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सत्य सनातन वैदिक धर्म का आधार ही सत्य है ||

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सत्य सनातन वैदिक धर्म का आधार ही सत्य है ||
ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि
आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने डंके की चोट मानव समाज को, सत्य को अपनाने का उपदेश दिया जिस समय भारत वर्ष के लोग सत्य से विमुख हो चले थे | ऋषि दयानंद ने उन अंग्रेजी काल में सम्पूर्ण मानव समाज को झक झोड़ा था तो केवल और केवल उनके पास एक ही हथियार था सत्य |
सत्य के बल पर राजा,महाराजाओं को हिलाकर रख दिया था, मानों ऋषिदयानन्द जी ने एक इसी सत्य को ही अपना हथियार बना लिया था और इसी हथियार से धराशाही कर के दिखा दिया सम्पूर्ण मानव समाज को |
अनेक राजाओं ने उन्हें सत्य से रोकने के लिए तरह तरह के प्रलोभन भी दिया धन सम्पत्ति से लेकर मौत के घाट उतारने की भी धमकी दी, मात्र धमकी ही नहीं हमला भी किया तलवार लेकर कूद पड़े | ऋषि ने कुछ भी परवाह किये बिना लपक कर राजा से तलवार ही छीन लिया और दो टुकड़े कर दिया | जब सामने से मार नहीं पाए तो विष दिया एक बार नहीं अनेक बार, लम्बी कहानी है उसे मैं लिखकर पुस्तक बनाना नहीं चाहता |
ऋषि दयानंद जी ने उसी काल में एक कालजयी ग्रन्थ लिखकर मानव समाज को दिया, सत्य के आधार पर | जिस ग्रन्थ का नाम सत्यार्थ प्रकाश रखा, जिसमें ऋषि ने यह भी स्पष्ट किया की मेरा उद्देश्य किसी का दिल दुखाना नहीं है मात्र सत्य और असत्य क्या है उसे उजागर करना ही मेरा मकसद है | ऋषि ने यह भी लिखा की यह सत्य मेरा बनाया चलाया नहीं है, ब्रह्मा से लेकर जैमिनी पर्यन्त ऋषियों के चलाये हुए हैं |
 
इस ग्रन्थ को लिखते हुए ऋषि ने लिखा है = ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि | दुर्भाग्य यह है की आज इसी दयानन्द जी की बनी संस्था में बैठे लोग ही इसी सत्य को तिलांजली दिया है| और असत्य को अपने जीवन का लक्ष्य मान कर ऋषि की संस्था में कूद रहे हैं उनके नाम बनी संस्था में अगर लोगों ने दान दिया था तो ऋषि दयानंद जी के सत्यवादिता के कारण ही लोगों ने अपनी संपत्ति को ऋषि दयानंद के नाम बनाई संस्था को दान दिया | आज उसी संस्था में असत्य वादियों ने कब्जा कर लिया है और सत्य वादिता पे आचरण किये बिना मात्र संपत्ति और पदों को ही सब कुछ मान लिया है | इसका नतीजा यह हुवा की ऋषि दयानन्द जी ने यही सत्य के बल पर अनेक मत मजहब वालों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा और सम्पूर्ण भारत भर उन मत मजहब वालों को परास्त किया | आर्य समाज का यही इतिहास है इसका मूल कारण ही है सत्य, कारण सत्य की कभी हार नहीं होती सत्य सदा सर्वदा सर्वोपरि होता है और होता रहेगा |
ऋषि दयानंद जी के इस कार्य को दयानन्द जी के नाम बनी संस्था मे बैठे नेता अधिकारीगण इसी सत्यवादिता को त्याग दिया और असत्य के पक्षधर हो कर संपत्ति को लेकर झगडने लगे | यहाँ तक की यह झगडा केवल एक कोर्ट में सीमित नहीं है प्राथमिक न्यायालय से सर्वोच्य न्यायालय तक पहुँचा दिया | इस न्यायालय के चक्कर तो कई सन्यासी को काटते देखा |
यहाँ वैदिक संस्कृति में चार आश्रम है जिसमें एक आश्रम का नाम सन्यास आश्रम है जो त्याग ही जिनका जीवन होता है | दुनियादारी से हटकर मात्र अपना ही नहीं प्राणी मात्र का कल्याण और मानव मात्र को आत्मिक उन्नति से अवगत कराना ही जिनके जीवन का लक्ष्य है | क्या यह सन्यासी कहलाने वाले अपने लक्ष्य को भूल गये या छोड़ चुके, क्या यह सच्चाई नहीं है ?
 
ऋषि दयानद लाहोर में आर्य समाज के एक अन्तरंग की बैठक में भाग नहीं लिया, कहा मैं आपका सदस्य नहीं हूँ | तो ऐसे ऋषि से क्या लिया इन सन्यासियों ने ? आज सत्य पर असत्य हावी होता जा रहा है इसका मूल कारण ही यही जिन्होंने सत्य के बलपर सभी मत पंथ वालों को परास्त किया,आज वही मतपंथ वाले ही दयानन्द के नाम बनी सार्वदेशीसभा के सदस्य हैं |
 
जिस सच्चाई के बल पर सत्य सनातन वैदिक धर्म को ऋषि दयानन्द जी ने जनमानस को मात्र एक वेद से जोड़ा आज उसी वेद को लोग छोड़ कर वैदिक धर्म का नाश करने में लगे हैं, उन्हें वैदिक सत्य की जानकारी कौन कराएँगे ? जिन्होंने जिम्मेदारी ली वेद का पढना पढ़ाना और सुनना सुनाना ऋषि दयानंद ने परम धर्म लिखा है | वह तो एक सीमित दायरे में ही रहगया, ऋषि दयानन्द ने डंके की चोट पर कहा सृष्टि के आदि से यह सत्य सनातन वैदिक परम्परा है आज कुछ अकलके दुश्मन इसे जानकारी लिए बिना ही {5000} पाँच हज़ार साल पुरानी बता रहे हैं | और अक्लके अंधे और गांठ के पुरे उनसे यह नहीं पूछ रहे की आप जो कह रहे हैं यह सत्य है या असत्य ? मात्र इतना ही नहीं किसी से जुड़े जीवन की घटना को भी गलत बता कर वाह वाही ले रहे हैं |
 
दुःख तो यह भी है की जिस ऋषि ने इस सत्यता को मानव समाज के सामने उजागर किया उस से जुड़े लोग भी उन्हें वाहवाही दे रहे हैं | उन्हें सत्य से अवगत कराने के बजाय उनसे झूठ को सुनकर उनकी हिम्मत अफजाई या उत्साहित कर रहे हैं | मेरे साथ मुसीबत यह है की मैंने सत्य को जहाँ वेदप्रचारक ऋषि दयानन्द जी से पाया, आज वही लोग असत्य को प्रोत्साहित कर रहे देखकर हैरान हूँ परेशान भी हूँ | महेन्द्रपाल आर्य = 16 /4 / 20

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