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वैदिक मान्यता विरुद्ध सुनना या देखना मुझे पसन्द नही

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|| मुझे वैदिक मान्यता विरुद्ध कोई बात सहन नहीं ||

मैंने सत्यसनातन वैदिक धर्म जो मानव मात्र के लिए है, आदि सृष्टि से है, ईश्वरीय है इन सभी को भली भांति जानने, समझने, और पहचानने, के बाद ही इसे स्वीकाराहै, मुझसे किसी ने जबरदस्ती नहीं की और ना मेरे ऊपर किसी ने लादा है | मैंने वैदिक मान्यता व वैदिक सिद्धांत को, इसलाम और ईसाइयत के साथ साथ दुनिया के जितने भी मत मजहब पन्थ हैं सबके साथ तुलना करके देखा है | उसके बाद ही मैंने यही मानवधर्म को गले लगाया अपने जीवन में इसे आचरण में उतारा है पुरे परिवार को इस कार्य से जोड़ा बेटा, बेटी को गुरुकुलीय शिक्षा में पारंगत किया |

मैं आप लोगों को कभी बताया नहीं, एक बेटी जिसे अष्टाध्यायी,सामवेद, यजुर्वेद, कंठस्थ है संस्कृत व्याकरण को सबने अच्छी तरीके से पढ़ा है | मैंने अपने बच्चों को किसी को भी बंगला, उर्दू, अरबी, नहीं सिखाया, वह इस लिए की मैंने आर्य समाजियों को नजदीक से देखा इनके विचारों को समझने का प्रयास किया | मैं अगर अपने बच्चों को उर्दू अरबी सिखाता तो आर्य समाजी कहते इनका मोह भंग नही हुवा इसलाम से, यही कारन है अपने सभी बच्चों को मैं वेद और वैदिकमान्यता से जोड़ा, जो एक आर्य समाजी भी नहीं करते |

यही कारण है की मैं वैदिक सिद्धांत के खिलाफ किसी भी प्रकार का लेख तथा भाषण किसी का भी सुनना पसन्द नही करता | कभी भी कोई भी लेख या विचार वैदिक मान्यताके विरुद्ध सुनता हूँ पढता हूँ उसको फ़ौरन मैं रोकने या सुधारने का प्रयास भी करता हूँ |

आर्य समाज में उन्ही लोगों की भरमार है, जो वैदिक सिद्धांत को जानते तक नही मैंने 17 वर्ष निरन्तर आर्यों के कर्मकाण्ड में एक रूपता पर काम किया | मेरे किये कार्य को देख कर ऋषिसिद्धांत रक्षणी सभा ने मुझे अपना मन्त्री और अपने पत्रिका का सम्पादक बनाया था |

आर्य मुनि {सीताराम} जी के निधन के बाद सभा पत्रिका तो मेरे सम्पादकीय कार्य छोड़ने पर ही बन्द हो गई थी | ऋषि सिद्धांत रक्षक पत्रिका के माध्यम से पांच{5} वर्ष भारत भर आर्य जगत में वैदिक सिद्धांत का मैंने डंकेकी चोट प्रचार किया वैदिक मान्यता विरुद्ध कहीं पर कोई भी लेख के जवाब देने में मैंने अपनी पहचान बनाई |

आज मैं आप लोगों को एक नमूना प्रस्तुत करना युक्ति युक्त समझा, मेरे पास इस प्रकार के अनेक प्रमाण मौजूद हैं | आज का यह प्रकरण हैं सार्वदेशिक सभा में बैठे हुए लोगों की, यह घटना 2006 की है | आर्य समाज के लोग जिन्हें सन्यासी कहते मानते हैं, जिनका नाम अग्निवेश है | इन्हों ने आज़मगढ़ उ प्र० के रानीकी सराय के पास एक मुसलिम कान्फ्रेंस को साम्बोधित किया बिस्मिल्ला हिररहमा निर्रहीम से | और हजरत मुहम्मद साहब के बारे में कहा की उन्हों ने औरत मर्द के भेद भाव को मिटाया, और भी बहुत कुछ बोला |

पर मैंने इसका विरोध किया, की कुरान में अल्लाह ने सूरा बकर 223 में कहा महिला पुरषों के खेत               के समान है उसे जैसा चाहो उनके पास जाव आगे से पीछे से | जो इसप्रकार है  نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَّكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّىٰ شِئْتُمْ ۖ وَقَدِّمُوا لِأَنفُسِكُمْ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُم مُّلَاقُوهُ ۗ وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ [٢:٢٢٣]

तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ और अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल साके) पेशगी भेजो और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है और ऐ रसूल ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो |

 

मेरा यह विरोध पत्र मैंने अपनी सम्पादकीय लेख में भी छापा, और जिस बाराणसी से प्रकाशित दैनिक जागरण में यह समाचार छपी उसकी फोटो कापी मैंने Ad, जगवीर सिंह { जो आज अर्यावेश } केनाम से हैं उन्हें भेज दिया | और यह लिखा की आप अब तक जिनके साथ चल रहे हैं क्या वह दयानंदको वैदिक मान्यता को जानते भी हैं ?

 

मेरे पत्र को पाकर जगवीर एडवोकेट जी ने क्या लिखा उसे फिर उसका जवाब मेरे द्वारा क्या लिखा गया वह दोनों पत्र आज आप लोग देखें | जो 22 मार्च -2006 में उन्हों ने मुझे लिखा | उसका जवाब 3 अप्रिल 2006 को मैंने उन्हें लिखा |

 

मेरा कहना यह है की कोई यह ना समझें मैं वैदिक मान्यता विरिधियों को आज से जाना, नहीं मैं जब से आर्य समाज में आया तबसे जानने और समझने का प्रयास किया हूँ |

आर्यवेश वही हैं जो, अग्निवेश को समलैंगिकता के समर्थन करने से रोक नहीं सका और ना तो उसका विरोध किया | जितने वेश नामी सन्यासी हैं प्रायः उसी मानसिकता वाले ही हैं सार्वदेशिक सभा का प्रधान आर्यवेश को बनाना अथवा इसे स्वीकारना ऋषि दयानन्द के मान्यता की हत्या ही है |

यह एक ही जानकारी मैंने आप लोगों को दिया है और भी अनेक प्रमाण मेरे पास सुरक्षित हैं |

महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =28 / 5 / 17 =

 

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