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सम्पूर्ण मानव समाज को एक विशेष जानकारी |

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सम्पूर्ण मानव समाज को एक विशेष जानकारी |
आज के दिन आर्य समाज नामी संस्था को एक बहुत बड़ा अवसर मिला है अगर यह ऋषि दयानंद के बताये मार्ग शास्त्रार्थ को अपना कर्तव्य मानलें तो |
 
ऋषि दयानन्द जी की बनी संस्था आर्य समाज को अगर मानव समाज में जानागया तो उसका मूल कारण ही था {शास्त्रार्थ} ऋषि दयानन्द जी ने दुनिया को बतादिया की मानव मात्र का धर्म एक ही होता है जिसे सत्य सनातन वैदिक धर्म कहा जाता है,ठीक इसी प्रकार धर्म ग्रन्थ भी मानव मात्र का एक ही है जो ईश्वरीय ज्ञान वेद है |
 
ऋषि दयानन्द जी ने मात्र लोगों से कहा ही नहीं अपितु डंके की चोटपर इसे प्रमाणित भी कर दिखाया मानव समाज में | इस कारण ऋषि दयानन्द को अनेकों आपदाओं को भी झेलना पड़ा राजा महाराजाओं से लेकर अनेक दुकानदारों ने इन्हें समाप्त करने तक का प्रयास किया, धनसंपत्ति का लोभ और लालच तो दिया ही था | विष देने से भी लोग नहीं डरे,और ऋषि को विषपान भी करना पडा, किस कारण ? सिर्फ इसी बात पर की धर्म एक है मानव मात्र का, और धर्म ग्रन्थ भी एक है मानव मात्र के लिए जिसे वेद कहते हैं, इसी बात पर ऋषि को विष देने से लेकर न जाने कैसी कैसी यातनाएं दी गई |
 
मानव समाज में महाभारत काल के बाद अगर कोई ऋषि का आगमन हुवा तो वह यही ऋषि दयानन्द ही थे जिन्होंने मानव मात्र का धर्म एक है बताया | मानव कहलाने वालों ने सत्य सनातन वैदिक धर्म से अपनी दूरी बना ली अपनी अज्ञानता के कारण | सत्य को झूठ और झूठ को ही सत्य मान कर मानव समाज को सत्य से विमुख करते रहे केवल अपने स्वार्थ के लिए, की मानव समाज में हमारी धाक जमें पहचान हो |
 
इसी बात को लेकर धरती पर सब लोगों ने अपनी अपनी दुकानें खोल ली और भीड़ जुटाने लगे, जिन्हें सत्य बताना था वही सत्य से विमुख हो कर मात्र अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए मानव समाज में धर्म के नाम से विष घोलने का काम किया | जो आज मानव समाज में एक नासूर बन चुका है और इसी धर्म के नाम से मानव कहलाने वाले हो कर एक दुसरे को जानसे मारने के लिए प्रयास कर रहे हैं, और कहीं कहीं जिनको जहाँ मौका मिला दुनिया से उनकी छुट्टी करदी |
परेशानी की बात यह है की यह सभी काम धर्म के नाम से करने लगे, आज मानव समाज इसी धर्म के नाम से सम्पूर्ण धरती को मानवों के खून से रंगने में कोई संकोच भी नहीं कर रहे हैं और ना तो उन्हें कोई अफ़सोस |
 
आर्य समाज में ऋषि दयानन्द जी के बाद भी यह शास्त्रार्थ की परम्परा चलती रही, भारत भर अनेकों शास्त्रार्थ आर्य समाज के विद्वानों ने किया और आर्य समाज अपनी पताका को बुलन्द करते रहे | यह काम एक आर्य समाज को छोड़ किसी भी संस्था ने नहीं किया,और दुनिया वालों को दिखा दिया और बता भी दिया की धर्म मानव मात्र का एक है, और धर्म ग्रन्थ मानव मात्र का वेद है |
 
आर्य समाज का एक अपना इतिहास है अपने विद्वानों का, जिन्हों ने जिन्दगी लगादी थी इसी कार्य को करने में जिसे हम शास्त्रार्थ कह रहे हैं | अगर आज भी आर्यसमाज के अधिकारी चाहें सार्वदेशिक सभा यह घोषणा करे की आ जाओ शास्त्रार्थ के लिए – धर्म एक है या अनेक इसकी पड़ताल हो जाये जिस कार्य को ऋषि दयानंद जी के आर्य समाज के जन्म से करते आये हैं | यह खुली चुनौती सभी मत पंथ वालों को दी जाय, आर्यसमाज का वह स्वर्णिम इतिहास को आज भी हम शास्त्रार्थ करके लौटा सकते हैं |
 
आज ही आर्य समाज के अधिकारीयों को इस काम में जुट जाना चाहिए जिससे की ऋषि ऋण से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए | मात्र दयानन्द की संस्था पर आमदनी खाने को न बैठें अपितु दयानन्द जी के छूटे कार्य को भी पूरा करने की प्रतिज्ञा करें | धन्यवाद के साथ= महेन्द्र पाल आर्य =15 /5 /20 =

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