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ईदुजजोहा अन्धविश्वास को बढ़ावा देना है |

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|| ईदुजजोहा,अन्ध विश्वास को बढ़ावा ||
परमात्मा की रचना में सबसे बड़ी और सबसे उतकृष्ट तथा अनोखी रचना, में मानव ही सबसे बड़ा व सबसे आगे है, इसका मूल कारण है बुद्धि, दिमागी विकास, अक्लमंदी | अर्थात मानव सब से उत्कृष्ट इस लिए है की परमात्मा की सृष्टि रचना में एक मानव को ही उत्कृष्ट प्राणी बताया है | इस सृष्टि में जितने भी प्राणी है उसमें सबसे पहला न० ही है मानव का | यही कारण है मानव को अफ्ज़लुल मख्लुकात, या उत्कृष्ट प्राणी बताया गया |
अब सवाल पैदा होता है की मानव अगर उत्कृष्ट प्राणी है, तो उसका काम भी उत्कृष्ट होना चाहिए | उत्कृष्ट तो मानव तब है की जब अपने आचरण से कृया कलापों से अपना परिचय दे तभी वह उतकृष्ट कहलायेगा या कहला सकता है | उतकृष्ट प्राणी कहला कर अगर काम निकृष्टता वाला करे, तो यह दोष तो सृष्टि के रचयिता परमात्मा पर ही लगेगा ?
इसका जवाब यह है की परमात्मा ने उपदेश दिया है, की ऐ मानव मेरी रचना में तुम मानव कहलाने वाले को जो अक्ल मिला है, वह अन्य प्राणियों को नहीं मिला | तुम्हें मैंने अक्ल दिया है और तुम्हें तुम्हारे कार्य में मैंने स्वतन्त्र किया है तुम अपने इच्छा के अनुसार काम कर सकते हो | पर याद रखना उस किये कर्मों का फल देना मेरा काम है तुम अपने आप अपने किये कर्मों का फल नहीं ले सकते फल मैं ही दूंगा | तुम्हारा नाम उत्कृष्ट है तो काम भी तुम्हारा उत्कृष्ट ही होना चाहिए, अगर तुमने उत्कृष्टता को प्राप्त कर, काम निकृष्टता का किया तो याद रखना उसका फल तुम्हें ही भोगना पड़ेगा |
अब उत्कृष्ट कार्य को देखें, किसी को प्राणदान देना उत्कृष्ट है, अथवा किसीका प्राण लेना ? प्यासे को पानी पिलाना उत्कृष्ट कार्य है, भूखे को भोजन देना उत्कृष्ट है, नंगे को वस्त्र देना उत्कृष्ट है, बे सहारे को सहारा देना उत्कृष्ट है, बेघरों का घर बसाना उत्कृष्ट कार्य है |
इस प्रकार जितने भी कार्य हैं वह सारा काम एक मात्र मानव ही कर सकता है, अन्य किसी भी प्राणियों को यह सौ भाग्य प्राप्त ही नहीं हुवा | मानव का उत्कृष्ट बनने बनाने का कराण भी यही है, पता लगा की किसी को प्राणदान देना ही अगर उत्कृष्ट है | फिर यह कुर्बानी दे कर किसी जानवर का प्राण लेना यह उत्कृष्ट क्यों और कैसे हो सकता है ?
इसे कहते हैं मानवता की हत्या, मानवता की पराकाष्ठा, अन्धविश्वास, अन्धपरम्परा, अन्धा नुकरण ही है, और मानवता पर कुठाराघात, निकृष्टता पूर्ण कार्य ही है,इसे कोई मानवकहलाने वाला अस्वीकार कर सकता है ? क़ुरबानी देना ईदुजजोहा का मानना मनाना भी ठीक यही अन्ध परम्परा ही है, किसी के याद में इसे किया जाना, यही तो अन्ध विश्वास है |
यह कार्य आज़ का नहीं है यह हजरत इब्राहीम के जमाने का है, घटना है अल्लाह ने अपने पैगम्बर इब्राहीम खालिलुल्लाह { इब्राहीम अल्लाह का दोस्त } अल्लाह ने इन्हें खवाब दिखाया तुम्हारा सबसे प्यारी चीज को मेरे रस्ते में क़ुरबानी करो | बारी बारी से तीन दिन 100 सौ ऊँटों को काटा इब्राहीम ने | फिर ख्वाब देखा, अब जिस बेटे को उसके माँ के साथ पहाड़ों में छोड़ आये थे, खाना नहीं पानी नहीं, उसकी क़ुरबानी अल्लाह का हुक्म था |
जब इन्राहीम उसी लड़के को कुर्बानी देने गये, यह महज अल्लाह अपने दोस्त इब्राहीम का इम्तेहान लेना चाहते थे,की इस काम को इब्राहीम कर सकते हैं अथवा नहीं ?
जब इब्राहीम अपने बेटे इस्माइल को काटने लगे नहीं कटा, बेटेने सलाह दिया आँख में कपडा बांधलें, तो कपडा बाँध कर बाप बेटे को काटने लगे, तो अल्लाह ने बेटे को हटवा कर एक दुन्बा को कटवा दिया | मात्र घटना यही है, इसी का अनुकरण ही ईदुजजोजा है जिसे इस्लाम के मानने वाले कुर्बानी देते हैं, इसका पालन करते हैं, इसे इस्लामी बुनियाद का एक हिस्सा माना गया है | यह कितना बड़ा अन्ध विश्वास है कुरीति है मानवता की हत्या है इसे ध्यान से देखें |
यहाँ अल्लाह का कुरान, और इस्लाम सवालों के घेरे में है, कैसे एक एक कर देखें, अल्लाह ज्ञानी नहीं ? ज्ञानी को इम्तेहान की जरूरत नहीं होती ? उस बेटे से अल्लाह की क्या दुश्मनी थी जिसे कुर्बानी के लिए अल्लाह ने इब्राहीम को ख्वाब दिखाया ? इस्लाम अज्ञान के घेरे में है, ख्वाब दिखाने का काम अल्लाह का हो सकता है परमात्मा का नहीं |
कारण ख्वाब देखता है मानव, जब वह अर्धनिद्रा में होते हैं तो कोई ख्वाब देखता है यह काम अल्लाह का मानना इस्लाम का बड़ा ही अंध विश्वास है ? अब इस्माईल को हटा कर वहां दुम्बा आया काहाँ से, लाया कौन, दुंबा खरीद कर आया, चोरी से लाई गई, उस दुन्बे के कुर्बानी से अल्लाह को क्या लाभ मिला ? जब किसी का प्राण देने पूण्य हैं, तो दुन्बे का प्राण ले कर यह पाप किसने किया, और किसके हुक्म से हुवा ? इन सभी सवालों का जवाब इस्लाम के मानने वालों के पास नहीं है, और ना अल्लाह के पास है, मेरी खुली चुनौती है इस्लाम जगत के आलिमों से, आ जाये डिबेट के लिए |
अब सवाल है जब किसी का प्राणदान पुन्य है, तो प्राण दुन्बा का लेकर अगर हजरत इब्राहीम ने गलती की, उसी गलती को हम करें तो फिर हमारा दिमागी विकास का क्या हुवा ? जिस कारण हम मानव बने, मानव कहलाये आदि | इससे बड़ा पाप भी दुनिया में और क्या है और यह हुक्मे खुदा है | इसी अन्ध विश्वास का नाम ही ईदुज्जोहा है,जिसे इसलाम के मानने वाले धर्म समझते हैं, मेरा सवाल है की यही अगर धर्म है तो अधर्म किसे कहेंगे ?
जब की कुरान में परस्पर विरोधी बातें हैं, एक तरफ तो कुरबानी का हुक्म दिया, फिर दूसरी तरफ अल्लाह ने क्या कहा कुरान से ही देखें, यहाँ साफ लिखा है इस कुर्बानी के गोशत से कोई वास्ता अल्लाह का नहीं है | अल्लाह सिर्फ मन्शा{उद्देश्य } को देखते हैं |

لَن يَنَالَ اللَّهَ لُحُومُهَا وَلَا دِمَاؤُهَا وَلَٰكِن يَنَالُهُ التَّقْوَىٰ مِنكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ سَخَّرَهَا لَكُمْ لِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ ۗ وَبَشِّرِ الْمُحْسِنِينَ [٢٢:٣٧]
खुदा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खून मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खुदा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो | सूरा 22 अलहज =आयत =37

قُلْ إِن تُخْفُوا مَا فِي صُدُورِكُمْ أَوْ تُبْدُوهُ يَعْلَمْهُ اللَّهُ ۗ وَيَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [٣:٢٩]
ऐ रसूल तुम उन (लोगों से) कह दो किजो कुछ तुम्हारे दिलों में है तो ख्वाह उसे छिपाओ या ज़ाहिर करो (बहरहाल) ख़ुदा तो उसे जानता है और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में वह (सब कुछ) जानता है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है |सूरा 3 अलइमरान =आयत =29

इस लेख को ध्यान से पढ़ें इस में उठाये गयें सवालों का कोई जवाब है इस्लाम के मानने वालों के पास जो उसकी भी प्रतीक्षा रहे गी |
महेन्द्रपाल आर्य =2 /9 /17 =

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