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शबाद को खुली चुनौती

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शाबद को खुली चुनौती
Shadab Deshmukh
Aug 31, 2018, 9:45 AM (21 hours ago)
to me
Bade bade aake chale gaye Islam ka koyi bal bhi baka nahi karsaka .
On 31-Aug-2018 9:44 am, “Shadab Deshmukh” <shadabdeshmukh123@gmail.com> wrote:
Duniya mai mujhse or tumse jiyada samajhdar log hai tum hi ek gayanweer nahi ho balke tum johla ke sardar ho
|| शबाद को खुली चुनौती ||
मियां शाबाद यह बात तो पक्की हो गयी की तुम इस्लाम वालों के पास मेरे सवालों का जवाब नहीं है और ना क्यामत तक जवाब दे सकोगे | यह बात बिलकुल तै हो चुकी है रही बात बाल बांका करने वाली, तो सुनो मियां बालबांका तो क्या जो कभी सीधा ही नहीं था उसे बांका क्या करते लोग ? जो इस्लाम जन्म काल से ही टेड़ी ही हो उसे बांका करने की क्या जरूरत ? आज तुम जिस बात को कह रहे हो इसी बात को तो अल्लाह ने भी कही है अपनी कुरान में | क्यों की अल्लाह जब जवाब नहीं दे सके तो अपनी कलाम में यही फ़रमाया देखो अपनी कुरआन |
لَكُمْ دِينُكُمْ وَلِيَ دِينِ [١٠٩:٦]
तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन | यह हार ही तो है अल्लाह के पास जब जवाब नहीं मिला तो फ़ौरन कह दिया जाव तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन हमारे लिए हमारे दीन | जिस बात को तुम जानते भी नहीं ? दुनिया वाले भी मेरी बातों को देख रहे हैं, सुन रहे हैं और समझ भी रहे हैं | पर तुमलोग तो अकल के अंधे और गाँठ के पुरे हो यही तो कारण बना की तुम्हें कुछ भी कहने से मना क्या है अल्लाह ने, और मुहम्मद ने भी कहदिया,जिसे तुम हदीस कहते हो =कुल्लो माँ जाया बिहिर रसूलो मिन इन्दील्लाह | अर्थात =अल्लाह की तरफ से रसूल ने जो , बतलाया बगैर छानबीन किये उसे मान लेना = क्या यह इंसानी बात हो सकती है ? इन्सान ही एक प्राणी है जो हर बात को अकलसे सोचती है करने योग्य हो तो करती है, अगर करने लायेक न हो तो उसे छोड़ देती है |
 
किन्तु इस्लाम इससे सहमत नहीं वह किसी भी बात को सोचने से रोकती है इन्सान कहलाने वालों को और कहती है जो कहा जाय उसे ही मानना होगा | यह कौन सी अकलमन्दी की बात हुई मियाँ ? यही बात अल्लाह ने कुरान में भी कह्दी =देखो मियाँ { Page: 1
ذَٰلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ ۛ فِيهِ ۛ هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ [٢:٢]
(ये) वह किताब है। जिस (के किताबे खुदा होने) में कुछ भी शक नहीं (ये) परहेज़गारों की रहनुमा है | क्या कहा अल्लाह ने की यह कूड़ा की किताब होने ने कोई शक नहीं | अर्थात इस किताब में कोई शक नहीं है ? यह पहला ही शब्द है जिसे अल्लाह ने नम कर दिया की इसमें सन्देह के लिए कोई अवकास नहीं है |
अब इस को आँखें बंद कर ही मानना पड़ेगा | अर्थात यहाँ भी अल्लाह ने अक्लसे काम लेने को मना करदिया, अक्ल पर मुहर लगादी जबकि पूरी कुरान सन्देह में भरी हुई है | देखें इसे भी { Page: 17
أَوْ كَالَّذِي مَرَّ عَلَىٰ قَرْيَةٍ وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّىٰ يُحْيِي هَٰذِهِ اللَّهُ بَعْدَ مَوْتِهَا ۖ فَأَمَاتَهُ اللَّهُ مِائَةَ عَامٍ ثُمَّ بَعَثَهُ ۖ قَالَ كَمْ لَبِثْتَ ۖ قَالَ لَبِثْتُ يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ ۖ قَالَ بَل لَّبِثْتَ مِائَةَ عَامٍ فَانظُرْ إِلَىٰ طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمْ يَتَسَنَّهْ ۖ وَانظُرْ إِلَىٰ حِمَارِكَ وَلِنَجْعَلَكَ آيَةً لِّلنَّاسِ ۖ وَانظُرْ إِلَى الْعِظَامِ كَيْفَ نُنشِزُهَا ثُمَّ نَكْسُوهَا لَحْمًا ۚ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُ قَالَ أَعْلَمُ أَنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [٢:٢٥٩]
(ऐ रसूल तुमने) मसलन उस (बन्दे के हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर से होकर गुज़रा और वो ऐसा उजड़ा था कि अपनी छतों पर से ढह के गिर पड़ा था ये देखकर वह बन्दा (कहने लगा) अल्लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी के बाद क्योंकर आबाद करेगा इस पर ख़ुदा ने उसको (मार डाला) सौ बरस तक मुर्दा रखा फिर उसको जिला उठाया (तब) पूछा तुम कितनी देर पड़े रहे अर्ज क़ी एक दिन पड़ा रहा एक दिन से भी कम फ़रमाया नहीं तुम (इसी हालत में) सौ बरस पड़े रहे अब ज़रा अपने खाने पीने (की चीज़ों) को देखो कि बुसा तक नहीं और ज़रा अपने गधे (सवारी) को तो देखो कि उसकी हड्डियाँ ढेर पड़ी हैं और सब इस वास्ते किया है ताकि लोगों के लिये तुम्हें क़ुदरत का नमूना बनाये और अच्छा अब (इस गधे की) हड्डियों की तरफ़ नज़र करो कि हम क्योंकर जोड़ जाड़ कर ढाँचा बनाते हैं फिर उनपर गोश्त चढ़ाते हैं पस जब ये उनपर ज़ाहिर हुआ तो बेसाख्ता बोल उठे कि (अब) मैं ये यक़ीने कामिल जानता हूं कि ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है |
 
Page: 17
وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ أَرِنِي كَيْفَ تُحْيِي الْمَوْتَىٰ ۖ قَالَ أَوَلَمْ تُؤْمِن ۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَٰكِن لِّيَطْمَئِنَّ قَلْبِي ۖ قَالَ فَخُذْ أَرْبَعَةً مِّنَ الطَّيْرِ فَصُرْهُنَّ إِلَيْكَ ثُمَّ اجْعَلْ عَلَىٰ كُلِّ جَبَلٍ مِّنْهُنَّ جُزْءًا ثُمَّ ادْعُهُنَّ يَأْتِينَكَ سَعْيًا ۚ وَاعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ [٢:٢٦٠]
और (ऐ रसूल) वह वाकेया भी याद करो जब इबराहीम ने (खुदा से) दरख्वास्त की कि ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर ज़िन्दा करता है ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हें (इसका) यक़ीन नहीं इबराहीम ने अर्ज़ की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है मगर ऑंख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मिनान हो जाए फ़रमाया (अगर ये चाहते हो) तो चार परिन्दे लो और उनको अपने पास मॅगवा लो और टुकड़े टुकड़े कर डालो फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो उसके बाद उनको बुलाओ (फिर देखो तो क्यों कर वह सब के सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं और समझ रखो कि ख़ुदा बेशक ग़ालिब और हिकमत वाला है |
 
क्या कुरानी आयात का यह कहना सन्देह स्पद नहीं है की 100 साल में खाने का सामान बिलकुल तरोताजा रहा | कौनसा कोल्ड स्ट्रोज़ में खाने का सामान रखा गया था मियाँ जी ? दूसरी बात 4 परिंदा काट कर एक जगह मिलकर पहाड़ के उपर रखो और उन परिंदों को अपने पास बुलाने पर सब अलग अलग हो कर सर, धड़, पंख सब अपनों अपनों में लग जाना यह क्यों और कैसे हो सकता है ? कोई स्वस्थ दिमाग वाला इसे सोच सकता है क्या ?
 
परन्तु इस्लाम वालों को सन्देह किया बिना ही मान लेना है | इसी का ही नाम ईमान है अन्ध विशवास क्या है फिर ? यही तो कारण है की तुमलोग सामने आने से डर रहे हो की छिछा लेदर न हो जाय ? दुनिया के लोग इस्लाम के असत्यता को जान जाये ? मैंने लिखा था की अगर सामने बैठ करना हो तो लिखो वरना लिखना मत पर तुम अपनी हरकत से बाज़ नहीं आते और सामने बैठने की भी हिम्मत नहीं फिर मेरा समय खाराब क्यों करते हो मियां ? हिम्मत है तो सामने बैठ कर डिबेट करो क्या जवाब है तुम्हारे पास इस की इंतज़ार रहेगी | महेन्द्रपाल आर्य =1/9/18=

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