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हमारे देश के नेता देश प्रेमी हैं या काला धन प्रेमी ?

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अपने ही देश में काला धन इतने मिलते जा रहे हैं जो, मात्र नोट बदलाव का नतीजा है। यह देशहित का काम हुवा है, इसका विरोध करनेवाले नेता देशप्रेमी हैं या काला धनप्रेमी?
 
यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जायगा, की 1947 के बाद भारत देश को एक ऐसा प्रधान मन्त्री मिला है, जिनको अगर चिंता है तो मात्र अपने देश की चांटा है | देशहित की चिंता है, देश का भला कैसा हो उसकी चिंता है |
 
आज भारत वर्ष के जितने राजनीति पार्टी हैं उनके जो मुखिया और उस पार्टी के जितने नेतागण हैं वह लोग कितना देशप्रेमी हैं, यही देश वासियों को देखना और समझना है | उसके अनुसार अब हमारे देश वासियों को भी अपना देश पहले है अथवा यह नेता, या फिर कोई राजनीतिक दल ? इस पर विचार और अपना परिचय देना होगा |
 
अभी आने वाला चुनाव में यह बात बिलकुल सामने आना ही चाहिए | उ० प्र० वालों की भी पहचान, इन्ही बातों से होगी, की वह देश को प्रधानता देते हैं अथवा,राष्ट्र प्रेम देश हित ना चाहने वाली पार्टी और उनके नेता को |
 
आज हर भारत वासियों को यह पता चलचूका है की यह नोट बदलाव भारत को कितने भ्रष्टाचार,दुराचार,और कालाधन से ले कर केन्सर जैसे आतंकवाद वाली रोगों से लेकर नक्शालवाद वाला रोगीं का भी चिकित्सा करने में सफलता हासिल की है | यही हमारे देश के प्रधान मन्त्री जी की सफलता है जो देश वासियों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए |
 
साथ ही हमारे देश वासियों को देश के विभिन्न राजनेता और राजनीतिक दल या पार्टी को भी समझना चाहिए की कौनसा राजनीतिक दल और उनके नेता हैं जो सिर्फ देश हित के लिये राजनीति करते हैं ?
अब तक तो यही देखने को मिला है,की हमारे देश भारत में जितने भी राजनीतिक दल है वह देश के लिये कम, अपने परिवार के लिये या अपने लिये ज्यादा राजनीती करते हैं | कहीं कहीं राजनीती में परिवारवाद ही हावी है,और कहीं अपना स्वार्थ ही हावी है, वरना नोट बदलाव को लेकर आन्दोलन, भारत बन्द, और धरना देना रैली निकालने का क्या काम था ?
 
इसपर भी देख रहे हैं दुनिया वाले, की किसी की फ्लाईट लेट हो तो प्रधानमन्त्री दोषी, और सेना अपना काम करे तो प्रधानमन्त्री दोषी | उनकी बेचैनी में भी प्रधान मन्त्री दोषी उनको नीन्द ना आने पर भी प्रधान मन्त्री दोषी | जब की यह साधारण सी बात है की बेचैनी, अस्थिरता, नीन्द ना आना भय, लज्जा, शंका, यह सभी गलत कार्य करने का ही कारण है |
 
यही तो हमारा शास्त्रीय मान्यता है, धार्मिक, बातें और लक्षण है हमारे ऋषिमुनियों ने हमें यही उपदेश दिया है | जिस काम के करने से भय +लज्जा +शंका = हो तो यह जानना चाहिए की यह काम ही अधर्म का है, उसे नही करना चाहिए |
 
आज हमारे नेता देश हित में काम करने का प्रतिज्ञा ले कर भी देश विरोधी काम करने में संकोच भी नही कर रहे हैं | इसके लिये दोषी वह नेता नही हैं हम भारत के जनता ही हैं हमने उनको यही देश विरोधी काम करने के लिये वोट दे कर उन्हें जीत दिला कर ही लोक सभा और विधानसभा भेजे हैं |
 
हम देश वासियों को ही इसपर विचार करना होगा, की हमें किसको चुनना है देश हित में कार्य करने वालों को अथवा देश का हित ना चाहने वालों को ?
 
कहीं कहीं तो हमारे नेता हिन्दुओं से वोट बटोर कर जीतने के बाद, अपना वेशभूषा भी बदल देते हैं, कहीं कोई इस्लामी टोपी पहनकर फिरते नज़र आते हैं, उस समय उनको पह्चानना भी भारी पड़ता है | की क्या यह वही हमारे नेता हैं भारत का रहने वाला, या फिर अरब देश का कोई महमान ?
 
मात्र इतना ही नही कई बार तो यह भी देखने को मिलता है, की हमारे भारत के नेता जो भारतीय राष्ट्र भाषा हिंदी है, उसे जानते ही नही है, और अरब देश का भाषा अरबी में इंशाअल्लाह, कहते रहते हैं | और कोई भी काम जुम्मा { शुक्रुबार}को करने की घोषणा करते हैं |
 
जब की हम भारत वासियों का कोई भी दिन अशुभ नही है,दिन परमात्मा के बनाये हुये हैं सब दिन समान है | शुक्र बार को शुभ माना जाता है इस्लाम में, इस शुक्रबार को इस्लाम वाले ही एक विशेष नमाज़ पढ़ते हैं | हमारे हिन्दू नामधारी नेताओं से इस शुक्रबार का क्या सम्पर्क है ? इसे देश वासियों को ढूंडना पड़ेगा की आखिर हमलोगों ने किनको वोट देकर जिताया है कहीं यह छल तो नही कर रहे हम लोगों के साथ ?
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता =दिल्ली =2/12/16=

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