Your cart
Smart Watch Series 5
Running Sneakers, Collection
Wireless Bluetooth Headset
हम तलाक प्रकरण व औरतों को कुरान में देखें
Mahender Pal Arya
हम तलाक प्रकरण व औरतों को कुरान में देखें |
وَلَا تَنكِحُوا الْمُشْرِكَاتِ حَتَّىٰ يُؤْمِنَّ ۚ وَلَأَمَةٌ مُّؤْمِنَةٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكَةٍ وَلَوْ
أَعْجَبَتْكُمْ ۗ وَلَا تُنكِحُوا الْمُشْرِكِينَ حَتَّىٰ يُؤْمِنُوا ۚ وَلَعَبْدٌ مُّؤْمِنٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكٍ وَلَوْ أَعْجَبَكُمْ ۗ أُولَٰئِكَ يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ ۖ وَاللَّهُ يَدْعُو إِلَى الْجَنَّةِ وَالْمَغْفِرَةِ بِإِذْنِهِ ۖ وَيُبَيِّنُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ [٢:٢٢١]
और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते
यह आयात है सूरा बकर =जो सूरा न० 2 =आयत =221 है | इस आयात में अल्लाह ने साफ किया है मुसलमानों को | शिर्क {अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराने वाला } जिसे मुशरिक कहा है इस्लाम ने की ऐसे मुशरिक लडकियों से तुम जब तक शादी न करना जब तक वह इस्लाम स्वीकार न करले | कारण मुशरिक औरत तुम्हें अपने खूबसूरती में भले ही अच्छी लगती हो, पर ईमानदार औरत उससे अच्छी है |
और अपनी औरतों को भी मुशरिकों में नही देना है, जब तक वह ईमान न लायें अपनी औरत उनके निकाह में नही देना |
दुनिया वालों मानव समाज में यह भेदभाव किसने पैदा किया ? अल्लाह ने गैर मुस्लिम औरत हो या मर्द पढ़ा लिखा हो नौकरी पेशे वाले हों अच्छे खान दान के हो अच्छे परिवार वाले हों | किसी भी बड़े ओहदे के हो जिंतना भी अमीर हो शोहरत वाले हों कैसा भी कुछ भी हो वह अल्लाह को पसंद नही है | अल्लाह को पसंद अनपढ़ हो गरीब हो समाज में उसे कोई नही जानता हो | पर उसे ईमान वाला यानि सिर्फ मुस्लमान ही होना चाहिए उससे अलग औरत हो या मर्द अल्लाह को पसंद नही | यह है धर्म पुस्तक जिसे लोग खुदाई कलाम बता ते हैं | मानव समाज में किस प्रकार भेद भाव पैदा किया है जरा दिमाग से सोचें मानव कहलाने वालों |
وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْمَحِيضِ ۖ قُلْ هُوَ أَذًى فَاعْتَزِلُوا النِّسَاءَ فِي الْمَحِيضِ ۖ وَلَا تَقْرَبُوهُنَّ حَتَّىٰ يَطْهُرْنَ ۖ فَإِذَا تَطَهَّرْنَ فَأْتُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ أَمَرَكُمُ اللَّهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ [٢:٢٢٢]
(ऐ रसूल) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं तुम उनसे कह दो कि ये गन्दगी और घिन की बीमारी है तो (अय्यामे हैज़) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाएँ उनके पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाएँ तो जिधर से तुम्हें ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ बेशक ख़ुदा तौबा करने वालो और सुथरे लोगों को पसन्द करता है तुम्हारी बीवियाँ (गोया) तुम्हारी खेती हैं
यह आयत है अगला 222 = {ऐ रसूल} तुमसे लोग हैज { महिला की रजस्वला }के बारे में पूछते है तुम उनसे कहदो की यह गंदगी और घिन की बीमारी है {हैज} इस हैज में तुम औरतों से अलग रहो | और जब तक वह पाक न हो { यानि उससे ठीक { न हो जाएँ उनके पास न जाओ | पस जब वह पाक हो जाएँ तोजिधरसेचाहो तुम्हें खुदा ने हुक्म दिया है उनके पास जाव |
दुनिया के पढ़े लिखे लोग अल्लाह के इन फरमानों पर जरा गौर करें, अल्लाह अपने रसूल को क्या सिखा रहे हैं ? ऐसा भी कोई इन्सान होगा की महिलाओं की रजस्वला {हैज } क्या है इस की शिक्षा भी अल्लाह को अपनी किताब में रसूल को देना पड़े ? दुनिया में ऐसा कौनसा मानव होगा ज्ञानवाण जो यही नही जानते होंगे की महिला हर मानिने में एक बार रजस्वला होती है | यही ज्ञान अगर कुरान में अल्लाह को देना पड़े फिर हमारे कोकशास्त्र के विद्वानों से किस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करेंगे ? यह है कलामुल्लाह |
نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَّكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّىٰ شِئْتُمْ ۖ وَقَدِّمُوا لِأَنفُسِكُمْ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُم مُّلَاقُوهُ ۗ وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ [٢:٢٢٣]
तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ और अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल साके) पेशगी भेजो और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है और ऐ रसूल ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो |
अगला आयात 223 = को देखें =यहाँ बताया गया औरत यानि पत्नियां तुम्हारी खेती है तो तुम अपने खेत में जिस तरह चाहो जाओं | यानि इस्लाम में औरतों को मात्र भोग्या वस्तु बताया गया है सिर्फ अल्लाह से डरो बस जो कुछ करना हो करो | पत्नी के पास जैसा मर्जी जाओ वह तो खेत है जैसा चाहो फसल बो दो |
जो लोग शाने नुज़ूल चिल्लाते हैं की किस बिना पर यह आयात उतारी गई जिसका जवाब मैं डॉ० असलम कासमी को अपनी पुस्तक में जवाब में दिया हूँ | इसका शाने नुजूल लिखने में मैं असर्थ हूँ यहाँ जब कोई डिबेट में आयेंगे उस वक्त मैं बताऊंगा इसका शाने नुजूल क्या है ? कुल मिला कर यहं महिलाओं को भोग्या वस्तु ही माना गया है |
﴿٢٢٣﴾ |
وَلَا تَجْعَلُوا اللَّهَ عُرْضَةً لِّأَيْمَانِكُمْ أَن تَبَرُّوا وَتَتَّقُوا وَتُصْلِحُوا بَيْنَ النَّاسِ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ [٢:٢٢٤]
और (मुसलमानों) तुम अपनी क़समों (के हीले) से ख़ुदा (के नाम) को लोगों के साथ सुलूक करने और ख़ुदा से डरने और लोगों के दरमियान सुलह करवा देने का मानेअ न ठहराव और ख़ुदा सबकी सुनता और सब को जानता है
अगला आयत =224 =में बताया जब तुम अपने कसमों के बहाने को लोगों के साथ सुलूक करने और खुदा से डरने और लोगों के दरम्यान सुलूक करवा देने का मानो और खुदा सब की सुनता है और सब को जानताहै|
لَّا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا كَسَبَتْ قُلُوبُكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ [٢:٢٢٥]
तुम्हारी लग़ो (बेकार) क़समों पर जो बेइख्तेयार ज़बान से निकल जाए ख़ुदा तुम से गिरफ्तार नहीं करने का मगर उन कसमों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ्त करेगा जो तुमने क़सदन (जान कर) दिल से खायीं हो और ख़ुदा बख्शने वाला बुर्दबार है |
यह आयत है =225 = तुम्हारी बेकार कसमों पर जो बे इख्तेयार जुबान से निकल गई उसमें अल्लाह तुम्हें गिरिफ्त नही करेंगे | पर तुमने जो जान बुझ कर कसमें खाई है उस में तुम्हारी गिरिफ्तरी होगी | खुदा बख्शने वाला है | अब यहाँ खुदा सर्वज्ञ नही है लगता कारण इन्सान कौन दिलसे कसम खा रहा है और कौन दिखावा जुबानी कसमें खा रहे हैं यह जानकारी अल्लाह को नही है |
لِّلَّذِينَ يُؤْلُونَ مِن نِّسَائِهِمْ تَرَبُّصُ أَرْبَعَةِ أَشْهُرٍ ۖ فَإِن فَاءُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٢:٢٢٦]
जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खायें उन के लिए चार महीने की मोहलत है पस अगर (वह अपनी क़सम से उस मुद्दत में बाज़ आए) और उनकी तरफ तवज्जो करें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
यह आयात है =226 = यहाँ अल्लाह ने क्या कहा जो लोग अपने बीबी के पास जाने से कसम खाए उनके लिये चार {4} महीने की मोहल्लत है पस अगर वह अपनी कसम से उस मुद्दत में बाज आए और उनकी तरफ तवज्जु करे तो बेशक खुदा बख्शने वाला महरबान है |
وَإِنْ عَزَمُوا الطَّلَاقَ فَإِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ [٢:٢٢٧]
और अगर तलाक़ ही की ठान ले तो (भी) बेशक ख़ुदा सबकी सुनता और सब कुछ जानता है |
यह आयात है =227 = और अगर तलाक ही ठान ले तो भी खुदा सबकी सुनता है और सब की जानता है |
कुछ इस्लाम के मानने वाली महिलाओं को मैं देखा tv में बोलते | वह कहती हैं की तलाक कुरान में नही है जो सरासर गलत है वह लोग कुरान को जानते ही नही है | यहाँ अल्लाह ने साफ कहा जो तलाक देने का ठान ले अगर तलाक की विधि नही है तो तलाक देने को ठान ले का क्या मतलब ? आगे देखें >
وَالْمُطَلَّقَاتُ يَتَرَبَّصْنَ بِأَنفُسِهِنَّ ثَلَاثَةَ قُرُوءٍ ۚ وَلَا يَحِلُّ لَهُنَّ أَن يَكْتُمْنَ مَا خَلَقَ اللَّهُ فِي أَرْحَامِهِنَّ إِن كُنَّ يُؤْمِنَّ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۚ وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِي ذَٰلِكَ إِنْ أَرَادُوا إِصْلَاحًا ۚ وَلَهُنَّ مِثْلُ الَّذِي عَلَيْهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ وَلِلرِّجَالِ عَلَيْهِنَّ دَرَجَةٌ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ [٢:٢٢٨]
और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके और अगर वह औरतें ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लायीं हैं तो उनके लिए जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी ख़ुदा ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएँ और अगर उन के शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उन के वापस बुला लेने के ज्यादा हक़दार हैं और शरीयत मुवाफिक़ औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है हाँ अलबत्ता मर्दों को (फ़जीलत में) औरतों पर फौक़ियत ज़रुर है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है |
यह आयात है =228 =यहाँ अल्लाह ने साफ कहा जिन ओरतों को तलाक दी गई है वह अपने आप को तलाक के बाद तीन हैज {तीन बार के रजस्वला } के ख़त्म हो जाने तक निकाह दूसरी ना करे, रोके रखें |वह औरतें जो खुदा और रोजे आखिरत पर ईमान लाई हैं तो उनके लिये जायज नही है कि जो कुछ भी खुदा ने उनके रहम {पेट} में पैदा किया है उसको छिपाएं | अगर उनके शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह –जो समय तीन महीने का था उसमें उनके पास बुला लेने का ज्यादा हक़दार हैं | और शरीयत मुवाफिक औरतों का मर्दों पर वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है , हाँ अलबत्ता मर्दों को औरतों पर फौकियत{जवाबदेही} जरुर है खुदा जबर दस्त हिकमत वाला है |
الطَّلَاقُ مَرَّتَانِ ۖ فَإِمْسَاكٌ بِمَعْرُوفٍ أَوْ تَسْرِيحٌ بِإِحْسَانٍ ۗ وَلَا يَحِلُّ لَكُمْ أَن تَأْخُذُوا مِمَّا آتَيْتُمُوهُنَّ شَيْئًا إِلَّا أَن يَخَافَا أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۖ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا فِيمَا افْتَدَتْ بِهِ ۗ تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَعْتَدُوهَا ۚ وَمَن يَتَعَدَّ حُدُودَ اللَّهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ [٢:٢٢٩]
तलाक़ रजअई जिसके बाद रुजू हो सकती है दो ही मरतबा है उसके बाद या तो शरीयत के मवाफिक़ रोक ही लेना चाहिए या हुस्न सुलूक से (तीसरी दफ़ा) बिल्कुल रूख़सत और तुम को ये जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उस में से फिर कुछ वापस लो मगर जब दोनों को इसका ख़ौफ़ हो कि ख़ुदा ने जो हदें मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनो मिया बीवी क़ायम न रख सकेंगे फिर अगर तुम्हे (ऐ मुसलमानो) ये ख़ौफ़ हो कि यह दोनो ख़ुदा की मुकर्रर की हुई हदो पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देकर अपना पीछा छुड़ाए (खुला कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है ये ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं बस उन से आगे न बढ़ो और जो ख़ुदा की मुक़र्रर की हुईहदों से आगे बढ़ते हैं वह ही लोग तो ज़ालिम हैं |
यह आयात 229 =है =यहाँ साफ फ़रमाया अल्लाह ने यहाँ दो बार तलाक की बात है, एक साथ तीन तलाक नही है दोबार तलाक देने के बाद और शरियत के मुताबिक रोक ही लेना चाहिये | अथवा अच्छे व्यबहार से तीसरी दफा बिल कुल रुखसत कर देना चाहिए और तुम को यह जायज नही की जो तुम उन्हें दे चुके हो उसमें से कुछ वापस ले लो | मगर जब दोनों मियां बीबी में यह खौफ हो की अल्लाह ने जो हदें मुक़र्रर की है उन हदों पर हम कायम नही रह सकेंगे, तो उस वक्त औरत मर्द को कुछ दे कर पिचा चुदाए {इसे खुला} कहा जाता है करलें तो उन में दोनों पर कुछ गुनाह नही है | यह खुदा की मुक़र्रर की हुई हदें है जो खुदा की मुक़र्रर की हुई हदों को पार कर जाते हैं वही लोग जालिम हैं | यह दो तलाक की बातें हुई आगे देखें तीन तलाक को |
فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُ مِن بَعْدُ حَتَّىٰ تَنكِحَ زَوْجًا غَيْرَهُ ۗ فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَن يَتَرَاجَعَا إِن ظَنَّا أَن يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۗ وَتِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ يُبَيِّنُهَا لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ [٢:٢٣٠]
फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि ख़ुदा हदों को क़ायम रख सकेंगें और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है |
देखें यह आयत है 230 =जब कोई मुस्लमान पति दे दे अपने पत्नी को तीन तलाक, उसके बाद जब तक दुसरे मर्द से निकाह न करले, तो वह पहले पति के पास नही आ सकती | और अगर दूसरा पति भी उसे तलक दे तब वह पहले पति के पास आ सकती है | इस में कोई गुनाह नही है इसे हलाला कहा गया है | इस को अच्छी तरह समझ लें किसी पति ने अपने पत्नी को तीन तलाक ही दे दिया और दोनों ने माना की गलती हो गई हमें साथ ही रहना है | तो अल्लाह की रजामंदी इस में नही किसी दुसरे मर्द से उस औरत की शादी करा दी जाये और दूसरा पति उसे पत्नी बना कर बिस्तर साथी बनाएं उसके साथ संभोग करे फिर वह तलाक दे तो वह औरत अपने पहले वाली पति से फिर निकाह कर सकती है | यह है हलाला उस महिला की क्या गलती थी की किसी दुसरे पुरुष के बिस्तर साथी बनना इसमें किसीकी बेइज्जती है यह नही ? और इस में अल्लाह का क्या स्वार्थ है जो उस महिला पर हो रहा है, हुवा है होगा आदि आदि यह कौनसी मानवता की बात है और उस माहिला की गलती क्या है जो इतनी बड़ी सजा उनको दी जा रही है ?
وَإِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمْسِكُوهُنَّ بِمَعْرُوفٍ أَوْ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعْرُوفٍ ۚ وَلَا تُمْسِكُوهُنَّ ضِرَارًا لِّتَعْتَدُوا ۚ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ فَقَدْ ظَلَمَ نَفْسَهُ ۚ وَلَا تَتَّخِذُوا آيَاتِ اللَّهِ هُزُوًا ۚ وَاذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمَا أَنزَلَ عَلَيْكُم مِّنَ الْكِتَابِ وَالْحِكْمَةِ يَعِظُكُم بِهِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ [٢:٢٣١]
और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और ख़ुदा के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो और ख़ुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है |
यह है आयत =231 = यहाँ अल्लाह ने बताया की जब तुम अपने पत्नियों को तलाक दो उनकी मुद्दत पूरी होने के बाद उनको अच्छे ढंग से रुखसती दो, और अगर उन्हें अपने पास रखते हो तो उन्हें तकलीफ देने के लिये न रखो ताकि तुम फिर ज्यादती करने लगो | और अगर ऐसा करोगे तो यक़ीनन अपने ही पर ज़ुल्म करोगे | और खुदा के अहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो | और खुदा ने जो तुम्हें दी है उसे याद करो, उसने अक्ल की बातें दी तुम पर नाजिल की उसने तुम्हारी नसीहत और खुदा से डरते रहो खुदा हर चीज को जरुर जनता है | यह है तलाक कुरान और अल्लाह का –एक और है देखें
وَإِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعْضُلُوهُنَّ أَن يَنكِحْنَ أَزْوَاجَهُنَّ إِذَا تَرَاضَوْا بَيْنَهُم بِالْمَعْرُوفِ ۗ ذَٰلِكَ يُوعَظُ بِهِ مَن كَانَ مِنكُمْ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۗ ذَٰلِكُمْ أَزْكَىٰ لَكُمْ وَأَطْهَرُ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ [٢:٢٣٢]
और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह अपनी मुद्दत (इद्दत) पूरी कर लें तो उन्हें अपने शौहरों के साथ निकाह करने से न रोकों जब आपस में दोनों मिया बीवी शरीयत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएँ ये उसी शख्स को नसीहत की जाती है जो तुम में से ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान ला चुका हो यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात है और उसकी ख़ूबी ख़ुदा खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो |
यह है =आयत 232 =और जब तुम औरतों को तलाक दो और वह अपनी इद्दत पूरी कर लें तो उन्हें अपनी शौहर के साथ निकाह करने से न रोको | यहाँ अपनी शौहर से निकाह करने से ना रोको ? यह कब जब वह औरत किसी और के पत्नी बन कर उसने तलाक दी हो तभी तो वह अपनी शौहर से निकाह करेगी ? दुसरे जो शादी हुई वह भी तो शौहर ही था | यहाँ है अल्लाह का दिया कानून जो मुसलमानों को अमल पर लाना है |
अब सवाल पैदा होता है की यह कुरान कहाँ के लिये और किनके लिये है ?तो इसका जवाब कुरान से ही आप लोग ले सकते हैं | कुरान मुसलमानों का है कुरान अरब वालों के लिये अरबी जुबान में ही है ताकि अरब वाले उसे समझ सकें | प्रश्न है जब कुरान ही अरब वालों के लिये है तो भारत वाले उन कुरानी व्यवस्था को भारत में किस लिये लागु करना चाहते हैं ? यह भारत वासियों के साथ न्याय नही है आप रहें भारत में और कानून मानें आप अरब की यह कैसी व्यवस्था है और हो भी किस लिये ?
रही बात मुस्लमान अपने चचेरी बहन ममेरी बहन, मौसेरी बहन, फुफेरी बहन से शादी करते हैं उस वक्त तो कौर्ट ने नही रोका ? किसी हिन्दू ने भी यह नही पुछा की अपने बहन से शादी किस लिये करते हो ?
तो यह लोग तलाक प्रकरण को ले कर अदालत में किस लिये पहुंचते हैं ? जिस को जो मानना है मानें अपना मैंने आज कई दिन पहले लिखा था की अगर शरीयती कानून ही मानना है तो तूम्हारे लिये अलग से अदालत भी बनाने पड़ेंगे भारत सरकार को | कारण भारतीय अदालत में तो भारतीय संम्विधान ही सर्वोपरी है वहां शरीयती कानून को लगाया जाना संभव ही नही | दूसरी बात यह भी है की शरीयती कानून के मुताबिक चोर को सजा हाथ काटने का कौन सुनाएगा ? हमारे कौर्ट सुनाने लगे तो उल्टा जज पर ही लोग मुकदमा डाल देंगे | यह किस लिये और कैसा संभव होगा भला ? सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और भारत में रहने वाले कोई भी हो वह भारतीय ही होने हेतु सभी भारत वासियों का कानून एक ही होना चाहिए सब को न्याय मिलना चाहिये | न किसी के लिये 370 हो और न किसी के लिये 371 सबका साथ सबका विकास तभी संभव होगा | धन्यवाद के साथ =महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता =दिल्ली =10/11/16 =