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मानव एक ही जाती के होते हैं, वर्ण है चार {४}

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ब्राहमण्स्य मुखम् आसीत
बाहुः राजन्य कृतः
उरू तदस्य यद् वैश्यः
पदभ्याम् शूद्रो अजायतः।
 
देखें यहाँ शब्द है ब्राह्मण मुख है समाज का | क्षत्रीय वाहू है समाज का | पेट वैश्य है समाज का | पैर शुद्र है समाज का |
 
ब्राह्मण वह है जो वेद पढ़े, पढ़ाये, यज्ञ करे कराये, दान दे और दान ले | यह छ: गुण वाले को ब्राह्मण कहा जाता है |
 
ब्राह्मण त्यागी और त्पस्यी को कहा जाता है | रक्षा करने वाले को क्षत्रीय कहा जाता है |
 
जो व्यापर कर समाज की व्यवस्था को चलाते हैं उसे वैश्य कहा गया | और जो समाज की सेवा करे उन्हें शूद्र कहा जाता है |
 
अब यह कोई जन्मसे नहीं कर्मसे बनते हैं, अब इन चारों में जो जिसको अपना लेता है उसे उसी वर्ण में माना जाता, व जाना जाता है |
याद रहे अगर यह जन्म से हो तो परमात्मा पर दोष लगेगा | जो सम्भव नहीं कारन परमात्मा पर दोष लगे तो वह परमात्मा नहीं हो सकते भली प्रकार से यह जान लेना चाहिए |
 
हम समाज में भी इसे देख सकते हैं समझने का प्रयास कर सकते हैं | जो शारीर का भी चार भाग है | सर ब्राह्मण है पांचों ज्ञान इन्द्रिय इनके पास है सब अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं |
जिसमें, आँख, कान, नाक, जीभ, और त्वचा | यह ब्राह्मण के पास है, यह सबको चलती है आदेश देती है दिशा निर्देश करते हैं आदि |
 
बाजु क्षत्रीय है पर ब्राह्मण का निर्णय नहीं हो तो वह हाथ को नहीं चला सकते |
 
पेट वैश्य है अगर ब्राह्मण मना करे की यह तुम्हारे पेट में हज़म होने वाला नहीं है, इसे मत खाना | पेट छोड़ देता है उस कहने को |
 
पैर शुद्र है जब तक ब्राह्मण का आदेश नहीं होता पैर भी नहीं उठता यह है सत्यता | पर आज के मानव समाज में गलत पथ पढ़ने पढ़ाने के कारन ही मानव समाज को दूषित किया जा रहा है | एक दुसरे से नफरत सिखया जा रहा है | जो मानवता विरोधी है, समाज विरोधी है | यह मानव समाज को दूषित करने में लगे हैं, और यही राजनेता उसे हवा दे रहा हैं | जो गलत काम हो रहा है मानव समाज में, इसे दूर करना पड़ेगा फिर शांति का आना, या शनि प् पाना सम्भव होगा |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =30 /3 /18

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