Vaidik Gyan...
Total:$776.99
Checkout

स्वदेशे पूज्यते राजा। विद्वान सर्वत्रे पूज्यते।

Share post:

स्वदेशे पूज्यते राजा। विद्वान सर्वत्रे पूज्यते।
राजा अपने ही देश में पूजे जाते हैं, परन्तु विद्वान की पूजा हर जगह होती है। पर आप क्या जानोगे कि विद्वान कौनऔर कैसे होते हैं या विद्वान कहते किसे हैं? कारण आप तो अपना अधिनायक, रास्ता दिखानेवाला उन्हें मानते हैं जो लिखने पढ़ने से कोई सम्पर्कऔर सम्बन्ध या ताल्लुक नहीं रखते थे। कुरान में देखें –
هُوَ ٱلَّذِى بَعَثَ فِى ٱلْأُمِّيِّـۧنَ رَسُولًۭا مِّنْهُمْ يَتْلُوا۟ عَلَيْهِمْ ءَايَـٰتِهِۦ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَإِن كَانُوا۟ مِن قَبْلُ لَفِى ضَلَـٰلٍۢ مُّبِينٍۢ ٢
وہی تو ہے جس نے اٹھایا امیین میں ایک رسول ان ہی میں سے جو ان کو پڑھ کر سناتا ہے اس کی آیات اور ان کا تزکیہ کرتا ہے اور انہیں تعلیم دیتا ہے کتاب و حکمت کی۔ اور یقینا اس سے پہلے تو وہ کھلی گمراہی میں تھے۔
वही है, जिसने निरक्षरों में एक रसूल भेजा उन्हीं में से। जो पढ़कर सुनाते हैं उन्हें अल्लाह की आयतें और पवित्र करते हैं उन्हें तथा शिक्षा देते हैं उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा तत्वदर्शिता (सुन्नत)1 की। यद्यपि वे इससे पूर्व खुले कुपथ में थे । 62/2
वही तो जिसने जाहिलों में उन्हीं में का एक रसूल (मोहम्मद) भेजा जो उनके सामने उसकी आयतें पढ़ते और उनको पाक करते और उनको किताब और अक्ल की बातें सिखाते हैं अगरचे इसके पहले तो ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े हुए) थे” |
अगर लोकाचार को देखेंगे, तो हम अपने शरीर से इसको देख और समझ भी सकते हैं, पर समझदारी अपने पास होनी चाहिए ना। वह समझदारी कहीं खरीदी नहीं जाती, वह तो आती है इल्म से और लोग इल्म को सीखते हैं। अपनी इसी समझदारी को बढ़ाने केलिए कि हमें जाहिल न कहें, अनपढ़ न कहदें। यही सब कारण है विद्यालय तक जानेका, पर करें तो क्या! जो लोग यह समझते हैं कि भले ही विद्यालय में कुछ भी पढ़ें पर हम मानेंगे अपनी बात जो इस किताब में हम पढ़ते हैं, इसके बाहर हम नहीं जाते। अब वह किताब अकल पर भले ही ताला डालने की बात करे या कहे, हम मानेंगे उसी को ही। इसमें फिर पढ़ाने वाले की क्या गलती है। वह यही कहेंगे कि मूर्ख! कितनी बार समझाता हूँ, कि यह बात दिमाग से कुबूल करने की नहीं है। किसलिए तू पड़ा है इसके पीछे? निरुत्तर होकर भी अकल में ताला डालकर उसी बात को मानने लगजाता है जो ज्ञान विरुद्ध, विज्ञान विरुद्ध, सृष्टि नियम विरुद्ध, यहाँ तक के मानवता विरुद्ध बात को अपने जीवन में उतारता है। वह किस प्रकार तो फिर देखें-
وَإِذْ فَرَقْنَا بِكُمُ ٱلْبَحْرَ فَأَنجَيْنَـٰكُمْ وَأَغْرَقْنَآ ءَالَ فِرْعَوْنَ وَأَنتُمْ تَنظُرُونَ ٥٠
اور جب ہم نے تمہارے لیے دریا کو پھاڑ دیا تم کو نجات دی اور فرعون کی قوم کو غرق کر دیا اور تم دیکھ ہی تو رہے تھے
तथा (याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए सागर को फाड़ दिया, फिर तुम्हें बचा लिया और तुम्हारे देखते-देखते फ़िरऔनियों को डुबो दिया। 2/50
अब ध्यान से देखें अल्लाहने क्या कहा, “और वह भी याद करो कि जब हमने फाड़ा समुन्दर को तुम्हारे लिए रास्ता बनाने को और फिर उसी में, गर्क कर दिया हमने फिराऊँन को जबकि तुम लोग खुद अपनी आँखों से यह सब कुछ देख रहे थे” |
अब देखें समुन्दर को अल्लाह ने फाड़ा, किसी के लिए रास्ता बनाया, समुन्दर को बाँध कर रास्ता तो बनाते सुना और देखा भी, होलैंड में यह अपनी आँखों से देखकर आया, पर यह कुरान का कौन सा विज्ञान है कि समुन्दर को फाड़ा गया?और वह भी किसलिए? फिराऊँनीयों को हलाक के लिए, डुबोने के लिए। विचार करें कि यह काम अगर अल्लाह का है तो डाकू, दस्यु, कातिल, हत्यारा दुनिया किसको कहेगी भला? यह किस दिमाग से इसे तस्लीम किया जाये?
۞ وَإِذِ ٱسْتَسْقَىٰ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِۦ فَقُلْنَا ٱضْرِب بِّعَصَاكَ ٱلْحَجَرَ ۖ فَٱنفَجَرَتْ مِنْهُ ٱثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًۭا ۖ قَدْ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٍۢ مَّشْرَبَهُمْ ۖ كُلُوا۟ وَٱشْرَبُوا۟ مِن رِّزْقِ ٱللَّهِ وَلَا تَعْثَوْا۟ فِى ٱلْأَرْضِ مُفْسِدِينَ ٦٠
اور جب پانی مانگا موسیٰ نے اپنی قوم کے لیے تو ہم نے کہا ضرب لگاؤ اپنے عصا سے چٹان پر تو اس سے بارہ چشمے پھوٹ بہے ہر قبیلے نے اپنا گھاٹ جان لیا (اور معینّ کرلیا) (گویا ان سے یہ کہہ دیا گیا کہ) کھاؤ اور پیو اللہ کے رزق میں سے اور زمین میں فساد مچاتے نہ پھرو۔
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति के लिए जल की प्रार्थना की, तो हमने कहाः अपनी लाठी पत्थर पर मारो। तो उससे बारह[ सोते फूट पड़े और प्रत्येक परिवार ने अपने पीने के स्थान को पहचान लिया। अल्लाह का दिया खाओ और पिओ और धरती में उपद्रव करते न फिरो। 2/60
और (वह वक़्त भी याद करो) जब मूसा ने अपनी कौम के लिए पानी माँगा तो हमने कहा (ऐ मूसा) अपनी लाठी पत्थर पर मारो (लाठी मारते ही) उसमें से बारह {12}चश्में फूट निकले और सब लोगों ने अपना-अपना घाट बखूबी जान लियाऔर हमने आम इजाज़त दे दी कि खुदा की दी हुई रोज़ी से खाओ पियो और मुल्क में फसाद न करते फिरो।
अब पढ़े लिखे लोग ही बताएं! कि पत्थर से चश्मा (फव्वारा) फूट पड़ना या पानी निकलना इसमें कौन से विज्ञान की बात है और पढ़े लिखे लोग इसको किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं? किन्तु मजहब में इन्ही सब बातों का मानना ही है, यही तो अंतर है मजहब में और धर्म में। तथा वर्तमान समय की भोगवादी (मादा परस्ती) की लहर से बनी हुई लोगों की समझ है।
इसके अतिरिक्त मजहब अथवा मत-मतान्तर, धर्म से भिन्न होने के कारण मानव आपस में रक्तपात करने कराने में न देर लगाते और न ही संकोच करते हैं। भारत में राजनैतिक से जुड़े लोग अनुचित हस्ताक्षेप कर धर्म के नाम पर अधर्म करने वाले, मत-मतान्तरों के अविद्याजनक आचार व्यवहार तथा साम्प्रदायिक बैर विरोध और आपस के झगड़े हैं और यह राष्ट्रीय एकता में बाधक है। यह एक अकाट्य सत्य है कि जिससे मत-मतान्तरों के अनुयायी भी इसे इन्कार नहीं कर सकते, अथवा अपने माथे से इस कलंक को नहीं मिटा सकते। यह रही मजहब एवं मत-मतान्तरों की बातें, अब धर्म पर विचार करते हैं। महेन्द्र पाल आर्य 10/8/22

Top