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हठ और दुराग्रह का नाम ही इस्लाम |

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|| हठ और दूराग्रह का नाम ही इस्लाम है ||

आप लोगोंने इसलाम के मानने वालों को देखा होगा यह कहते की हमारा शांति का धर्म है, अर्थात इसलाम का अर्थ ही है शांति | जो लोग यह कहते हैं या मानते हैं मेरे विचार से वह लोग इस्लाम को नहीं जानते | इस्लाम का अर्थ है समर्पण, किसमें समर्पण, कहाँ समर्पण इसे भली प्रकार से जानना और समझना होगा |

इसलाम की बुनियाद भींत या पिलर क्या है उसे जान कर उसे अपनी जुबान से इकरार करना स्वीकारना और ह्रदय से उसे मान लेना ही है – मन और वचन जिसे हम कह सकते हैं  इसे ईमान कहा जाता है, आप लोगों ने सुना भी होगा की एक व्यक्ति ईमान लाया | पर सवाल तो यह है की ईमान गया कहाँ था जो लाया ?

जो ईमान नहीं लाया उसे ही इस्लाम ने बेईमान वाला बताया –जबकि बेईमान शब्द गाली है |   इस्लाम में यही कट्टर वादिता और दुराग्रह है जो अपने को छोड़ किसी और को ना जानना है और ना सुनना है और ना समझना है | अल्लाह ने कुरान में जो कहदिया उसे पत्थर की लकीर मान कर उसी के लिए मरने और मिटने को तैयार हो जाना इसी का नाम इस्लामह|

जहाँ सोचने और समझने की जरूरत ना हो मानवता तो यही है की सोच विचार रखने वाले का नाम मानव है | किन्तु इस्लाम इससे सहमत नहीं इस्लाम इसी लिए कुबूल करवाई जाती है | अब मन और वचन से जब किसी ने स्वीकार कर लिया तो उसे कर्म में परिवर्तित करना या आचरण में लानेवाले का ही नाम मुस्लमान कहा गया |

इस्लाम मानवता या मानव के सोच को बदल देती है उसके सामने सिर्फ अल्लाह कुरान और अल्लाह के रसूल और अल्लाह के भेजे गये पैगम्बर –अल्लाह के बनाये गये फ़रिश्ते अल्लाह की भेजी गई किताब, और आखिरत के दिन –जन्नत –और जहन्नुम – अच्छे और बुरे का किस्मत अल्लाहने बनाया, जन्नत और दोजख में जाना इन सभी बातों को विश्वास करने वाले को ईमान लाया कहा है इस्लाम ने | इसको छोड़ कुछ भी नहीं और इससे बाहर किसी और कुछ भी सोच और विचार न करने का नाम इस्लाम है |

अब सवाल उठता है की, यह जो विचार बताये गये इसपर किसी भी प्रकार सन्देह ना करना ही इस्लाम है | अगर कोई यह जानना चाहे की फ़रिश्ता क्या है कौन है, इसका जवाब बताया की अल्लाह की फौज का नाम फ़रिश्ता है | क्या अल्लाह सर्वशक्तिमान नहीं है, जिसे फौज की जरूरत होगी तो अल्लाह को फौज के अधीन होना पड़ेगा | उस फौज को अल्लाह ने बनाया किस चीज से ? ज़वाब आग से बनाया अल्लाह अपनी मर्जी से बनाया अपने काम लेने के लिए बनाया | यहाँ अगर कोई सवाल खड़ा करे की आग से चलने फिरने का काम करने वाले को आग से बनायाजाना कैसा सम्भव होगा ? आग से धुंवा, राख, कोयला आदि बनना तो सम्भव है पर आग से चलने फिरने का काम करने वाले कैसे बनें ?

इसी का जवाब होगा की अल्लाह ने बता दिया उसपर सवाल उठाते हो तुम बेईमान हो ? बस इसी का ही नाम कट्टर वादिता है दुराग्रह है अंधविश्वास है आदि आदि |

इसी दुराग्रह को दर्शाता है यह बाबरी मस्जिद वाली घटना, अकबरुद्दीन ओवैसी कहता है मजदिद जहाँ थी वहीँ रहना चाहिए | पुनर याचिका करता इस्लामिक संगठन वालों का कहना है की मस्जिद किसी मन्दिर को तोड़ कर नहीं बनाई गई | पर सवाल यह है की मस्जिद अगर बनाई गई तो वह जमींन किसकी थी वह जमींन इसलाम वालों की बाप दादाकी थी क्या ? अगर मस्जिद बनाई गई तो क्या वह जगह खरीदकर मस्जिद बनी थी ?

अगर खरीदी गई तो उस जमीन का कागज पत्र क्यों नहीं दिखाया गया ? सुप्रीम कोर्ट का तो कहना था की मुस्लिम पक्ष कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया | इसके बाद भी बाबरी मस्जिद का मांग करने का ही नाम कट्टरवादिता ही है | रही बात की मस्जिद उस जगह को छोड़ कहीं और ना बनने की | इसका प्रमाण तो अरब देशों से देखा जा सकता है ना मालूम अरब को विकसित करने के लिए कितनी मस्जिदें हटाई गई और तोड़ी भी गई – इसे देखकर स्वीकार ना करना या नहीं मानने का ही नाम, हठ और दुराग्रह ही तो है |

महेन्द्रपाल आर्य – 4 /12/19 =

 

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