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सरकारी अवार्ड वापस करना देश द्रोह है |

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|| सरकारी अवार्ड वापस करना देशद्रोह है ||
यह कोई नई बात नहीं की 49 लोगोंने अबकी बार यह बोला,या प्रधानमंत्री जी को लिखकर दिया हो ?अवार्ड वापसी की बात हो या फिर मोव लिंचिंग की बात हो | यही राष्ट्र द्रोह भारत वासियों के नस नस में भरी हुई है | भारत का यह इतिहास रहा है की यह भारतीय लोग राष्ट्र विरोधी ना होते तो यह देश गुलाम नहीं होता मुस्लमानों का या ईसाइयों का |
हमारे देश में जैचंद ही नहीं अपितु विभीषण भी पैदा हुए हैं | उनदिनों तो हमारे देश में ना कोई मुस्ल्मान था और ना कोई ईसाई | यह देश आपसी फुट का शिकार बहुत पहले से ही रहा है | आज तक का इतिहास यही बताता है यद्यपि इसी इतिहास को बहुत बार बदलने का प्रयास किया है इन राष्ट्र विरोधियों ने |
फिर भी सत्य को नहीं मिटा पाए और ना सत्य को मिटाया जाना सम्भव है | ज़रूर आप लोगों ने सुना देखा और पढ़ा भी होगा की लोगों ने यहाँ तक कहा राम नामका कोई इस धरती पर पैदा ही नहीं हुवा | फिर उसके नाम से मैन्दिर कैसा ? मैं उनलोगों का नाम गिनाना नहीं चाहता बड़ी लम्बी लिष्ट है ऐसे लोगों की |
राम के देश में ही जब राम का विरोध होता आया है तो यह कलाकार हो लेखक हो और नचनिया गवैया हो उनलोगों में राष्ट्र विरोधी गतिविधि ना हो यह तो मनमें लाना तक संभव नहीं ? यह देश गुलाम हुआ इन सभी जयचंदों और मीरजाफर जैसे लोगों के द्वारा | तो उनके वंशजों की वृद्धि नहीं हुई यह कैसे सोचा जा सकता है ? इन्ही देशद्रोहियों के द्वारा ही यह देश गुलाम हुवा मुसलमानों का | और फिर उन्हीं जयचंदों द्वारा ईसाइयों का गुलाम हुवा इसे कोई कैसे मना कर सकता है ? आज तो उन जयचंदों की यह साजिश चल रही है की इस देश को फिरसे इस्लाम के हाथों दे दिया जाय | इसी में हिन्दू रूचि रखते हैं और यह जितना जो कुछ भी किया लिखा बोला बताया यह सबके सब हिन्दू ही है हिन्दू घर के हैं |
इन्ही हिन्दूओं को अथवा हिंदुत्व को बचाने के लिएइस देश में सबसे पहले देवल ऋषि ने काम जोड़ा जो लोग अपने धर्म या घर छोड़कर किसी दुसरे मत पंथ और सम्प्रोदाय में जा मिले, उन्हें पुनः अपने घर वापस लाना | उन्हें वैदिक परम्परा को बताकर फिरसे अपने साथ मिलाना | इसी काम को श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने किया | उनलोगों के किये कार्य को हिन्दू कहलाने वालों ने अपनाना तो दूर समझने का भी प्रयास नहीं किया | उन महा पुरुषों की इस दूरगामी बातों को समझने वालों में राजा राममोहन राय का अवदान है | इसी बात को आगे कोई समझा तो वह ऋषि दयानंद ने ही समझा था | फिर इसी राष्ट्र और राष्ट्रीयता के लिए वैदिक व ऋषि परंपरा का बोध इस राष्ट्र वासियों तक पहुँचाने के लिए उन्हों ने उन अग्रेजी काल को देखकर अंग्रेजों का साथ देने वाले राष्ट्र विरोधियों को ललकारा और 1875 में आर्य समाज नामी एक संस्था की स्थापना की | इस संस्था का मकसद और उद्देश्य यही था की राष्ट्र में जो कुछ भी हो रहा है यह अज्ञानता के कारण ही हो रहा है ऋषि परम्परा को छोड़ने के कारण ही हो रहा है | हमारे राष्ट्र में लोग अपने को ऋषि संतान कहला कर भी अपनी संस्कृति को नहीं समझ सके जिसका बोध ऋषि दयानंद जी ने राष्ट्र के लोगों में भरने का प्रयास किया |
अथवा इस आर्य राष्ट्र को बचाने के लिए भरसक प्रयास आदि गुरु शंकराचार्य जी का रहा जैसी सबसे पहला आदि गुरु शंकराचार्य को शिष्य बनने के बहाने जहर देकर मारा | इस के बाद इन्ही परम्परा को बचाने के लिए ऋषि दयानंद जी की आर्य समाज ने इस कार्य को आगे बढाया | सामाजिक तानाबान को ठीक करने के लिए आर्य समाज के माध्यमसे बहुआयामी कार्यक्रम चलाया | मानवता बोध कराते हुए धार्मिक सामाजिक और राजनितिक इन तीनों का यथार्थ मार्ग दर्शन किया | शारीरिक, आन्त्मिक, और सामाजिक उन्नति का उद्घोष उन्हों ने किया | और राष्ट्र वासियों को यह सन्देश दिया की अपनी ही उन्नति में संतुष्ट न रहकर सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझना चाहिए | धरती पर किसी भी देश या राष्ट्र में इन बातों का कहने वाला कोई नहीं मिला | जितने भी समाजवाद का प्रचारक राष्ट्रवाद का प्रचारक समता का प्रचारक क्यों न हो सबकी उन्नति को अपनी उन्नति कहने वाला ऋषि दयानन्द ही थे | इतना सब कुछ कहने और करने पर भी इसी राष्ट्र के लोगों ने जहर दे कर मारा उन्हें | यही हमारा इतिहास है की जो मनीषी इस राष्ट्र के लोगों को विधर्मियों के हाथों से बचाने को आयें उन्हें ही इस दुनिया से हटा दिया | बंधुओं जरुर याद रखना यह विष देने वाले कोई बाहर से नहीं आये थे इसी राष्ट्र या देश के लोगों ने उन महापुरुषों को जीने ही नहीं दिया | ऋषि दयानंद जी के बनाये गये स्वामी श्रद्धानन्द जी ने इन्ही राष्र्ं वासियों को विधर्मी बनजाने पर उन्हें वही पुराणी ऋषि सन्तान बनाने में जुटे, और उन्हीं विधर्मियों के हाथों शहीद होना पड़ा | जिन्हों ने अंग्रेज पलटनों के सामने सीना खोलकर कहा था चलाव तुम्हारी बन्दुक में कितनी गोलियाँ है ?
इसी प्रकार राष्ट्रवाद का प्रचार धर्म का प्रचार ऋषिदयानन्द जी कि संस्था आर्य समाज ने जो काम किया उनदिनों से लेकर आज तक यह हिन्दू कहलाने वालों ने समर्थन नहीं किया और न उनके दूरगामी सोच को हिन्दू जानपाए अगर उसी समय से उनके विचारधरा का समर्थन मिलता तो आज यह दुर्दिन देखना ही नहीं पड़ता जो यह हो रहा है | इन्हें कब कहाँ कोई मुस्लमान मारा गया वही याद है, और किन किन हिन्दूओं को मारा गया यह याद नहीं है इससे ज्यादा गद्दारी और क्या होना था ? दयानंद के विचारों को अगर यह हिन्दू कहलाने वाले अपने को आर्य हकते आर्य विचारों को अपना लेते, तो सेकेंन्दर बख्त के घर हिन्दू की लड़की नहीं जाती, और ना शिला दीक्षित की लड़की मुस्लिम घरमें जाती | हजारों नाम है किनका किनका नाम लिखूं उल्लेखणीय नाम बता दिया |
हमारे हिंदूवादी नेता ही सत्य को तिलांजली दिया है, और मिथ्या प्रचार करते हैं की गर्वसे कहो हम हिन्दू हैं | आज यही हिन्दू कहलाने वाले अपने लड़कियों को मुसलमानों के घर भेज रहे हैं जिन्हें अपनी लड़की संभालना नहीं आता ? परेशानी की जो बात है उसे समझने को भी तैयार नहीं ? क्या है परेशानी की उस लड़की से जितने संतानें जन्म लेगी वह सबके सब मात्र उस नाना नानी, मामा मामी के ही शत्रु नहीं होंगे अपितु इस राष्ट्र के ही शत्रु होंगे | सही पूछें तो इस राष्ट्र में राष्ट्र विरोधी विचारों का बढ़ावा देने वालों का ही नाम हिन्दू है | यह तो आप लोगों ने देखा और सुना भी रेल मंत्री का कलमा पढना | इन हिन्दुओं को अपना माँ पढना नहीं आया पर कलमा पढना आ गया |
यह हिन्दू कहलाने वाले अपने भारत माँ को पढ़ नहीं पाये और सब मिलकर कलमा पढने लगे | इन्ही बातों को ऋषिदयानन्द जी ने पहले ही कहा था, और मात्र कहा ही नहीं था अपितु इन्हें बचानेका भी भरसक प्रयास किया | पर यही लोग ना समझ है, अपनी समझदारी का परिचय देते हुए अगर इस राष्ट्र को ऋषियों का राष्ट्र फिरसे बनाना चाहते हैं तो आज ही प्रतिज्ञा करें = और राष्ट्र निर्माण पार्टी का सदस्य बने = अगर इस राष्ट्र को बचना चाहते हैं तो उन राष्ट्रद्रोहियों को पहचानें उन्हें इस राष्ट्र में रहने का कोई भी अधिकार नहीं है जो इस राष्ट्र में रहकर राष्ट्र के खिलाफ बोले या कोई राष्ट्र विरोधी कार्य करें |
घन्यवाद के साथ महेन्द्रपाल आर्य = 25 / 7 /19 =

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