Your cart

Smart Watch Series 5
$364.99x

Running Sneakers, Collection
$145.00x

Wireless Bluetooth Headset
$258.00x
Total:$776.99
Checkout
सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग ही मानवता है |

Mahender Pal Arya
23 Feb 18
275
|| सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग ही मानवता है ||
सम्पूर्ण भारत में ऋषि मुनियों से लेकर अनेक पथ प्रदर्शको का आगमन हुआ, जिसमे सामाजिक धार्मिक और राजनैतिक क्षेत्र में जिन लोगो का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है इसमें हमारी परंपरा ये रही सत्य को नकारने की जिस सत्य को लोगो ने कड़वी कह कर छोड़ दिया या तो उस सत्य के नजदीक ही नहीं आये यद्यपि इस पर मै बहुत बार लिख चूका हु आप लोगो को बता चूका हूँ फिरभी कुछ नई बातें है देखें | इस पर अनेक जानकारी भी दे चूका हु इतिहास के पन्नो से फिर भी आज मै एक और जानकारी देना चाहता हु | भीष्म पितामह ने द्रौपदी को भरी सभा में अपमान किये जाने पर भी मौन रहे सत्य का उजागर नहीं कर सके इससे बड़ा उदहारण और किनका दिया जा सकता है भला ? कारण उस काल में भीष्म पितामह जैसे साधक, त्यागी, तपस्वी, चिन्तक, गवेषक, और कौन हो सकते थे भला ?
क्योकि वो काल ही ऐसा था दुर्योधन जैसे धर्म पर आचरण न करने वाले भी ये कहने लगे धर्म क्या है मै जानता हु किन्तु उस पर आचरण करने की वृत्ति मुझमे नहीं है | इससे यह बात स्पष्ट हो गयी भले ही दुर्योधन धर्म पर आचरण न करे किन्तु वो सत्य को स्वीकार रहा है और ये कह रहा धर्म क्या है मै जानता हु | आज के लिए दुर्भाग्य यही है की धर्म को न जानते है और न जानना चाहते है अगर कोई जानकारी भी दे तो स्वीकार करना तो दूर की बात सुनना भी पसंद नहीं करते |
इसी श्रृंखला में भारत के बंगाल प्रान्त में एक संत कहलाने वाले का आगमन हुआ जिनका नाम रामकृष्ण परमहंस देव था | सम्पूर्ण बंगाल में लोग उन्हें एक ईश्वर का साक्षात्कार करने वाले कहते रहे व मानते रहे | कहाँ तक सत्य है अथवा सत्य का होना संभव है या नहीं आज हम उसी का ही पड़ताल करेंगे और रामकृष्ण परमहंस देव की कही बातों को सत्य के तराजू पर तौल कर देखना चाहेंगे | रामकृष्ण परमहंस देव कालीभक्त थे जो की पौराणिक जगत में काली एक देवी का नाम है सम्पूर्ण दुनिया में लोग काली कलकत्ता वाली के नाम से जानते है |
रामकृष्ण परमहंस इसी काली के आराधक थे, भक्त थे, अथवा साधक थे | पहले काली की जानकारी हमें चाहिए की वो है कौन पौराणिक जगत में जिसे लोग माता के नाम से जानते है और उसी की पूजा धूमधाम करते है या मनाते है और जिसके सामने बलि भी चढ़ाई जाती है | इधर धर्म का लक्षण गिनाते हुए सबसे पहले अहिन्सा बताया गया, यही हिंसा न करना, यहाँ हिन्दूओं की देवी हिंसा से प्रसन्न होती है, जो अधर्म है | फिर रामकृष्ण परमहंस धार्मिक या धर्म के जानने वाले क्यों और कैसे होंगे ? फिर भी हिन्दू घराने के लोग उन्हें साधक, महात्मा, धर्म गुरु ही मानते हैं |
अब सवाल पैदा होता है देवी कौन ? देवता का स्त्रीलिंग है देवी जिसमे देने का गुण हो उसे देवता कहते है देवत्व का गुण रखने वाला देवता और देवत्व का गुण रखने वाली देवी बिलकुल सीधा सपाटा अर्थ है | अब देने के बजाय जो देवी अपने भक्तों से अन्य प्राणियों के प्राण ले अर्थात जिनके सामने बलि चढ़ाई जाये वह देवी क्यों और कैसे हो सकती है ?
यहाँ मैं एक और स्पष्टीकरण देना चाहूँगा किसी देवी का परमात्मा होना कैसा संभव होगा भला ? इसका जवाब है परमात्मा को सिर्फ़ पिता नहीं माता भी कहा जाता है | यानि वेद कहता है परमात्मा, माता, पिता, बन्धु, और सखा भी है, इस कारण अगर काली को हम माता कहें तो कोई भी गलत नहीं है | परन्तु उसे एक वीभत्स रूप देकर नग्न चित्र चार हाथ नरमुण्डी की माला गले, चारों हाथ में खन्जर, जीब निकला हुवा, किसी पुरुष के सीने पर पैर रख कर खड़ी है, यह है माँ काली कलकत्ता वाली |
यह भले ही लोग इसे माता कहें, किन्तु यह परमात्मा नहीं है, कारण परमात्मा निराकार है इस लिए परमात्मा हा होना सम्भव नहीं | अब रामकृष्ण परमहंस को इसी काली का भक्त कहा जाता है माना जाता है आदि | यहाँ तक कहावत है की इन्ही काली मांता से वह बात भी करते थे |
अब प्रशन है की जो परमात्मा निराकार है उससे बात करना किस प्रकार सम्भव और उचित है ? इसे कोई सत्य सिद्ध कर दिखाए | इन्ही रामकृष्ण के पास जब नरेन्द्र {विवेकानंद} गये मिलने को और पूछा बाबा आपने माँ {यानि काली} को देखा है क्या ? जवाब दिया रामकृष्ण ने अरे साले माँ को देखना क्या माँ से बात भी किया हूँ | विचारणीय बात यह है की कौनसा स्वस्थ दिमागवाला यह कहे की परमात्मा से बातें करना क्यों और कैसे सम्भव है ? भक्तों ने इसे पत्थर का लकीर मान लिया की बाबा बिलकुल सत्य बोल रहे हैं | किसी स्वस्थ दिमाग वाले ने यह विचार नहीं किया की यह पागल आदमी जानता ही नहीं है की निराकार परमात्मा से बातें करना किस प्रकार उचित हुवा ? इसी पागलपन विचार वाले रामकृष्ण ने गौमांस खाया नमाज भी पढ़ी |
नमाज पढ़ने वाली बातें जब उनसे पूछा गया, तो वे कहने लगे, मैं नमाज़ पढ़कर देख रहा हूँ ईश्वर को पा सकता हूँ या नहीं ? अर्थात अपने धर्म की उन्हें जानकारी नहीं थी,और ना वह धर्म को जानते थे अगर धर्म को जानते तो नमाज पढ़कर ईश्वर को पाया जाता है या नहीं इस का अर्थ भी यही है की वह जिस धर्म के मानने वाले थे, या जिस काली के नाम से वह तमाशा कर रहे थे उसमें उन्हें ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई थी, इधर नरेन्द्र को भी झूठ बोला की माँ से बात भी किया हूं |
इस प्रकार हमलोगों ने सत्य क्या है कहाँ है इसे जानने का प्रयास ही नहीं किया और रामकृष्ण परमहंस को एक सन्त बनाकर समाज में प्रस्तुत किया | उधर दुर्यधन कह रहा है धर्म क्या है मैं जनता हूँ, उसपर अमल करने की वृत्ति मुझमें नहीं है, इधर रामकृष्ण धर्म को जानते नहीं है और धर्म के नाम से दुनिया को पागल बनाते गये उनके अनुयायी भी वही लोग हैं जिन्हें सत्य से कोई वास्ता ही नहीं | मेरे पास और भीअनेक प्रमाण है | फिर कभी =महेन्द्रपाल आर्य =23/2/18 =