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सत्यार्थ प्रकाश का जवाब इस्लाम के आलिमों से न मिलने पर आर्य समाज में आया |

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https://youtu.be/UeT7PmuIYYM
 
जब ऋषि दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश में कुरान का बिसमिल्लाह वाक्य को ईश्वरीय नहीं है लिखा | तो अपने को आर्य समाजी बताकर उसी बिस्मिल्लाह और अल्लाहुअकबर, लाईलाहा इल्लाल्लाह कहते नहीं लजाते ?
 
वह भी एक आर्य सन्यासी बताकर, झूठी वाह वाही लुटने के लिए, जर्रा जर्रा रसूल अल्लाह कहकर = रसूल को सर्वव्यापक बनादेना क्या यह वैदिक मान्यता है ?
 
आर्य समाजी कहलाने वाले इन्हें किसलिए अपनी संस्थामें इनके समर्थकों को बिठा रखा है ? क्या यही मान्यता है दयानन्द की – क्या ऋषि ने विष इसी लिए खाए थे ? क्या जवाब देंगे दुनिया के लोगों को यह आर्यसमाजी हैं ? दुनिया जानना चाहती है आज |

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