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सृष्टि विषय, वेद से हटकर, मत पन्थ बने =भाग 10

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सृष्टि विषय, वेद से हटकर मंत पंथ बने = भाग 10
{5} ईसाई =जो व्यवहार अन्यों से तुम अपने लिए करना चाहते हो वैसा ही उनके साथ तुम भी करो |
{ लुका 6 -31 }
 
{6} बुद्ध = दूसरों का दोष सहज ही में दीख पड़ता है, परन्तु अपने दोष देखना कठिन है | आदमी अपने पड़ोसियों के अवगुणों भूसी की तरह छान फटक डालता है, परन्तु अपने दोषों को इस प्रकार छुपाता है जैसे ठग झूठे पासों को जुआरी से छिपाता है | { धम्मपद 2 }
 
{6} ईसाईं = अपने भाई के आँखों के तृण को तो देखता है, लेकिन स्वंम अपने नेत्रों की शहतीर की ओर क्यों विचार नहीं करता |
इस प्रकार हम देखते हैं कि आन्तरिक पवित्रता मृदुता क्षमाशीलता उपकार के बदले उपकार करना आदि बातें बौद्ध मत के ऐसे ही स्पष्ट चिन्ह हैं, जैसे कि ईसाई मत के |
 
नवींन धर्म पुस्तक { अर्थात इन्जील } की कथाएं भी बौद्ध मत की कथाओं से बहुत कुछ समता रखती है, और संभवत: उन्हीं से नकल की गई है | ईसाई मत रचना बौद्ध मत का प्रभाव स्वीकार करने का विरोधी है |
 
मैंने ऊपर लिखा है यह सभी बातें आदि सृष्टि से चलती चली आ रही है मानव धर्म अथवा सत्य सनातन वैदिक धर्म, उस काल में हमारे ऋषियों ने भी यही उपदेश मानव मात्र को दिया है |
 
वेद में इसे, आत्मवत सर्व भूतेषु: बताया, की समस्त आत्माओं को अपनी आत्मा के समान जानना या मानना चाहिए |
 
|| इसे महाभारत में कहा गया है ||
 
श्रूयता धर्मसर्वस्य श्रुत्वा चैवावधार्यताम | आत्मन; प्रतिकुलानी परेषा न समाचरेत ||
धर्म का सार श्रवण करो और सुनकर उसे धारण करो | जो बात तुम अपने लिए पसंद नहीं करते उसे दूसरों के लिए भी मत करो |
 
|| इसी प्रकार नीति कारों ने भी कहा है ||
 
खल:सर्षपमात्रानी पश्यति |आत्मनो बिल्वमत्रानी पश्यन्नपि न पश्यति|
दुष्ट आदमी दूसरों के सरसों भर दोष को भी देखता है परन्तु अपने बेल के बराबर दोषों को भी जान बुझ कर नहीं देखता |
 
|| इस्लाम कहते तो हैं भाई चारा, किन्तु कुरान में इसके विपरीत हैं ||
 
जैसा ऊपर देखा है वैदिक मान्यतानुसार अपने लिए जो सही ना लगे औरों के लिए वह विचार अपने मन में नहीं लाना है | अपने लिए जो सोचो वही सोच दूसरों के लिए भी रखो यह विचार वेद विचार है जिसे बौधिष्टों और ईसाई लोगों ने भी माना है | कुरान कहता है नहीं एक इसलाम ही धर्म है जो इसलाम को नहीं मानता वह काफ़िर है और काफ़िर वाजेबुल कत्ल है | देखें कुरान
مَن كَانَ عَدُوًّا لِّلَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَرُسُلِهِ وَجِبْرِيلَ وَمِيكَالَ فَإِنَّ اللَّهَ عَدُوٌّ لِّلْكَافِرِينَ [٢:٩٨]
जो शख्स ख़ुदा और उसके फरिश्तों और उसके रसूलों और (ख़ासकर) जिबराईल व मीकाइल का दुशमन हो तो बेशक खुदा भी (ऐसे) काफ़िरों का दुश्मन है | सूरा 2 बकर 98
إِنَّ الدِّينَ عِندَ اللَّهِ الْإِسْلَامُ ۗ وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِآيَاتِ اللَّهِ فَإِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ [٣:١٩]
और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से इख्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और असली (अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख्स ने ख़ुदा की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है| सूरा 3 इमरान 19
وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ [٣:٨٥]
और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आख़िरत में सख्त घाटे में रहेगा | सूरा 3 इमरान 85
وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُم مِّنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِندَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِن قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ [٢:١٩١]
और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो और फितना परदाज़ी (शिर्क) खूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग (कुफ्फ़ार) मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है | सूरा 2 बकर 191
وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ [٢:١٩٣]
और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फ़साद बाक़ी न रहे और सिर्फ ख़ुदा ही का दीन रह जाए फिर अगर वह लोग बाज़ रहे तो उन पर ज्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज्यादती (अच्छी) नहीं | सूरा 2 बकर 193
فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ عَسَى اللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ وَاللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنكِيلًا [٤:٨٤]
पस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जेहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब ख़ुदा काफ़िरों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख्त है | सूरा 4 निसा 84
فَإِذَا انسَلَخَ الْأَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُوا الْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَاحْصُرُوهُمْ وَاقْعُدُوا لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ ۚ فَإِن تَابُوا وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ فَخَلُّوا سَبِيلَهُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٩:٥]
फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आऎं और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे, तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है | सूरा 9 तौबा 5
قَاتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ اللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ [٩:١٤]
इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनको सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा | सूरा 9 तौबा 14
إِلَّا تَنفِرُوا يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَيَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّوهُ شَيْئًا ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [٩:٣٩]
अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाज़िल फरमाएगा और (ख़ुदा कुछ मजबुरी तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है | सूरा 9 तौबा 39
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۚ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ [٩:٧٣]
ऐ रसूल कुफ्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है | सूरा 9 तौबा 73
وَلَا تُصَلِّ عَلَىٰ أَحَدٍ مِّنْهُم مَّاتَ أَبَدًا وَلَا تَقُمْ عَلَىٰ قَبْرِهِ ۖ إِنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُوا وَهُمْ فَاسِقُونَ [٩:٨٤]
और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे ज़नाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे होना इन लोगों ने यक़ीनन ख़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए | सूरा 9 तौबा 84
وَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَالُهُمْ وَأَوْلَادُهُمْ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِي الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَافِرُونَ [٩:٨٥]
और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) में न डाले (क्योकि) ख़ुदा तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक्त भी ये काफ़िर (के काफ़िर ही) रहें | सूरा 9 तौबा 85
 
ऊपर दर्शाए गये भाई चारा की बातें जो, अपने लिए सोचो करो वही दूसरों के लिए भी | किन्तु कुरानी अल्लाह इस से सहमत नहीं और मुसलमानों से कहा की तुम इनके मारने पर भी इनके जनाजे में शामिल मत होना | कहीं ऐसा ना हो की इनके बच्चों के रोने पर तुम इनपर दया शील होजाव | यह है इस्लाम कुरान भरा पड़ा है ऐसे काफिरों से लड़ो उस वक्त तक जब तक यह नमाज न पढ़ें जकात न दें उस समय तक इन काफिरों से लड़ो | यह है अल्लाह और अल्लाह की कलाम कुरान, जिसे दुनिया के लोग ईश्वरीय वाणी बता रहे हैं |
 
अल्लाह के नजदीक एक ही धर्म है इसलाम इसके अतिरिक्त अल्लाह ने किसी और को धर्म नहीं माना, और ना मानने की अनुमति है इसलाम में, भले ही इसलाम का अर्थ लोग शांति कह रहे हैं बता भी रहे हैं, किन्तु इसलाम में कहीं भी शान्ति नहीं है सब जगह गैर मुस्लिमों को मारो उन्हें लुटने तक की अनुमति है कुरान में |
इस प्रकार बुद्ध मत और ईसाईमतों से इस्लाम की मान्यता अलग किया है इस्लाम ने हिंसा को अपनाया और बुद्ध व ईसाई मतों ने हिंसा को त्यागा | बुद्ध मतों के विद्यात्मक अंग को देखने से पता लगता है की इन्हों ने ज्यातर मानव धर्म अथवा वैदिक धर्म की बैटन पर ही अमल किया |
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के विधायक भाग से हमें पता चला की, उन्हों ने वैदिक धर्म विहित बातों का उपदेश किया है | जैसा आत्मसुधार, आत्मसंयम, मनुष्य जाति में और प्राणी मात्र में मैत्रीभाव प्राणी मात्र में करुना, हर शुभ कार्य और आन्तरिक पवित्रता का प्रचार किया | बुद्ध ने मुख्य रूप से जिन चार प्रधान बातों का उपदेश दिया वह इस प्रकार है |
आगे की बातें कल | महेन्द्र पाल आर्य =4 /5 /18

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