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यह विचार 16 /11 /2014 को बहादुर गढ़ हरियाणा के DAV स्कुल में दिया था |

Mahender Pal Arya
16 Nov 22
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यह विचार आज 16 =11 =14 को मैने DAV – स्कुल -बहादुर गढ़ में दिया | आज धर्मात्मा पर, दुरात्मा के हावी का दोषी कौन ?
जब से सृष्टि बनी सृजन कर्ताने सभी प्राणियों में मानव को सबसे उतकृष्ट प्राणी कहा,कारण अन्य प्राणियों को इतना ज्ञान नही जितना मानव कहलाने वालों को है | यह मत समझना की यह सृष्टि पहली बार की है, इस से पहले भी थी, अब है प्रलय के बाद भी रहेगी | सृष्टि रचाने वाले का काम ही यही है, रचनाकरना,उसेस्थिती में लाना, प्रलय कर देना मानव मात्र का किये कर्मों का फल देना | उसके बाहर सृष्टि रचने वाले के पास और कोई काम ही नही है | कर्मों का फल मानव का ही होता है पशु पक्षियों का नही, कारण कर्म करने की शक्ति सिर्फ मानवों को है अन्य पशु पक्षियों को नही, कारण मानव से अलग जितने भी हैं वह सब भोग योनी में है | कर्म सिर्फ मानव ही कर सकता है अन्य जीव जन्तु नही, मानव ही कर्म करता है और भोगता भी मानव ही है | फलदाता वही सृष्टि रचाने वाला ही देता है यह मानव कर्म करने में स्वतन्त्र, और फल भोगने में प्रतंत्र है, यानि मानव अपने इच्छा से फल प्राप्त नही कर सकता |
यही मानव अपने कर्मानुसार देवता बनता है. और राक्षस भी यही मानव ही बंनता है आकाश से न कोई देवता टपकता हैं, और नहीं कोई राक्षस | किसी ने खूब कहा, अमल से जिन्दगी बनती है यह जन्नत भी और जहन्नुम भी | यह खाकी अपनी फितरत में न नूरी है न नारी है |
इस से पता चला की मानव अगर चाहे तो देवता बन सकता है, और न चाहे तो राक्षस तो बन ही जाता है,यह है मानव का कर्म |-आदि सृष्टि से पक्ष दो {2} है और अन्त तक रहना है, सही, और गलत, प्रकाश, और अंधकार | चोर और, साधू, अमीर और गरीब, अच्छा और, बुरा, धर्म, और अधर्म | धर्म पर आचरण करने वाला धर्मात्मा, और धर्म को आचरण में न लाने वाला दुरात्मा | यह आदि से है और अन्त तक रहेगा, इस में परिवर्तन हो सकता है कैसा, वह ध्यान देने योग्य है |
धर्मात्मा का काम है, मानव मात्र को अधर्म से बचाना, सभी प्रकार के बुराईयों से बचने का उपदेश देना | गलत रास्ते से हटा कर सही और सच्चे रास्ते पर चलने का उपदेश देना, सभी मनुष्यों को धर्मिक बनने का उपदेश देना,आदि यह सब काम धर्मात्मा का है |
ठीक इसका उल्टा काम दुरात्मा का है, अर्थात धर्म से हटाना, गलत रास्ते पे लिए चलना, अथवा गलत रास्ते पर चलने का उपदेश देना आदि जितना भी हो सके असत्य के साथ मानवोंकोजोड़ना यह सभी काम दुरात्मा का ही है |
पर ध्यान रहे कि यह धर्मात्मा, अपने कर्मों से ही बनते हैं, यह धर्मात्मावाला कर्म न करें तो धर्मात्मा बन जाना संभव नही | ठीक इसी प्रकार दुरात्मा भी कर्मों के आधार पर बने हैं | जिसे कुरान और बाईबिल वालों की मान्यता है की दुरात्मा को –गॉड =या अल्लाह ने बनाया =यह मान्यता वैदिक नही | कारण दुरात्मा का काम ही जब गलत रास्ते पर चलाना ही है मानवों को तो यह परमात्मा पर दोष लगेगा, इस बात को कुरान और बाईबिल वाले नही मानते हैं |
अब देखें कि धर्मात्माका जो काम है धर्मोपदेश देना, मानव समाज को दुरात्माके चंगुल से छुटकारा दिलाना आदि | तो धर्मात्मा अगर अपने प्रचार निरन्तर करते रहे, और प्रचार में गति लावे,तो स्वाभाविक है की दुरात्मा के प्रचार में कमी आना उचित होगा |
और अगर धर्मात्मा अपने प्रचार में कमी करे, तो ज़रूरी है कि दुरात्मा अपने कार्य में सफलता प्राप्त करते चले जायेंगा | यह अकाट्य सत्य है जिसे अस्वीकार करना संभव ही नही, यह कार्य निरन्तर सृष्टि के आदि से चलती आ रही है, और यह प्रलय तक चलता ही रहना है |
इसको मै इन तथाकथित आर्य समाजियों से पूछता हूँ कि, जब आर्य का अर्थ श्रेष्ठ है, आर्य नाम ईश्वर पुत्र का है, तो आज अनार्यों का वर्चस्य किस लिए आर्यों पर हावी हो गया ? जवाब बहुत सीधा और सरल ही है, कि यही आर्य {श्रेष्ठ} कहलाने वालों ने मात्र अपने गले में तगमा लगाकर दुनिया वालों को दिखाया | अपनी दायित्व का निर्वाहन नही किया, अगर यह धर्मात्मा है,औरधर्म का प्रचार सही ढंग से किया, फिर आज अनार्यों का या फिर दुरात्मा इन धर्मात्मा पर हावी कैसे होजाते ? बिलकुल स्पष्ठ बात है कि यह श्रेष्ठ कहलाने वालों ने मात्र, अपनी उल्लू सीधा करने पर आमादा है | आर्यों के संस्थामें कब्ज़ा करना ही जिन लोगों का मकसद है, दलगत राजनीति ही इन लोगों का लक्ष्य है आर्यों के नाम से व्यपार करना ही जिन लोगों का उद्देश्य है | वरना आज आर्य समाज में भागवत कथा किस लिए होती भला ? यह तथाकथित धर्मात्मा कहलाने वालों ने ही अपने किये कर्मों से ही दुरात्मा को अपने ऊपर शासन करने का अबसर तैयार किया है | धर्मात्मा कहलाने वालों इस लेख को पढ़ कर आत्म चिन्तन करें, और ऋषि दयानन्द ने जो लिखा है उसे अपने जीवन में उतारें,सत्य का धारण, और असत्य का त्याग करने में सर्वदा उद्दत्य रहना चाहिए |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =16 =11 = 014 ======

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