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सृष्टि विषय व धर्म का आदि स्रोत वेद से ही है | भाग 11

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सृष्टि विषय,व धर्म का आदि स्रोत वेद से है= भाग 11
1 = जीवन दुःखमय है, 2 =दुःख का कारण ईच्छा व तृष्णा है, 3 =तृष्णा के नाश से दुःख की निवृत्ति होती है | 4 = तृष्णा के नाश में आठ { 8 } प्रकार की बातों को ध्यान में रखना बताया |
 
{1} सत्य विश्वास { 2} सत्य कामना, {3} सत्य भाषण, {4} सत्याचरण, {5} सत्य जीविका साधन, {6} सदुउद्योग, {7} सत्य संकल्प, और {8} सत्य विचार | हमें यह कहने की जरुरत नहीं की यह सभी बातें सत्य सनातन वैदिक धर्म जो आदि कालसे या सृष्टि की आदि से चलती चली आरही है | बुद्ध ने उन वैदिक दर्शनशास्त्र सम्वन्धी ऋषि और मुनियों के उपदेश को नहीं त्यागा | जो हमारा न्याय दर्शन की यही मान्यता है देखें |
 
दुःख जन्म प्रवित्तिदोष मिथ्याज्ञाना नामुत्त रोत्तरापाये तदन्तरा पायादपवर्ग: | न्याय दर्शन =1 -1 -3 |
 
दुःख, जन्म, प्रवित्ति, दोष, और मिथ्या ज्ञान इनमें से एक के नाश से उससे पूर्व, पूर्व वर्णित नष्ट हो जाता है और दुःख का निवारण ही मुक्ति है |
इसका भावार्थ यह है कि मिथ्या ज्ञान से दोष वा बुरी इच्छाएँ होती है, उसमें जन्म प्रवित्ति होती है, और जन्म ग्रहण करना पड़ता है, यह जन्म ही दु:खों की जड़ है | इसी क्रम से एक की निवृत्ति होने से दूसरी निवृत्ति होती चली जाती है | अर्थात जन्म व जीवन के साथ दुःख का सम्वन्ध अवश्य है |
बुद्ध का प्रथम उपदेश” दुःख और जन्म का कारण जीवन की इच्छा या तृष्णा है | दूसरा उपदेश बुद्ध का यह था “ इच्छा और जन्म प्रवृत्ति नष्ट होने पर दुःख की निवृत्ति हो जाती है | तीसरा उपदेश में बुद्ध ने कहा ” इच्छा और जन्म प्रवृत्ति का नाश सत्य ज्ञान द्वारा होता है | आगे का उपदेश चौथा में बुद्ध ने कहा, निम्न लिखे पाँच आज्ञाओं का पालन करना समस्त बौद्धमतावलंबी के लिए अनिवार्य होगा, चाहे वह भिक्षु हो या गृहस्ती, सब को पालन करना अनिवार्य ही नहीं परम कर्तव्य है |
{1} किसी भी प्राणी की हिंसा न करें | {2} उस वस्तु को ग्रहण न करें, जो उसे नहीं दी गयी | {3} कभी भी मिथ्या भाषण न करें | {4} मादक द्रव्य का सेवन न करें | {5} परस्त्री गमन व व्यभिचार कभी न करें |
मैं पहले बता चूका हूँ की यह सभी उपदेश आदि काल से चलती चली आ रही है वैदिक धर्म की ऋषियों की बताई हुई मान्यता है जिसे बुद्ध ने अपनाया है |
उपर जो पाँच मन्तव्य बुद्ध के बताये गये है, नि:संदेह यह ऋषि पतंजलि रचित योग सूत्र के पाँच यमों से समझते हैं |
अहिंसा सत्यास्तेय ब्रह्मचर्या परिग्रहा यमा: =योग अ० 1 | पा० 2 | सु० 30 =
जीवों की हिंसा न करना, असत्य भाषण न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, विषय भोग अथवा इन्द्रिय लोलुपता में अधिक न फँसना यह पांच यम है |
बौद्ध मत में बुद्ध ने इसी को अपना प्रचार का माध्यम बनाया, सदाचार का प्रचार किया, या उपदेश दिया | बुद्ध को सदाचारी उपदेश का पता लगा वैदिक धर्म की पुस्तकों से, बुद्ध ने अपने पैत्रिक सम्पत्ति प्राचीन सत्य सनातन वैदिक धर्म से प्राप्त की, और अपने साहित्य में सुरक्षित कर लिया |
गौतम बुद्ध द्वारा निर्धारित धर्म में वह समस्त बातें पाई जाती है जो धर्म सूत्रों में सर्वोत्कृष्ट, और सर्वोत्तम सृष्टि के आदि से ऋषि मुनियों द्वारा स्थापित थी गौतम बुद्ध ने उसी पर ही वल दिया या फिर उसे प्रतिपादित करने के लिए अपना सारा उपदेश दिया | गौतम बुध के बहुत सारा उपदेश वास्तव में उपनिषदों से ही लिए गये थे |
 
बुध ने अहिंसा, सत्य पर ज्यादा वल दिया भले ही उन्हों ने, वैदिक मान्यता का प्रतिपादन किया हो फिरभी उससे हट कर ईश्वर सत्ता को मानने से इनकार किया | जिस सत्य पर वह वल दे रहे थे उसी सत्य से वह विमुख हो गये |
 
ईसाइयों ने बुद्ध की कुछ बातों को माना है,और कुछ को नहीं जैसा, अस्तेय, चोरी न करना, और ब्रह्मचर्य को स्थान दिया है | किन्तु सत्य को नहीं जान पाए, और अहिंसा को भी नहीं अपनाया, और न मांसाहार को निषेद माना, अर्थात बाइबिल में मांसाहार करने का आदेश है |
 
इस्लाम वालों ने भी अल्लाह का आदेश कुरान में बता दिया, और यहाँ तक की जिस पशु को काटा जाय वह कैसी हो वह भी बता दिया है निचे प्रस्तुत प्रमाण को देखें |
 
حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُوا بِالْأَزْلَامِ ۚ ذَٰلِكُمْ فِسْقٌ ۗ الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن دِينِكُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ ۚ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ ۙ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٥:٣]
(लोगों) मरा हुआ जानवर और ख़ून और सुअर का गोश्त और जिस (जानवर) पर (ज़िबाह) के वक्त ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ और चोट खाकर मरा हुआ और जो कुएं (वगैरह) में गिरकर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दे ने फाड़ खाया हो मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल ज़िबाह कर लो और (जो जानवर) बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पाँसे) के तीरों से बाहम हिस्सा बॉटो (ग़रज़ यह सब चीज़ें) तुम पर हराम की गयी हैं ये गुनाह की बात है (मुसलमानों) अब तो कुफ्फ़ार तुम्हारे दीन से (फिर जाने से) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुमपर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे (इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया पस जो शख्स भूख़ में मजबूर हो जाए और गुनाह की तरफ़ माएल भी न हो (और कोई चीज़ खा ले) तो ख़ुदा बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है | सूरा 5 मायदा =3
यहाँ अल्लाह को महरबान कहा गया, पर अल्लाह ने उस पशु पर महरवाणी नहीं की जिसके गले में छूरी चलाया गया या चलाया जा रहा है |
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ بِهِ لِغَيْرِ اللَّهِ ۖ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلَا عَادٍ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٢:١٧٣]
उसने तो तुम पर बस मुर्दा जानवर और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़बह के वक्त ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है पस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज्यादती करने वाला न हो (और उनमे से कोई चीज़ खा ले) तो उसपर गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है | सूरा 2 बकर -173
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ ۖ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلَا عَادٍ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [١٦:١١٥]
उसकी नेअमत का शुक्र अदा किया करो तुम पर उसने मुरदार और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर (ज़बाह के वक्त) ख़ुदा के सिवा (किसी) और का नाम लिया जाए हराम किया है फिर जो शख़्श (मारे भूक के) मजबूर हो ख़ुदा से सरतापी (नाफरमानी) करने वाला हो और न (हद ज़रुरत से) बढ़ने वाला हो और (हराम खाए) तो बेशक ख़ुदा बख्शने वाला मेहरबान है | सूरा 16 नहल -115
 
बलिदान की प्रथा जो यहूदियों में समान्यत: प्रचलित है, जरदुश्ती प्रथा का अनुकरण है, जो वैदिक यज्ञ अथवा अग्निहोत्र का रूपान्तर मात्र है| वैदिक कर्मकाण्ड में अग्निहोत्र का स्थान बहुत ऊँचा है, इसके साहित्य के बड़े भाग में इसका विशेष रूप में वर्णन है |
जिस प्रकार पारसियों ने अपने मत के अन्य कृत्य और सिद्धांत वैदिक आर्यों से सीखे थे उसी भाँती इस कृत्य की भी शिक्षा ग्रहण की थी, और वह उसी उतना ही अव्यशकीय समझते थे जितना की यहाँ के आर्य लोग समझते थे |इस कृत्य का उन्होंने ठीक ठीक अर्थ समझा हो इसमें कुछ संदेह नहीं है, और इस क्रिया का पारसियों से उसी प्रकार रूप बिगड़ गया, जिस प्रकार की हमारा देश में महात्मा बुद्ध के समय में उसका निरर्थक रूप हो गया था, परन्तु वे लोग दृढ़ता से उसमें रहे और नियमानुकूल उसका अनुष्ठान करते रहे | यही मुख्य कारण है कि वे अग्निपूजक कहे जाने लगे |
 
पारसियों ने यह यज्ञ क्रिया यहिदियों की सिखाई, जिनके हाथों में इसका रूप और भी अधिक दूषित हो गया | मांसभोजी होने के कारण यहिदियों ने मांस की आहुतियां दी, परन्तु बलिदान अग्नि में होता था | यह सब बात का पुष्टप्रमाण है की इस यज्ञ क्रिया को उन्हों ने जरदुश्तियों से ग्रहण किया था |
इस विषय पर बाइबिल में स्पस्ट प्रमाण है कि ईश्वर मूसा को कहता है – मेरे लिए तू मृतिका की वेदी बनेगा और उसपर जलती हुई शांति की आहुतियाँ देगा | अपनी भेड़ों और बैलों को चढ़ाएगा | सब स्थलों पर मैं अपना नाम लिखूं, तेरे पास आऊंगा और तुझे आशीर्वाद दूंगा | यात्रा की पुस्तक-15,22
फिर पैदाइश की किताब में लिखा, फिर नुह ने ईश्वर के लिए एक वेदी बनाई, और उसने प्रत्येक पवित्र पशु –पक्षी को लेकर प्रज्वलित अग्नि में वेदी पर आहुतियाँ दी | उत्पत्ति की पुस्तक -82
 
इसलाम के मानने वाले इस कृत्य को सीधा जरदुश्तियों से न लेकर यहूदियों से ग्रहण किया इसी कारण उन्हों ने अपने वलिदानों से अग्नि को हटा कर दूर कर दिया, और केवल पशु का वध को ही मान लिया | यह कैसा शोक जनक परिवर्तन है, कि पवित्र और लाभ दायक यज्ञ क्रिया के स्थान पर केवल पशुओं का ही बध होने लगा, और वह भी अल्लाह के नाम से |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =5 / 5 /18

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