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आर्य समाजी कहलाने वालों ने ऋषि विचारों को छोड़ा दिया है |

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आज के आर्य समाजी ऋषि के विचारों को छोड़ा |
ऋषि दयानंद जी ने क्या लिखा है अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकास में इसे आर्य समाजी कहलाने वालों को एक बार जरुर पढना चाहिए | ऋषि के नज़रों में न कोई अपना है और न कोई पराय | सिर्फ और सिर्फ सत्य ही अपना है और असत्य ही पराया | आर्य समाजी कहलाने वालों को जरा ध्यान से इस विचार को पढ़ लेना चाहिए |
ऋषि दयानंद ने चतुर्दश समुल्लास की अनुभूमिका में स्पष्ट लिखा है मात्र सत्यासत्य का निर्णय हेतु लिख रहा हूं भलाई-बुराई सबको विदित हो | कोई किसी पर झूठ ना चला सके, भलाई का वर्णन और बुराई का खंडन, अपने परायेपन को त्याग, पक्षपात से दूर, दोषों को त्याग और गुणों को धारण, सज्जनों की रीति है |
 
मात्र इतना ही नहीं अपितु ऋषि लिख रहे हैं सत्य के लिए चाहे कितना ही दारुण कष्ट उठाना क्यों ना पड़े यहां तक कि अपने प्राण भी गंवाने पड़े फिर भी इस मनुष्यपन से अलग न हो | इस्लाम मत विषय को सज्जनों के सामने निवेदन करता हूं, विचार कर सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग कीजिए |

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