों को भी रच सकते हैं, वैसे ही ईश्वर के ज्ञान की भी अपेक्षा सब मनुष्यों को अवश्य है | क्योंकि सृष्टि के आरम्भ से पढने और पढ़ाने की कुछ भी ब्यवस्था नही थी, तथा विद्या का कोई ग्रन्थ भी नहीं था | उस समय ईश्वरके किये वेदउपदेश के बिना विद्या के नही होने से कोई मनुष्य ग्रन्थ की रचना कैसे कर सकता ? क्यों की सब मनुष्यों को सहायकारी ज्ञान में स्वतंत्रता नहीं है | और स्वाभाविक ज्ञान मात्र से विद्या की प्राप्ति किसी को नहीहो सकती | इस लिए ईश्वर ने सब मनुष्यों के हित के लिए वेदों की उत्पत्ति की है |
और जो यह कहा था कि अपना ज्ञान सब वेदादि ग्रंथों से श्रेष्ट है सो भी अन्यथा है, क्यों की वः स्वाभाविक जो ज्ञान है सो साधनकोटि में है | जैसे मन के संयोग के बिना आँख से कुछ भी नही देख सकते, तथा आत्मा के संयोग के बिना मन से भी कुछ नही होता, वैसे ही जो स्वाभाविक ज्ञान है सो वेद और विद्वान की शिक्षा के ग्रहण करने में साधनमात्र ही है, तथा मनुष्यों के समान समान ब्यवहार का भी साधन है, परन्तु वह स्वाभाविक ज्ञान अर्थ धरम,काम और मोक्ष का साधन स्वतंत्रता से कभी नही हो सकता |
नोट:- आप लोगों ने यह गौर किया होगा, की यह वेद ज्ञान देने में परमात्मा औरजो मुक्त आत्मा ऋषि कलाए, इनके बिच कोई बिचोलिय नही है सीधा परमात्मा ने उन मुक्त आत्मा को अपनी प्रेरणा से उनकी जुबान से बुलवाएँ | किन्तु कुरान अल्लाह ने सीधा हज़रत मुहम्मद सबह को नही सुनाये और न प्रेरणा दी, किन्तु अल्लाह ने जिब्राइल नमी फ़रिश्ते के भेजा, हज़रत मुहम्मद साहब के पास गारेहिरा नमी पहाड़ के गुफा में | और फ़रिश्ते ने आकर कहा हजरत मुहम्मद साहब को क्या कहा कुरान से देखें | सूरा =अलक =के वह 5 आयात जो सबसे पहले उतरी |
اِقْرَاْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِيْ خَلَق خلق أ ألا ن سنا من علق إقرا و ربك أ لا كرم أ الذي علم با لقلم علم أ لا نسا ن ما لم يعلم |
अर्थ:- पढ़ो अपने रब के नाम के साथ,जिसने पैदा किया जमे हुए खून के एक लोथड़े से इन्सान को बनाया, पढ़ो,और तुम्हारा रब बड़ा उदार है, जिसने कलम के द्वारा ज्ञान की शिक्षा दी, इन्सान को वह ज्ञान दिया जिसे वह नहीं जानता था |
यह है वह कुरानी ज्ञान जो अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद{स}को फ़रिश्ता जिब्रील के माध्यम से प्रथम भेजा था | यहाँ अल्लाह ने जिब्रील को कहा हजरत मुहम्मद {स} को कहने के लिए इसका प्रमाण किसी भी इस्लामी ग्रन्थ में नही है | अब यह मानना कठिन है की यह क़लाम अल्लाह की ही है ? यह जिब्रील की भी तो हो सकती है ? यहाँ कहा गया जिसने पैदा किया जमे हुए एक खून के लोथड़े से | सवाल पैदा होगा की अल्लाह को जमे हुए खून का लोथड़ा मिला कहाँ से ? फिर अल्लाह ने और जगह कुरान में फ़रमाया, खन खनाती मिटटी से इन्सान को बनाया, फिर कहीं गरे से बनया बताया, और फिर कहीं कहा एक स्त्री और एक पुरुष से इन्सान को बनाया | अल्लाह ने कई जगह बदल बदल क्र कहा सही कौनसी है ?
अल्लाह ने कलम के द्वारा ज्ञान की शिक्षा दी | अल्लाह ने कलम को किस चीज से बनाई छुरी चक्कू के बिना कलम का बनना सही कैसे होगा ? अनेकों प्रश्न खड़े हैं कोई जवाब दे उनका स्वागत है |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =4 /फरवरी /0 17 =

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