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सन्यासियों को ऋषि दयानन्द जी का उपदेश |

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सन्यासियों को ऋषि दयानन्द जी का उपदेश ||
नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहितः | नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात ||
जो दुराचार से पृथक नहीं, जिसको शांति नहीं, जिसका आत्मा योगी नहीं और जिसका मन शांत नहीं, वह सन्यास लेके भी प्रज्ञान से परमात्मा को प्राप्त नहीं होता |
यछेद्वांगमनसी प्राग्यस्तद यच्छेद ज्ञान आत्मनि | ज्ञान्मत्मनी महति नियछेत तद्यछेत इछान्त आत्मनि ||
सन्यासी बुद्धिमान वाणी और मन को अधर्म से रोके, उनको ज्ञान और आत्मा में लगाये, और उस ज्ञान आत्मा को परमात्मा में लगावे और उस विज्ञान को शान्तस्वरुप आत्मा में स्थिर करें |
मेरा सवाल इन आर्य समाजी कहलाने वाले सन्यासियों से है जो सन्यासी का चोला पहन कर अपने को आर्य समाजी भी बतला रहे हैं और ऋषि दयानन्द जी के उपदेशों का गला घोटने में लगे हैं क्या यही हैं आर्य समाज के सन्यासी ?
ऋषि दयानंद ने यह उपदेश अपने सत्यार्थ प्रकाश के पञ्चम समुल्लास में लिखा है जो प्रमाण ऊपर दिखाया गया,यह किनके लिए ऋषि ने लिखा है ?
इसी सत्यार्थप्रकाश में ऋषि दयानन्द जी ने आठ लोगों को कसाई लिखा है, अर्थात मात्र गाय काटने वाला ही कसाई नहीं है अपितु गाय को बेचने वाले से लेकर मांस के खाने वाले तक है |
ठीक इसी तरीके से जो लोग इस सन्यासी का समर्थन करता है वे भी इसी कसाई में गिने जायेंगे वह भी कसाई ही है, जो इस अग्निवेश नामी सन्यासी का समर्थक है | यही मान्यता ऋषि दयानन्द की है मेरी खुली चुनौती है ऐसे सन्यासी को और उनके समर्थकों को जो अपने को आर्य समाजी बतलाते हैं | मुसलमानों के सभा में जा कर मिथ्या भाषण सुनाकर राष्ट्र विरोधी वक्तव्य देकर वाहवाही लुटने वाले आर्य सन्यासी नहीं हो सकते |
जिस ऋषि दयानन्द जी के संगठन आर्य समाज ने अंग्रेजों से लोहा लिया ऋषि ने खुद अंग्रेज वायसराय से कहा हम विदेशी रजा नहीं चाहते,अपने ही देश के लोगों को राजा देखना चाहते हैं | इसी संगठन में बैठ कर इस्लाम के पक्ष में बोलने वाला राष्ट्र का विभाजन करने का सर्मर्थ्क अग्निवेश कभी आर्य समाजी हो सकता है |
पिछले दिन कश्मीर में मेरीजान पाकिस्तान कहने वाला मुसर्रत का समर्थन करने वाला अग्निवेश कभी आर्य समाजी कहलाने का हकदार बन सकता है ?
यह सवाल हर आर्य समाजियों से है,वह बताएं सच क्या है ? महेन्द्रपाल आर्य =19 /4 20
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