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मानव पढता लिखता है बुद्धि के विकास के लिए ||

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मानव पढता लिखता है बुद्धि के विकास के लिए ||
जो लोकाचार कि बात है वह यह है कि हम इंसान कहलाने के हकदार कैसे बने? मात्र बुद्धिमान होने के बल पर। यह तो जानवरों में भी है, किन्तु मानव उसको अपने वश में करने हेतु उससे ज्यादा, और उत्कृष्ट प्राणी माना और कहा जाता है मानव को। फिर सुनें, मानव बुद्धिमान अर्थात् अकलमन्द कहलाता है। जानवर नहीं कहला सकता अपने को बुद्धिमान। चाहे कितना ही ट्रेनिंग उसे दिया अथवा दिलाया जाये, वह जानवर का जानवर ही रहेगा ।
इस मानव को सिखाया जाये, पढ़ाया जाये, यह दिन बदिन उन्नति करता ही चला जायेगा। यहाँ तक कि यह मानव देवता बनजाता है। जब मानव अकल के बल पर अपना-पराया, सही और गलत, उन्नति तथा अवनती, स्वस्थ-अस्वस्थ सब जानता है। जानवरों को यह ज्ञान नहीं, वह इसके नजदीक भी नहीं आ सकते, सोच ही नहीं सकते।
तो उन जानवरों में भी बुद्धि न रखने में उपमा दी जाती है गधे की। कई बार हम लोग भी बोल देते हैं किसी को भी, जो अकल से काम न लें तो उनके लिए गधे की उपमा दी जाती है, कि तू गधा है यानि वह बुद्धिमान नहीं। अब देखें आप मछली को किसी बर्तन में काटकर धोएं, और उसी बर्तन को साफ कर पानी भर कर उस गधे को पीने को दें। वह उसमें मुंह नहीं लगाएगा, तो किसके पास अकल नहीं ? और यह इन्सान अकलमन्द होकर भी नहीं जान पाया कि हमारी खुराक क्या है क्या नहीं? जो कि गधा जान गया कि जिस बर्तन में तुझे पानी दिया गया वह मेरा खुराक नहीं, और यह इन्सान होकर भी नहीं जान पाया कि तेरा खुराक क्या है क्या नहीं? हाय रे! इन्सान कहलाने वाले तू अपने बुद्धिमान होने का परिचय कब तक दे सकेगा?
मेरे पास खाड़ी देश कतर के दोहा से फोन पर सवाल आया प्रश्न है कि आप लोग जो शाक सब्जी खाते हैं उसमें जीव है तो क्या यह जीव हत्या नहीं? जबकि यह सवाल भारत में मेरे पास अनेकों के आये, जैसा तारीक मुर्तजाने भी यही सवाल उठाया था शास्त्रार्थ में। डॉ० जाकिर नाईक ने भी लिखा कि हम गाय का मांस इसलिए खाते कि गाय शान्तिप्रिय पशु है, उसका मांस खाकर हम भी शान्तिप्रिय बनना चाहते हैं।
जवाब मैं पहले दे चुका हूँ, फिरभी लिखना जरूरी हो गया वरना यह कतर वाले कहेंगे इनके पास जवाब नहीं है। पहली बात है कि मांस मानव का स्वभाविक भोजन नहीं है, जो ‘स्वाभाविक नहीं’ का मतलब जबरदस्ती लेना, डालना, खाना, दाखिल करना अदि। इसमें भी भेद कैसा है देखें, यह स्वाभाविक किसलिए नहीं इस से भी पता लगेगा। जैसा मुस्लमान कहेगा हम गाय का मांस खायेंगे और उसे काटने का तरीका भी अलग होगा। अब ईसाई कहेगा हम गाय तो खायेंगे, पर सुअर भी खायेंगे। रही बात काटने वाली, तो जैसा चाहो वैसा काटो, यानि गले से काटो गर्दनसे काटो छुरी आहिस्ता चलाकर काटो, अथवा एकबार में ही काटो, हमें खाने में कोई आपत्ति नहीं। हिन्दू कहेगा नहीं भाई तुम कुछ भी कहो हम गाय का मांस नहीं खा सकते हमारे यहाँ मना है, हम सुअर तो खा सकते हैं किन्तु गाय नहीं खा सकते।
अब फिर विचार करें कि यही मानव तीनों, यानि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और सिख भी शामिल हैं मांसाहारी यह सब हैं, पर खाने में मतभेद काटने में मतभेद, और स्वाभाविक उसी को कहते हैं जिसमें किसीका किसी भी प्रकार कोई भी मतभेद न हो। अब यह सिद्ध होगया कि मांस मानव का स्वाभाविक भोजन है ही नहीं। अब देखें सब्जी खाने में किसी का विरोध कोई नहीं कर सकता और न करता है। यह भी नहीं कहता कि इस सब्जी को इस प्रकार काटो, इस में भी विरोध नहीं है चाहे कोई हो। यानि हिन्दू हो, मुस्लिम हो, ईसाई और सिख हो किसी का कोई विरोध नहीं पर वहां मांस खाने में विरोध, काटने में भी विरोध है, और विरोध ही अस्वाभाविक प्रक्रिया कहलाती है|
अब जो उसको खा रहे वह सिर्फ अपनी जुबान को स्वाद पहूँचाने हेतु खा रहे हैं जिसका नाम जबरदस्ती है, अस्वाभाविक होगया। अब देखेंगे कि उन पशु के मांस खाने में विरोध कोई गाय, कोई सुवर, कोई बकरी, कोई ऊंट तक का मांस खाते हैं अदि | पर इन सबसे पूछे कि भाई शेर का मांस, हाथी और गधे का मांस खाते हो क्या?
तो जो घोड़े का मांस खाता है वह भी मना करेगा, किसलिए कि वह भी जानता है यह स्वाभाविक भोजन में नहीं आता। और यहाँ तक कि जो चीन वाले, सांप, बिच्छु, काक्रोच तक खाते हैं। अन्य उसका भी विरोध करते है यानि नहीं खाते । इन बातों से भी प्रमाण मिला कि यह सब मानव का साधारण और स्वाभाविक भोजन नहीं है, कारण कोई तो खा रहा है,और कोई इसका विरोध कर रहा है|
अब प्रकृति नियमानुसार देखें कि मांसाहारी और शाकाहारी के बनावट में भी परमात्मा ने दर्शा दिया, और मनुष्य मात्र को उपदेश दिया कि आप सभी मेरे संतान हो (भले ही मुस्लमान उसे पिता न माने) उसको कुछ भी अंतर नहीं पड़ता | कारण वह धरती का सृजन करता है। उसे कोई माने इसको लेकर उसने धरती नहीं बनाया, कि कोई मान रहा है या नहीं। देखें जो उसको मान रहा है उसको जितना मिल रहा है धरती से,जो उसे नहीं मानता उसको भी उतना ही दे रहा है।
 
कारण सबको देना भी परमात्मा का स्वभाविक गुण है बराबर वह सबको दे रहा है। आजतक मुसलमानों से नहीं कहा कि तुम हमें पिता नहीं मानते मैं तुम लोगों को नहीं देता। अगर यही विचार परमात्मा का हो जैसा कुरान का, कि मैंने तुम्हें दीन इस्लाम दिया। यह परमात्मा का नहीं हो सकता कारण उसपर दोष लगेगा। तो परमात्मा का उपदेश है कि संतान मेरे हो,और मैं दयालु हूँ, यही गुण आप लोगों में भी होनी चाहिए। कोई कहे अल्लाह भी दयालु है, यह गलत किस प्रकार है मैं निरंतर अपने लेखों में कुरान का प्रमाण दिया हूँ। कि अल्लाह में दयालुता का गुण नहीं है, वरना जानवरों के गलेमें छुरी चलाना संभव नहीं होता ।
बे लिखा पढ़ा आदमी को लोग जाहिल अपढ़ कहते हैं, अर्थात पढना लिखा होता है दिमागी विकास के लिए | जो कभी पढ़ा ही नहीं अगर वह दुनिया वालों को पढ़ाने लगे तो क्या यह संभव है ?
भले ही आप के पास सम्भव न हो पर औरों के पास चलता है अपढ़ लोग ही समाज का दिशा निर्देश करते हैं || महेंद्र पाल आर्य =25/8 /22

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