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सत्यका धारण असत्य का त्याग ही मानवता है |

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सत्य का धारण और असत्य का त्याग ही मानवता है ||
Mahender Pal Arya कल कई लोगों ने मुझे मोबाईल फोन से बातें की और कहा प० जी आपने किसी के विरोध में कुछ लिखा ? मैंने कहा आज तक मैंने किसी के विरोध में न कुछ लिखा -और न कुछ बोला ? तो कहा सुनने में आया है | मैंने कहा हां यह तो जरुर है की मैं असत्य और अधर्म के खिलाफ लिखता हूँ -और बोलता भी हूँ |
मैंने कहा लिखने का शौक नहीं है ? किन्तु आज 37 वर्षों में जो मै सत्य को जाना और पाया हूँ उसे मै छुपाता नहीं, उसे ही लिखता हूँ और बोलता भी हूँ | आर्य समाज में ही आ कर सत्य को जाना है पहले नहीं जानता था | यह पाठ मै ऋषि दयानन्द से लिया हूँ -सत्य को बोलना -और -बुलवाना -असत्य को -छोड़ना -और छुड़वाना -चाहिए |
अब यह मनुष्य मात्र के लिए है न की महेन्द्रपाल के लिए ? अगर इसी वाक्य को आर्य समाजी कहलाने वाले अपने जीवन में धारण कर लेते तो आज सार्वदेशिक सभा से लेकर प्रान्तीय सभा -और -साधारण -आर्य समाज में ताला डलने की नौबत नही आती | दूसरी बात ऋषि की मान्यता है की मानव कहलाने वाले अगर सत्य को बोलते ,और -बुलवाते -असत्य को छोड़ते -और छुड़वाते | तो आज सम्पूर्ण मानव समाज से हट और दुराग्रह जीवन में नहीं आती |
इसी एक सत्य को अपना लेने से जीवन की हर बुराई से मानव बच सकता है | मैंने आर्य समाज में आकर यही सिखा है, काश-आज हर कोई मानव कहलाने वाले इसी ऋषि की एक ही बातको मान लेते आज मानव एक दुसरे के शत्रु न बनते -खून के प्यासे न बनते -परमात्म को छोड़ किसी और की पूजा न करते |
और न आर्य कहलाना छोड़ कर -मुसलमानों का दिया नाम -हिन्दू कह्लाते ? और न राम को परमात्मा मानते -और न कृष्ण को परमात्मा कहते | और न कृष्ण को चोर बताते | और न मनी- हारी कहते -न उन महापुरुष को व्यभिचारी कहते |
और न महिलाओं का कपड़ा ले कर पेड़पर चढ़ाते ? यह मात्र एक ही सत्य को स्वीकार न करने का ही यह सारा नतीजा हुवा | यह लोग रामनाम स्त्य है कहते हैं -किस जगह ? मुर्दों के साथ | अगर कोई बिवाह मण्डप में कहकर दिखादे ?
पताचला सत्य को स्वीकार न करने का यही नतीजा हुवा ,फिटिंग गलत है- भाईयों अगर फिटिंग आप की गलत हो तो शोर्ट सर्केट होगा ? पूरी लाइन उड़ेगी ? यह किस लिए हुवा -मात्र सत्य को स्वीकार न करने से हुवा ?
परमात्मा को तुमिहो, माता च पिता तुमिहो -कहते फिर राम को ही परमात्मा मानते हैं ? अब यह नहीं समझते ते ,की राम हमारे पिता थे -किन्तु दशरथ के -लक्ष्मण -भरत -के या सीता के वह पिता थे क्या ? परमात्मा होना राम के लिए फिट हो रहा है ? राम का रूप चलेगा =जैसा -रामः -रामौ -रामा;-रामम -रामौ -रामान – रामेण -रामाभ्यम -रमै:= इसप्रकार चतुर्थी -पञ्चमी -षष्ठी -सप्तमी -सम्बोधनम = आयेगा -एक राम – दो राम – अनेक राम – इस प्रकार -रामका ईश्वर होना या मानना -कोई माई का लाल सिद्ध नहीं कर सकता ?
यही नतिजा सत्य को स्वीकार न करने का हुवा ? जिसको स्वामी विवेकानन्द नहीं जानते थे | कारण वह संस्कृत जानते ही नही थे ? इसी बात को राजाराममोहन राय एक संस्कृतज्ञ होने हेतु उन्होंने सत्यको उजागर करते हुए अपने पिता -रमाकान्त राय को कहरहे है -वेद में मूर्ति पूजा नहीं है -आप जहाँ कहेंगे मै वहीं खड़ा होकर यही सत्य को कहूँगा ?
विवेकानन्द सत्य को जानते ही नहीं थे तो सत्यका ग्रहण कैसे करते भला ? आज उनकी चेलाओं की दशा भी यही है-सत्य को स्वीकार न करना जब गुरु ने ही नहीं किया फिर चेला कैसे करते ? आज मानव समाज में सब जगह यही दशा है | परमात्मा का दिया ज्ञान वेद को न मानकर मानव कृत ग्रन्थ को ईश्वरीय मान कर धरती को मानवों के खून से रंगा जा रहा है |
मै फिर कहूँगा सत्य को धारण और असत्य को छोड़ने से ही मानव समाजका कल्याण हो सकता है | तो आज से ही प्रतिज्ञा करें की सत्य को धारण कर हम मानव कहलायें मानव हो कर सत्यको धारण न करें तो हम मानव नहीं कहला सकते इसको भली प्रकार जानलें |
महेन्द्रपाल आर्य -वैदिक प्रवक्ता -दिल्ली =6 /11 /20

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