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7 =दिन में क्या क्या बनाया यहोवा ने

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सात {7} दिन में क्या क्या बनाया यहोवा ने= कलसे आगे का =भाग 2
 
११ – ईश्वर कहा पृथ्वी पर हरियाली लहलहाए बीज दार पौधे और फल दार पेड़ उत्पन्न होजये, जो अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज दार फल लायें, और ऐसा ही हुआ
१२ – पृथ्वी पर हरियाली उगने लगी, अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज पैदा करने वाले पौधे और बीजदार फल देने वाले पेड़, और यह ईश्वर को अच्छा लगा |
१३ – संध्या हुई और भोर हुआ यह तीसरा दिन था |
१४ – ईश्वर ने कहा दिन और रात को अलग कर देने के लिए, आकाश में नक्षत्र हो |उनके सहारे पर्व निर्धारित किये जाएँ और दिनों तथा वर्षों का गिनती हों |
१५ – वे पृथ्वी को प्रकाश देने के लिए आकाश में जगमगाते रहें,और ऐसा ही हुआ |
१६ – ईश्वर ने दो प्रधान नक्षत्र बनाये, दिन के लिए एक बड़ा और रात के लिए एक छोटा साथ साथ तारे भी |
१७ –ईश्वर ने उनको आकाश में रख दिया, जिससे, जिससे वह पृथ्वी को प्रकाश दे |
१८ –दिन और रात को नियंत्रण करें और प्रकाश तथा अन्ध कार को अलग कर दें और यह ईश्वर को अच्छा लगा |
१९ – संध्या हुई और फिर भोर हुआ यह चौथा दिन था |
२० – ईश्वर ने कहा पानी जीव जंतुओं से भर जाये और आकाश के नीचे पृथ्वी की पक्षी उड़ने लगे |
२१ – ईश्वर ने मकर और नाना प्रकार के जीव जंतुओं की सृष्टि की, जो पानी में भरे हुए हैं और उसने नाना प्रकार के पक्षिओं की भी सृष्टि की और वह ईश्वर को अच्छा लगा |
 
२२ –ईश्वर ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया, फलो फूलो | समुद्र के पानी में भर जाओं और पृथ्वी पर पक्षियों की संख्या बढती जाये |
२३ -संध्या हुई और भोर हुआ यह पांचवा दिन था |
१४ –ईश्वर ने कहा पृथ्वी नाना प्रकार के घरेलु जमीन पर रेंगने वाले और जंगली जीव जंतुओं को पैदा करें, और ऐसा ही हुआ |
२५ – ईश्वर ने नाना प्रकार के जंगली घरेलु और जमीन पर रेंगने वाले जीव जंतुओं को बनाया और यह ईश्वर को अच्छा लगा |
 
२६ – ईश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाये, वह हमारे सदृश्य हों | वह समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों घरेलु और जंगली जानवरों, और जमीन पर रेंगने वाले सब जीव जन्तुओं पर शासन करो |
२७ -ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया, उसने उसे ईश्वर का प्रति रूप बनाया, उसने नर और नारी के रूप में उनकी सृष्टि की |
२८ – ईश्वर ने यह कहकर उन्हें आशीर्वाद दिया, फ्लो फूलो | पृथ्वी पर फैल जाओं और उसे अपने अधीन कर लो | समुद्र की मछलियाँ, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीव जन्तुयों पर शासन करो |
२९ – ईश्वर ने कहा, मैं तुमको पृथ्वी भर के बीज पैदा करने वाले सब पौधे और बीजदारफल देने वाले सब पेड़ देता हूँ | वह तुम्हारा भोजन होगा, मैं सब जंगली जानवरों को,आकाश के सब पक्षिओं को |
 
३० – पृथ्वी पर विचरने वाले जीव जंतुओं को उनके भोजन के लिए पौधों की हरियाली देता हूँ और ऐसा ही हुआ |
३१ – ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उसको अच्छा लगा | संध्या हुई भोर हुआ यह छठा दिन था |
2 – इस प्रकार आकाश तथा पृथ्वी और जो कुछ उनमें है, सब की सृष्टि पूरी हुई, सातवें दिन ईश्वर का किया हुआ कार्य समाप्त हुआ | उसने अपना समस्त कार्य समाप्त कर सातवें दिन विश्राम किया | ईश्वर ने सातवें दिन को आशीर्वाद दिया और उसे पवित्र माना | क्यों की उस दिन उसने सृष्टि का समस्त कार्य
समाप्त कर विश्राम किया था यह है आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त |
 
अगला भाग कल=महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता =23/4/18 =

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