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सभी मत मजहब का आधार ही अंध विश्वास है ||

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सभी मत पंथ का आधार अन्ध विश्वास है ||

अभी मेरे फेसबुक में हमारे एक मित्र श्रीकेशव आक्रोशित मन ने लिखा की. सभी धर्मों में महिलाओं के साथ दुर्व्यबव्हार हुवा है | मैंने अभी उन्हें लिखा की केशव बाबु सभी धर्मों का क्या मतलब है, यह सभी धर्म कब से है ? अगर सभी धर्म है तो इसकी शुरुयात किसी एक से ही हुई होगी, जो चलते चलते आज सभी में अर्थात अनेक में पहुंच गई है? अगर किसी एक से इसकी शुरुयात हुई तो वह कौनसा धर्म था ?

आज मानव समाज में यह बहुत बड़ा प्रश्न है, किन्तु समाधान कोई नही चाहता और ना समाधान कोई ढूंढ रहे हैं ?  इसका मूल कारण है की अगर समाधान ही निकालने लगेंगे, फिर अपनी दुकानदारी कहाँ करेंगे ?

आज तो धर्म के नाम से महज दुकानदारी ही करने लगे हैं दुकानदार लोग | और खूबी की बात है की यह जानते भी नही की धर्म है क्या, किसे धर्म कहा गया धर्म का परिभाषा क्या है, धर्म किसके द्वारा बनता है, अर्थात धर्म के संचालन करता कौन है आदि ?

इसका समाधान यह है की धर्म किसी व्यक्ति के बनाये नही होते, कारण धर्म उस व्यक्ति के धरती पर आने के पहले से ही है | कारण धरती का बनाने वाला कोई व्यक्ति नही है, उस व्यक्ति के आने से पहले, आकाश, वायु, जल, गगन, सूर्य, चंद्रमा, सितारे, आदि जितने भी हैं, क्या वह रामके बनाये हुए हैं, कृष्ण के बनाये हुए हैं ?

अथवा इनलोगों के आने पर बने हैं, या इन सबके आने से पहले से ही बने हैं ? जिसे लोग हिन्दू धर्म कह रहे हैं, जो हिन्दू समझते हैं हिन्दू धर्म राम और कृष्ण से हैं |

समाधान यह निकला की, नही हमारे इन महापुरुषों ने अपने माता पिता के गर्भ से उत्पन्न हुए, तो उनके माता पिता का भी कोई धर्म रहा होगा, तो धर्म उन लोगों से नही किन्तु धर्म उन लोगों के पहले से ही है | तो वह धर्म कौनसा है उसका बनाने वाला कौन है ? समाधान यह है की धर्म सृष्टि के आदि से है मनुष्य मात्र के लिए है सृष्टि के बनाने वाले ने सृष्टि के बनने के साथ ही मानव मात्र को धर्म दिया है |

देखें विचार पूर्वक, हवा, जल, आकाश, धरती, सूर्य, चंद्रमा, सृष्टि से ही है अथवा सृष्टि के बाद में है ? पता लगा सृष्टि रचाने वाले ने यह सब चीज पहले बनाए हैं | ज्ञान पहले है कर्म बाद में है कारण ज्ञान के बगैर कर्म का करना संभव नही है | वेद वही ज्ञान है पुस्तक नही जिस ज्ञान का देनेवाला परमात्मा है सृष्टि का रचने वाला भी परमात्मा है, मनुष्य मात्र के लिए धर्म को देने वाला भी वही परमात्मा है |

परमात्मा पहले से है, वह अनादी है, यह जीव, भी पहले से है, कारण यह भी अनादी है, यह प्रकृति भी पहले से ही है कारण यह भी अनादी है | यह तीन चीज अनादी हैं, इसे थोडा और समझें सृष्टि रचने वाले ने प्रकृति को नही बनाया, कैसा देखें यह मिटटी में जो तासीर है वह कबसे और किस प्रकार है देखें, मिटटी वही है, जिसमे हम अनेक पेड़ पौधे वनस्पति आदि देखते हैं | उसी मिटटी से कौन क्या और कैसे गुणों को ले रहा है देखें |

इमली खटास को लिया, सेव, संतरे आम, व ईंख ने मिठास को लिया, और मिर्च उसमे से मिरचाई

{चर्चारे} को लिया है | इमली ने मिठास को नही लिया कारण इमली का गुण है खटाई | मिर्च ने उसी मिटटी से अपना गुण चरचरा पन को लिया, खटाई को लेने से उसका नाम मिर्च ही नही हो सकता था |

अब ईंख को देखें उसने वही मिटटी से अपना गुण मिठास को लिया, अगर खटाई को लेता, तो उसका नाम ईंख नही पड़ता | अब विचार करें, यह सब गुण किसी मनुष्य के बनाए हुए हैं ? अथवा किसी व्यक्ति या मनुष्य में यह ताकत है की इमली को मिर्च बनादे, या मिर्च को इमली बनादें, अथवा आम में मिर्च का गुण पैदा करदे ? यह काम मनुष्य का नही है और ना यह काम कोई मनुष्य कर सकता है, यह सभी गुण आम में, इमली, और मिर्ची में ईंख में कबसे है ?

समाधान मिला यह सभी सृष्टि रचना के प्रथम से ही है, तो क्या आज तक मिर्च ने अपने गुणों को छोड़ा ? या इमली ने अपना गुण को बदला, अथवा आम ने अपने तासीर केले में बदला ? और भी इन तीनो ने जिस मिटटी से अपने अपने गुणों को लिया, वह मिटटी भी आज तक सब को अलग अलग अपने गुणों को देना बन्द नही किया |

यह कितनी समझने और जानने की बात है अगर इन्सान कहलाने वाले इस जड़ मिटटी से ही कुछ सीख लेते फिर मानव कहलाने के अधिकारी बनते, वह भी नही कर पाया, यह अपने को अकलमन्द माने बैठे है, जाने बैठे हैं आदि आदि |

विचारणीय बात यह है की जब यह, आम, मिर्च और इमली या ईंख, अपने, अपने गुणों का पालन कर रहे हैं, तो सृष्टि कर्ता ने जो मानव बनाये क्या उसके लिए कोई धर्म नही बनाया ? क्या यह संभव है, क्या उसपर दोष नही लगेगा ?

फिर इन मानव कहलाने वालों को आज धर्म बनाना पड़ गया है, हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैनी, बौधी, सिख, बहाई, इन सब को धर्म कहा जा रहा है | जब की यह सभी किसी व्यक्ति या मनुष्य के बनाये हुए है, अथवा यह व्यक्ति विशेष के विचार है जो मत है, पंथ है, मजहब हैं, संप्रदाय है, रिलिजन है |

अगर इन मानवों द्वारा धर्म होगा, तो यह सभी लोग अपने माता पिता से ही धरती पर जन्म लिए, यह लोग अगर धर्म चलाये तो उन सबके माता पिता, क्या बिना धर्म वाले थे ?

आज हमें इन्ही बातों को समझना होगा, और इसी से समाधान भी लेना होगा, फिर यह दुनिया के जितने भी मत मजहब है उनसे छुटकारा मिलना संभव होगा वरना यह आये दिन कहीं किसी को कोई ईसाई, मुस्लमान, जैनी, बौधी, सिख, बनते रहेंगे जो मानव शन्ति का अग्रदूत है उन्ही मानवों द्वारा धरती मानवों के खून से रंगना बन्द हो सके गा | हमें इन मानव कहलाने वाले को यह बताना होगा की सृष्टि के आदि में सृष्टि रचाने वाले ने जो हमें मानव धर्म,सत्य सनातन वैदिक धर्म {मनुष्य} मात्र को दिया है हमें उसी पर अमल करना होगा उसी मानव धर्म को जानना होगा मानना और अपनाना होगा, फिर हम मानव कहलाने के अधिकारी बनेंगे |

जैसा उपर दर्शाए गये ईंख, इमली, मिर्च, आम.आदि अपना धर्म अथवा गुण को नहीं छोड़ा, तो धर्म मनुष्य मात्र के लिए एक ही है हम उसे किस लिए छोड़े ? क्या आदि सृष्टि से मनुष्य अपने माता, पिता, भाई बहन, को माता, पिता, भाई बहन ही मानते हैं, अथवा सृष्टि के काफी वर्षों के बाद माता पिता को जाना या पहचाना है ?

किन्तु दुर्भाग्य यह है की बाईबिल, और कुरान इससे सहमत नही, इन लोगों का कहना और मानना है एक स्त्री और एक पुरुष से सृष्टि बनी | जो आदम, व हवा =अथवा आदम.और इभ. कहा है कुरान तथा बाईबिल ने, और उन्ही स्त्री और पुरुषों ने जो सन्तान जोड़ों जोड़ों में बेटा और बेटी को जन्म दिया, उन्ही भाई बहनों में शादी हुई |

विचारणीय बात यह है की यदि यही अन्ध विश्वास ही अगर धर्म है, फिर अधर्म किसे कहेंगे ? उसी सृष्टि से कोई भी वस्तु अपने गुणों को कर्तव्यों को नहीं छोड़ा, तो यह मनुष्य कहला कर अपने मनुष्य पन धर्म को कैसे छोड़ सकता है भला ?

कारण मनुष्य वही है जो अपना बहन को बहन जाने, माने, और कहे, वही मनुष्य है, यह ज्ञान पशुओं को नही वह जिससे जन्म लेता है उसी से ही सन्तान जन्म देता है क्या यह काम मनुष्य कर सकता है ? नही कारण इसी लिए ही इसका नाम मनुष्य पड़ा अब कोई अपने बहन को पत्नी बनाकर उस से सन्तान जन्म दे फिर उस मनुष्य में और जानवरों. में अन्तर क्या रहेगा ?

यह सृष्टि नियम के विरुद्ध है मान्यता विरुद्ध भी है, किन्तु बाईबिल, कुरान, पुराण, आदि ग्रन्थ इस से सहमत नही यह सृष्टि नियम को बदल कर भी अपने को धार्मिक बता रहे हैं | कैसा देखें, इन्ही ग्रन्थों ने अथवा इन ग्रंथों को मानने वालों ने किसीने कहा, कोई सूरज को खा गया, किसीने किसी से चाँद को ऊँगली के ईशारे से दो टुकड़ा कर दिया बताया | किसी ने किसी को मुर्दा को जान देने वाला कहा, और सूरज के आग से मछली को भुना गया बतादिया |

किसी ने धरती को या सृष्टि को 6 दिन में बनाकर सिंहासन पर बैठा बताया तो किसी ने कहा वह किस लिए बैठेगा वह थकता नही तो बैठेगा किसलिए ?

किसी ने कबर में सजा देने वाला सांप का नाख़ून 12 क्रोस का माना, तो किसी ने किसी व्यक्ति का मोंच ही 24 क्रोस का कहदिया | किसी ने सीता का अग्नि परीक्षा बताया, तो किसी ने इब्राहीम को नमरूद ने आग में डाला,और वह आग फुल का बगिचा बन गया कहदिया आदि |

किसी ने माँ के उदर से चक्रव्यू तोड़ना सीखा बताया,तो किसीने माँ के उदर से 18 सिपारा कुरान हिफ्ज़ करके बाहर निकला कहदिया |

कुछ किस्सा बाईबिल का सुनें जिसको ईसाई खुदाकी कलाम बताते हैं, किस प्रकार अन्ध विश्वासों में लोग जकड़े हुए हैं देखें, जिसे ईसाई धर्मग्रन्थ बता रहे हैं |

उत्पत्ति, सृष्टि का वर्णन = 1=आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि कि | 2=और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी और गहरे जल के ऊपर अँधियारा था तथा परमेश्वर की आत्मा जल के उपर मंडरा रहा था | 3= तब परमेश्वर ने कहा उजयाला हो तो उज्याला हो गया | 4= और परमेश्वर ने उजयाला को देखा की अच्छा है | और परमेश्वर ने उजयाले को अन्ध्यारे से अलग किया |

इन अकलमंदों को यह नही पता लगा की प्रकाश से अन्धेरा अपने आप ही दूर होता है | अब हम थोडा विचार करें बाईबिल की इन आयातों पर, क्या यही परमेश्वर का ज्ञान है अथवा इस में कुछ ज्ञान हम मानव समाज को मिल रहा है ?

पहली बात तो यह है की यह बाईबिल हज़रत ईसामसीह के धरती पर आने के बाद से है | और हज़रत ईसामसीह अपने माता पिता के गर्भ से जन्म लिया, अगर यही हज़रत ईसा मसीह से ईसाई धर्म है, तो उनके माता पिता का धर्म जरुर ईसाई धर्म नही हुवा ? तो वह कौनसे धर्म के मानने वाले थे ? अथवा वह बिना धर्म वाले ही थे ?

दूसरी बात यह भी है की बाईबिल अनुसार सृष्टि का वर्णन बताया जा रहा है तो ईसा से पहले बाईबिल नही थी तो सृष्टि भी नही थी | और ईसा मसीह के माता पिता क्या सृष्टि से बाहर थे ?

अब इसी कसौटी को यह जितने भी धर्म कहलाने वाले हैं सब से पूछ कर देखें इसका जवाब किसके पास है ? कौन कहेगा की उससे पहले दुनिया नही थी ? अब चलें कुरान वालों से भी जरा जानकारी ले लेते हैं, क्या ख्याल है कुरान का और कुरानी अल्लाह का, अथवा कुरान को ईश्वरीय ज्ञान, और इस्लाम को धर्म कहने वालों का ?

कुरान में अल्लाह के हो जा कहने मात्र से हो जाता है|

بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَإِذَا قَضَىٰ أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ [٢:١١٧]

वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि “हो जा” और वह हो जाता | सूरा बकर =117

बस कह देता है कि “हो जा” और वह हो जाता | भाईओं अल्लाह किसी चीज को बनाने के लिए मात्र कहता है हो जा और हो जाता है | जरा दिमाग से सोचें की बिना कारण का होना क्यों और कैसे संभव होगा ? होने को कम से कम तीन उपकरण चाहिए |  दुकानदार, दुकानमें सामान, और खरीदार, पुजारी पूजाकी सामग्री, और जिसकी पूजा हो | जैसा नमाज, नमाजी, और जिन के लिए नमाज पढ़ी जावे |

قَالَتْ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي وَلَدٌ وَلَمْ يَمْسَسْنِي بَشَرٌ ۖ قَالَ كَذَٰلِكِ اللَّهُ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ إِذَا قَضَىٰ أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ [٣:٤٧]

वह बोली, “मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कहाँ से होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं?” कहा, “ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है ‘हो जा’ तो वह हो जाता है | सूरा अल इमरान =47

नोट :- जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है ‘हो जा’ तो वह हो जाता है दुनिया वालों बात यहाँ भी वही है, किसी चीज को बनाना हो अल्लाह को, तो वह मात्र कहता है होजा और वह हो जाता हैं |

अब प्रश्न खड़ा है की दुनिया बनाने से पहले कोई वस्तु थी ही नही तो अल्लाह ने किस से कहा हो जा, हुवा भी किस चीज से जब कुछ थी ही नही ? और यह बात कुरान में कही गई तो कुरान अल्लाह की कही गई, कुरान में अल्लाह ने कही होजा बस हो गई | कुरान से पहले दुनिया को किसने बनाया था ? वह लोग कौन से धर्म वाले रहे उस समय जो लोग थे उनका धर्म क्या था ?

 

إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ اللَّهِ كَمَثَلِ آدَمَ ۖ خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ ثُمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ ٣:٥٩

निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, “हो जा”, तो वह हो जाता है |

नोट:- दुनिया वालों जरा विचार करें, कुरान में अल्लाह ने खुद कहा सृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है की आदम बिना माँ बाप के थे, और ईसा बिना बाप के हैं, मैं तो सिर्फ बता ता हूँ की होजा, बस होजाता है |

यहाँ हमें मानव होने के नाते हमें यह सोचना और समझना जरूरी है की यह धर्म है की मानव समाज को बाँटने की बात है ? मानव समाज को एक दुसरे से लड़ाने की बात है और यही काम अगर अल्लाह, और गॉड के नाम से हो तो बताना वह अल्लाह, अथवा गॉड मनुष्य मात्र के लिए क्यों और कैसा हो सकता है ?

कारण धर्म का काम है मानव से मानव जोड़ना | मानव को मानव से अलग कर भी यह मजबह वाले ही अपने को धर्म कह रहे हैं मान रहे हैं,और मानवों को मानवों से लड़ा भी रहेहैं धर्म के नाम |

यही कारण है की धर्म ईश्वर के निर्मित हैं मानवों के नही, इस लिए धर्म में झगडा नही है, मजहब में ही झगडा है मजहबी लोगों मे भी झगडा है कारण मजहब के जन्म दाता मनुष्य है उसकी स्वार्थ सिद्ध नही होती है तो वह झगड़ा कराएगा |

जो आज रोजाना हम भारत वासियों को देखने को मिलरहा है,  तथा सुनने को भी मिल रहा है | जो यह सर्वथा मानवता विरोधी है |  आज अगर सावधान होना है तो इन मजहबी दुकानदारों से सावधान होना है तभी हम मानव कहला पाएंगे और मानवता की रक्षा भी कर पाएंगे |

महेन्द्रपाल आर्य =5/10/20

 

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