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सत्य का ग्रहण असत्य का त्याग ही मानवता है ||

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|| सत्य का ग्रहण असत्य का त्याग ही मानवता है ||

सुविज्ञानं चिकितुषे जनाय सच्चासच्च वचसि पस्पृधाते | तयोर्यत्सत्यं यतरद्रिजियः तदित्सोमो अवति हन्त्सयात || [अथर्व- ८|४|१२]

सुविज्ञानं – उत्तम श्रेष्ठ विज्ञान को,  चिकितुषे – जानने की इच्छा करने वाले, जनाय – मनुष्य के लिए,सत च- सत्य और [तदनुकूल],असत च –असत्य और [उसकी पुष्टि वाले], वचसी – दो प्रकार के वचन, पस्पृधाते – एक दुसरे को [मानो] दबाना चाहते है | तयोः- उन दोनो मे से, यत् सत्यं – जो सच्चा है, यतरत ऋजियः – [और] जौन सा अधिक सरल है| सोमः – शांति ज्ञानी, तत इत – उसको ही, अवति – पसंद करता है, ग्रहण करता है, असत – झूठ को,  आहंति – सर्वथा त्याग देता है |

मनुष्य जीवन क्या है ? विचार से देखो यह रणस्थली है | यहाँ देवो और असुरों की लड़ाई छिड़ी रहती है | सत्य और असत्य परस्पर में लड़ते रहते है | किन्तु क्या होता है ? जोगी जोगी लड़ें और खप्पर का नुकसान | लड़ाई सत्य और असत्य में, कुचला जाता है मनुष्य का आत्मा | जैसे दो सेनाओं की लड़ाई में भूमि खून से रंग जाती है | भूमि पर अधिकार करने के लिए ही दो सेनाएं लडती हैं | सत्य और असत्य भी ज्ञानाभिलाशी मनुष्य पर अपना अधिकार ज़माने के लिए परस्पर लड़ते है –

सुविज्ञानं चिकितुषे जनाय सच्चासच्च वचसी पस्पृधाते |

ब्राह्मण ग्रंथों में इस वेदमंत्र के भाव को लेकर अनेक स्थानों में दैवासुर संग्राम – देवों और असुरों के युद्ध का रूपक निरूपण किया गया है | जब मनुष्य किसी कार्य को करने लगता है तब उसके सामने दो पक्ष आते है | बहुत थोड़े मनुष्य है जो दोनों में विवेक कर सके | सभी मनुष्यों के जीवन में अनेक अवसर आते है जब सत्य और असत्य दोनों आते है | यह जो सत्य और असत्य दोनों चीजें है वह केवल मनुष्यों के पास ही आते हैं | कारण मनुष्य ही विवेकशील है यह सत्य और असत्य उस विवेक के द्वारा ही निर्णय लेने वाले का नाम ही मनुष्य है |

न हि सत्यात्परो धर्म:= सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं |

जब सत्य से बढ़कर कोई धर्म ही नहीं है, तो वह किसके लिए है ? मनुष्य कहलाने वालों के लिए | अर्थात मनुष्य कहलाकर सत्य को धारण नहीं किया फिर वह मानव कहलाने का हक़दार ही नहीं है |

मनुष्य ही एक प्राणी है जो परमात्मा की रचना में सबसे उत्कृष्ट है उसका कारण ही यही है की मनुष्य सत्य और असत्य को जान सकता है, विचार करसकता है, सत्य और असत्य पर निर्णय ले सकता है | अब वह सत्य कहीं और किसी के पास है या नहीं उसे किसप्रकार जाना जा सकता है ? आज धरती पर जितने भी मजहब वाले है सभी यह दावा कर रहे हैं की हमारे पास सत्य है सत्य तो दुनिया वाले जानते ही नहीं है केवल सत्य कुरान ही है |

कोई कहता है सत्य बाईबिल ही है, कोई कहता है त्रिपिटकहै ,जिन्दाविस्ता, बिजजक, गुरु ग्रन्थ है आदि | अर्थात आज धरती पर जितने भी मत पन्थ वाले हैं सभी कहते हैं सत्य तो हमारे पास है दुनिया क्या जाने सत्य क्या होता है ?

अब हमें सत्य को देखना और ढूँढना होगा तर्क के कसौटी पर विचार करना होगा उसके बाद ही हम निर्णय ले सकते हैं की आखिर सत्य क्या है किस प्रकार सिद्ध हो रहा है सत्य ?

सत्य उसे कहते हैं, जो वस्तु जैसा है उसको ठीक वैसा ही कहना, लिखना,और मानना सत्य कहाता है | जो कोई पक्षपाति होता है वह अपने असत्य को ही सत्य, और दुसरे मत वाले के सत्य को, असत्य सिद्ध करने में प्रवित्व रहता है | सत्य है जैसा, सूरज {सूर्य} में प्रकाश,और उष्णता, पानी, में शीतलता, व बहना, यह सत्य है कोई भी मानव कहलाने वाला इसे कभी भी अस्वीकार नहीं करता, और ना करना संभव है |

अब किसीने यह बताया की हनुमान जी ने सूरज को बाल्य अबस्था में निगल गये | जैसा बताया गया, बाल समय रवि भक्ष्य लियो तीनों लोक होयो अंधियारों |

अब मनुष्य होने हेतु सत्य और असत्य का निर्णय लेना हमारा दायित्व है, फ़र्ज़ है, कर्तव्य है परमात्मा ने हमें यही सत्य और असत्य का निर्णय लेने, का सत्य और असत्य को परखने का दायित्व दिया है | अत: हमें अपना दिमाग का प्रयोग करना होगा दिमाग से विचार कर ही निर्णय लेना होगा की यह सत्य है अथवा नहीं ? तर्क के कसौटी पर हम जब विचार करते हैं तो यह कोरा गप्प मालूम पड़ता है, की सूरज ईश्वराधीन है उसे कोई मनुष्य खा जाये यह सम्भव ही नहीं | धरती पर उथल पुथल मचेगी कारण वह सूर्य सम्पूर्ण विश्व के प्राणी मात्र का है | हनुमान का सूरज तक पहुंचना ही सम्भव नहीं पहली बात, दूसरी बात होगी हनुमान एक देशी है शरीर धारी है सर्वव्यापक सूर्य का निगलना क्यों और कैसा सम्भव होगा ?

ठीक इसी प्रकार कुरान वालों का कहना है, हज़रत मुहम्मद साहब ने चाँद को ऊँगली के ईशारे से दो टुकड़ा किया |

यहाँ भी बात ठीक वही है, जैसा सूरज का खा जाना या निगल जाना सृष्टि नियम विरुद्ध है प्रकृति नियम विरुद्ध विज्ञानं विरुद्ध है | ठीक इसी प्रकार चाँद को कोई एक मानव अपनी ऊँगली से दो टुकड़ा करे यह सत्य से कोसो दूर हैं |

अब इस्लाम वालों का मानना है की अल्लाह ने सिर्फ और सिर्फ हज़रत मुहम्मद साहब को यह ताकत दी थी की वही इस काम को कर सकते थे | अब यहाँ हर जगह सन्देह के घेरे में आ गये अल्लाह भी और अल्लाह की कलाम भी वे अल्लाह के पैगम्बर भी | देखें कुरान >

اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ [٥٤:١]

क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया

وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ [٥٤:٢]

और अगर ये कुफ्फ़ार कोई मौजिज़ा देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है | यह है सूरा कमर =आयत 1 और 2 =

 

इसके अतिरिक्त बुखारी शरीफ हदीस में एक अध्याय है जो शक्कुल कमर के नाम से | जिसका तात्पर्य है चाँद का टुकड़ा होना | इसे इस्लाम ने मुयजजा {चमत्कार } कहते हैं जो सिर्फ और सिर्फ अल्लाह ने मुहम्मद {स:} को ही यह ताकत दी थी |

 

अब प्रश्न है की कौन सी बात सही है हनुमानजी वाली बात, अथवा मुहम्मद साहब वाली बात ? तर्क के तराजू पर कौन, और किसकी बात खरा उतरने वाली है ? यह दोनों बातें सत्य से दूर हैं, और यह दोनों ही कहते हैं हमारा सत्य है |  हम मानव कहलाने वालों को तर्क के आधार पर यह निर्णय लेना होगा सत्य और असत्य पर विवेचन करना होगा, तथा सत्य को ही ग्रहण कर हम मानव या मनुष्य कहलाने के अधिकारी बनेंगे उससे पहले हमारा नाम मनुष्य का होना सम्भव नहीं है |

आयें आज ही हम प्रतिज्ञा लें मानव बनने का और अपना जीवन को धन्य बनाएं सत्य स्वीकार कर |              महेन्द्रपाल आर्य =10 /7 /17 =

 

 

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