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वैदिक संस्कृति में दिखावा के लिए कोई स्थान नहीं है |

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वैदिक संस्कृति में दिखावे के लिए कोई स्थान नहीं है ||

मेरे इस लेख का मतलब किसी का विरोध नहीं है जो लोग यह समझ रहे हैं वे गलत फहमी के शिकार हैं |

मैंने स्पष्ट लिखा है यह कार्य ऋषियों ने बताया सर्व श्रेष्ट कार्य है, और मनुष्य मात्र को दो समय करने का विधान ऋषि ने दिया है, जिसे संध्या व यज्ञ, कहते हैं |

बात यहाँ है की क्या इसकार्य को करने से केवल वातावरण की शुद्धि होगी ? ऋषि ने कहा इसे करने वाले का जीवन भी यही यज्ञ मय होगा | बात बिलकुल स्पष्ट है कि इस यज्ञ के करने वाले का जीवन भी यज्ञ समान होगा | धन संपत्ति जो भी सामने आये जरूरत से जयादा है तो अग्नि में समर्पित,यह मेरा नहीं है कहना |

यज्ञ की शिक्षा यही है, और दुनिया वालों से यह कहे जो आपका है, वह तो आप का ही है | जो मेरे पास है अगर जरूरत पड़े तो यह भी आप का ही है

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मैंने लिखा भी है यज्ञ करने वाले का जीवन परोपकार वाला जीवन होगा, अर्थात इस को करते करते अपने को भी बना लेना | अगर यही बात है तो फिर यज्ञ करने वाले लोग दूसरों की संपत्ति पर काबिज क्यों और कैसे ?

न समझ लोग अगर मेरे इस लेख को समझने न पाए तो किसकी गलती है ? हम दुनिया वालों से कह रहे हैं यज्ञ करो इस समय करो और उस समय करों घर घर करो और जंगल जंगल करो | पर लाभ क्या हुवा अपना जीवन तो यज्ञ मय बना ही नहीं, इसे ही मैंने दिखावे लिखा है |

 

भली प्रकार इसे पढ़ें और जो यज्ञ करने और कराने वाले इस यज्ञ के खिलाफ कार्य कर रहे हैं लूट खसोट और संपत्ति पर कब्ज़ा करना आदि क्या यज्ञ ने यही सिखाया है उन्हें ?

समाज का जो नियम ऋषि दयानन्द जी ने बनाया है उसे ताक पर रख कर जिन्दगी भर के लिए मंत्री प्रधान बने रहना यह कहाँ का यज्ञ है, क्या इसी का नाम यज्ञ है ?अथवा यज्ञ ने यही सिखाया है ?

यह लोग दिखावा कर रहे हैं वरना मंत्री और प्रधान पद से चिपके किस लिए ? मानों जैसा फेविकोल लगाकर बैठ गये हों यज्ञ से यह सभी पद लोलुपता छुट जाना चाहिए था | फिर फायदा क्या हुवा ऐसा यज्ञ के करने और कराने से ?

आप लोगों ने देखा जरुर होगा कल tv चेनलों में दिखाया गया कहीं कहीं यज्ञ करते कराते, जिसमें विशेष एक संस्था का नाम लिया जा रहा था जिन्होंने लोगों को यह सुचना दी, की इस समय से इस समय तक यज्ञ करें |

अपने घर में और आर्य समाज में जहाँ जिनको अवसर मिले जरुर इसे करें और देखें इसे | शायद लोगों ने यह सोचा की यह यज्ञ कोरोना जैसी वायरस को भागाने या समाप्त करने के लिए ही किया जा रहा है | यह बातें कहाँ तक सत्य है क्या जिन लोगों ने इस कार्यक्रम को किया या रखा वह सत्य के आधार पर वैदिक मान्यता अनुसार यह सत्य है, ठीक है ?

सही पूछिये तो यह यज्ञ किसी कारण के लिए या कोरोना वायरस को समाप्त करने की औषधि नहीं है | यह ठीक है की यज्ञ से वातावरण की शुद्धि होती है, यह सर्व श्रेष्ट कार्य है | जब यह सर्वश्रेष्ठ कार्य है तो, इस कार्य को किसी एक विशेष कार्य के नाम से लाभ पाने के लिए कोरोना वायरस भगाने के नाम से इसे करना या करवाना मात्र पाखंड ही नहीं किन्तु महा पाखंड है |

 

जिस पाखंड से इसी संस्था के जन्म दाता जिनका नाम ऋषि दयानन्द सरस्वती है उन्हों ने अपनी संस्था की स्थापना की थी मानव समाज को पाखण्ड से मुक्ति देने के लिए परन्तु आज उसी दयानंद जी की संस्था पाखण्ड फैला कर मानव समाज को दिक् भ्रमित करने में जुटी है |

 

क्यों और कैसे देखें यज्ञ के लिए वैदिक मान्यता है, देवपूजा +संगतीकरण + दान | मुख्य रूपसे यह लाभ बताये गये हैं की यज्ञ के करने से इन तीनों बातों की शिक्षा मिलती है, अब इस में कोरोना भगाने की बात कहाँ है, ?

 

इसका प्रथम कारण है की वैदिक संस्कृति में दिखावे बनावटी पन के लिए कोई जगह ही नहीं है | इसी यज्ञ में आहुति देते समय यही कहा जाता है, इदन्नमम = अर्थात यह मेरा नहीं है | जब आप ने यह कहा की यह मेरा नहीं है तो यह मेरा, या इस काम से कोरोना भगाने की बात कहाँ से आ गई ?

 

ऋषि ने बताया है की यह हर एक मनुष्यों को दोनों समय सुबह और शाम रोजाना करना चाहिये | इसमें दिखावा बनावटी काहाँ है अपना जीवन को इसी यज्ञ मय बनाव, अब यह जों जीवन तो नहीं सिर्फ और सिर्फ सम्पत्ति बनाने में लगे हैं |

 

तभी तो इनके सम्पत्ति में, कहीं किसी ने कब्ज़ा किया, तो किसीने और जगह कब्जा जमाये बैठे हैं | साहब मात्र कब्ज़ा ही नहीं जमाये अपितु जहाँ जिसकी बस चली संपत्ति को भी बेच दिया |

 

यही वह लोग थे जिन्होंने कल यह पाखंड मचाया है | यह वैदिक विचारों से इसका कोई संपर्क और संवंध नहीं है और न ऋषि दयानन्द के विचारों से इसका कोई लेना देना, यही पाखंड है जिसे ऋषि दयानंद जी ने मिटाना चाहा, आज उसी समाज में ही यही पाखंड घर कर गया |

 

इसमें सबसे आश्चर्य की बात यह भी है ऋषि ने जिस मन्त्र का चयन नहीं किया यह पाखंडी उसी मन्त्र को बोलते हैं | त्रियमवकम, वाला मन्त्र को आहुति देने के लिए ऋषि अपनी कर्मकांड की दोनों पुस्तकों में कहीं भी नहीं लिखा |

किन्तु यह पाखंडी लोग ऋषि दयानंद को पीछे छोड़ने की होड़ में लगे हैं | इसपर मैंने बहुत लिखा, यह लोग ऋषि दयानंद के विचारों के कातिल हैं ,यज्ञ के नामसे महा पाखण्ड चला रखा है इन लोगों ने | इन पाखंडियों से मेरा एक सवाल है, की ईश्वरस्तुति प्रार्थना में, ऋषि ने 8 मन्त्र दिया है, जिसे पूरा 8 ही बोला जाता है, इसको घटाया बढ़ाया नहीं गया | तो आहुति देते समय जो मन्त्र का चयन ऋषि ने किया उससे अलग यह लोग अपने मनमानी,जैसा जो चाहा उसी मन्त्र को क्यों बोलते हैं ? जवाब के प्रतीक्षा में = महेन्द्रपाल आर्य –1 /12 /20

 

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